वागड़ में गुहिल राजवंश
- – राजस्थान का दक्षिणी भाग, जिसमें बांसवाड़ा, डूंगरपुर व प्रतापगढ़ का कुछ भाग शामिल है, वागड़ क्षेत्र कहलाता है।
- – जालोर के चौहान शासक कीर्तिपाल से पराजित होकर मेवाड़ के शासक सामंत सिंह ने वागड़ क्षेत्र (1178 ई.) में गुहिल वंश की नींव रखी।
- – सामंत सिंह ने वद्रपटक (बड़ौदा) को अपनी राजधानी बनाया था।
- – गुजरात के सोलंकी वंश के शासक भीमदेव द्वितीय ने सामंत सिंह को पराजित कर वागड़ क्षेत्र, गुहिल वंशीय विजयपाल को दे दिया।
- – तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में सामंत सिंह के वंशज जयन्त सिंह ने वागड़ पर पुन: अधिकार कर लिया।
- – देवपाल के उत्तराधिकारी वीर सिंह ने डूँगरिया भील को पराजित कर डूंगरपुर की स्थापना की एवं इसे अपनी राजधानी बनाया।
प्रताप सिंह (1398 – 1424 ई.) –
- – यह पाता रावल के नाम से विख्यात था।
- – प्रताप सिंह ने पोतला तालाब व पोतला द्वार का निर्माण करवाया था।
- – प्रताप सिंह ने प्रतापपुर नगर बसाया था।
गोपीनाथ (1424 – 1447 ई.) –
- – इसके समय गुजरात के शासक अहमदशाह ने वागड़ पर आक्रमण किया तथा गोपीनाथ को परास्त कर दिया।
- – कुंभलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार महाराणा कुम्भा ने गोपीनाथ को गुजरात के अधिपत्य से मुक्त करवाया।
- – गोपीनाथ ने डूंगरपुर में गैब सागर झील का निर्माण करवाया तथा गैपपोल नामक दरवाजा बनवाया।
सोमदास (1447 – 1480 ई.) –
- – गोपीनाथ का उत्तराधिकारी सोमदास हुआ।
- – सोमदास ने बारिया व भीलों को पराजित कर कटारा के पहाड़ी पर अधिकार जमाया।
- – सोमदास के समय मालवा के शासक महमूद खिलजी तथा मालवा सुल्तान ग्यासुद्दीन ने वागड़ पर आक्रमण किया था। इन्होंने मांडू सुल्तान महमूद खिलजी को कर के रूप में धनराशि दी थी।
गंगादास (1480 -1497 ई.) –
- – सोमदास का उत्तराधिकारी गंगादास हुआ, जो गांगेय/गांगा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- – वणेश्वर शिलालेख के अनुसार गंगादास ने ईडर के शासक भाण को पराजित किया।
- – गंगादास की उपाधि रायरायां महारावल थी।
- – गंगादास का उत्तराधिकारी उदय सिंह हुआ।
उदय सिंह (1497 – 1527 ई.) –
- – उदय सिंह राणा सांगा के सहयोगी के रूप में खानवा के युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- – महारावल उदय सिंह के दो पुत्र थे- पृथ्वीराज व जगमाल ।
- – उदय सिंह ने वागड़ राज्य को दो भागों में विभाजित किया था।
- – वागड़ क्षेत्र का पश्चिमी भाग डूंगरपुर अपने बड़े पुत्र पृथ्वीराज को तथा पूर्वी भाग बांसवाड़ा छोटे पुत्र जगमाल को दिया था।
- – उदय सिंह का उत्तराधिकारी पृथ्वीराज हुआ।
पृथ्वीराज (1527 – 1580 ई.) –
- – महारावल पृथ्वीराज ने डूंगरपुर में गुहिल वंश के स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
- – इन्होंने अपनी पुत्री का विवाह मारवाड़ के शासक राव मालदेव से करवाया था।
- – पृथ्वीराज की पत्नी सज्जन बाई ने बेणेश्वर मन्दिर के पास विष्णु द्वारिकानाथ मन्दिर का निर्माण करवाया।
आसकरण (1549 – 1580 ई.) –
- – पृथ्वीराज का उत्तराधिकारी महारावल आसकरण हुआ, जिसने 1577 ई. में अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
- – इसने सोम एवं माही नदी के संगम पर वेणेश्वर का शिवालय बनवाया।
- – आसकरण ने आसपुर नामक नगर बसाया था।
महारावल सहसमल –
- – महारावल सहसमल के समय राजमाता प्रेमलदेवी ने डूंगरपुर में नौलखा बावड़ी का निर्माण करवाया।
- – महारावल सहसमल के समय सुरपुर गाँव में माधवराय के मन्दिर का निर्माण हुआ।
महारावल पुंजराज (पूंजा) –
- – महारावल पुंजराज (पूंजा) को शाहजहाँ ने ‘माही मरातिव’ का खिताब दिया था।
- – पूंजा ने डूंगरपुर में नौलखा बाग तथा गोवर्धन नाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। इन्होंने पूंजेला झील का निर्माण करवाया तथा पुंजपुर गाँव बसाया।
रामसिंह –
- – इसने मुगलों की कम हो रही शक्ति को देखकर पेशवा बाजीराव प्रथम से संधि कर अपने राज्य को सुरक्षित किया तथा उन्हें खिराज देना स्वीकार कर लिया। इसने रामगढ़ नामक गाँव बसाया तथा डूंगरपुर में रामपोल दरवाजे का निर्माण करवाया।
शिव सिंह –
- – इन्होंने व्यापारियों हेतु 55 रूपए भार का नया शिवसाही सेर जारी किया, ताकि व्यापारी तौल कम ना दे।
- – कपड़े नापने का नया गज बनाया गया।
- – दरबार के समय शिवसाही पगड़ी बांधने का रिवाज शुरू किया।
- – खेड़ा गॉव में रंगसागर (रणसागर) तालाब बनवाया।
- – इनकी रानी फूलकुंवरी ने फूलेश्वर महादेव का मंदिर बनवया।
महारावल फतेह सिंह (1790 – 1808 ई.)–
- – महारावल फतेह सिंह का शासन काल डूंगरपुर राज्य का पराभव काल था। यह एक अयोग्य राजा था। इस समय राजमाता शुभकुँवरी ने राजकार्य संभाला। इन्होंने डूंगरपुर में मुरली मनोहर मंदिर का निर्माण करवाया था।
- – फतेह सिंह व मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह के मध्य 1794 व 1799 ई. में सन्धि हुई थी।
जसवन्त सिंह द्वितीय (1808 – 1845 ई.)–
- – महारावल जसवन्त सिंह द्वितीय ने 11 दिसम्बर, 1818 ई. में अंग्रेजों से सहायक सन्धि की थी।
- – महारावल जसवन्त सिंह द्वितीय के समय डूंगरपुर पर सिंध के खुदा दाद खाँ ने आक्रमण किया था।
- – इनकी पत्नी गुमान कुँवरी ने केला बावड़ी (डूंगरपुर) का निर्माण करवाया।
- – इनके समय पण्डित नारायण को डूंगरपुर का प्रशासक बनाया गया।
- – ब्रिटिश सरकार ने राज्य की अव्यवस्था को देखते हुए प्रतापगढ़ के दलपत सिंह को यहाँ का शासन सौंप दिया। अब यह प्रतापगढ़ के साथ-साथ डूंगरपुर का भी राजकार्य संभालने लगे।
उदय सिंह द्वितीय (1845 – 1898 ई.) –
- – 1857 की क्रान्ति के समय डूंगरपुर के शासक महारावल उदय सिंह द्वितीय थे। मुंशी सफदर हुसैन खाँ को इनका संरक्षक बनाया गया था।
- – उदय सिंह द्वितीय ने नीमच के आंदोलनकारी सेना को रोकने में अंग्रेजों की सहायता की थी।
- – इन्होंने कन्या वध पर पाबंदी लगाई।
- – इनके समय में डूंगरपुर में जनगणना प्रारम्भ हुई।
- – ‘उदय प्रकाश’ के रचयिता कवि किशन इनके दरबारी विद्वान थे।
विजय सिंह (1898 – 1918 ई.) –
- – महारावल विजय सिंह ने कन्याओं की शिक्षा के लिए देवेन्द्र कन्या-पाठशाला स्थापित करवाई।
- – इनके शासनकाल में डूंगरपुर का आधुनिकीकरण हुआ।
- – विजय सिंह ने डूंगरपुर में ‘एडवर्ड समुद्र तालाब’ बनवाया।
- – इन्होंने विधवा विवाह को जायज माना।
- – इन्होंने विजय राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण प्रारंभ किया।
लक्ष्मण सिंह (1918 – 1948 ई.) –
- – लक्ष्मण सिंह डूंगरपुर के गुहिल वंश के अन्तिम शासक थे।
- – लक्ष्मण सिंह नरेन्द्र मण्डल के स्थायी समिति के सदस्य भी थे।
- – ये संयुक्त राजस्थान के उपराजप्रमुख रहे थे।
- – ये भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे।
- – महारावल लक्ष्मण सिंह के समय 25 मार्च, 1948 को डूंगरपुर का राजस्थान संघ में विलय हुआ।