किले

  • दुर्ग – दुः+ग (जहाँ गमन करना दुर्गम हो।)
  • मनुस्मृति में सर्वप्रथम दुर्गों का वर्गीकरण उपलब्ध होता है।
  • कौटिल्य व मनु ने गिरी दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया है।
  • राजस्थान के दुर्ग़ों को प्रमुखतः निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. गिरि दुर्ग – वह दुर्ग जो किसी उच्च गिरि या पर्वत पर अवस्थित हो तथा जिसके चारों ओर पर्वत श्रेणियाँ हों।

2. जल दुर्ग – जिसके चारों तरफ बहुत दूर तक फैली हुई जलराशि हो, उसे जल दुर्ग कहते हैं।

3. धान्वन दुर्ग – वह दुर्ग जो मरूस्थल में बना हो उसके इर्द-गिर्द झाड़-झंखाड़ तथा ऊबड़-खाबड़ भूमि हो धान्वन दुर्ग कहलाता है।

4. स्थल दुर्ग – खंडों या ईंटों से समतल भूमि पर निर्मित दुर्ग स्थल दुर्ग कहलाता है।

5. वन दुर्ग – वह दुर्ग जो चारों ओर से वनों से घिरा हो वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।

6. पारिख दुर्ग – जिस दुर्ग के चारों तरफ खाई बनी हो। पारिख दुर्ग कहलाता है।

            जिला                         दुर्ग
हनुमानगढ़भटनेर का किला
श्रीगंगानगर सोढल दुर्ग (सुरतगढ़)
बीकानेरजूनागढ़ का किला, पूगल
जैसलमेरस्वर्णगिरि किला, पोकरण
बाड़मेरसिवाणा, किलोणगढ़, कोटडा, जैना, हापाकोटा
जालौरसुवर्णगिरि, भाद्रजून
सिरोहीअचलगढ़, बसन्तगढ़
उदयपुरसराडा, सज्जनगढ़
डूँगरपुरगलियाकोट
प्रतापगढ़     माचीया साहिबा
चित्तौड़गढ़   चित्तौड़ का किला, भैंसरोड़गढ़, कन्नौज
भीलवाड़ा    मांड़लगढ़, अमरगढ़, हम्मीरगढ़, बनैड़ा
अजमेर      तारागढ़, मैग्जीन, टॉडगढ़, केहरीगढ़
जयपुर       जयगढ़, नाहरगढ़, आमेर, चौमू
टोंक         अमीरगढ़, असीरगढ़, चौबूजा, काकोड़ा
बूँदी          तारागढ़, इन्द्रगढ़
कोटा         कोटा दुर्ग
झालावाड़    गागरोण, मनोहर थाना
बारां          शेरगढ़, शाहबाद का किला
सवाई माधोपुर  रणथम्भौर, झाइन,खण्डार, शिवाड़
करौली       तिमनगढ़, ऊँट गिरि, मंडरायल
धौलपुर     शेरगढ़, अफगान, बाड़ी का किला
भरतपुर     लोहागढ़, बयाना, वैर
अलवर    बालाथल, कांकणवाड़ी, नीमराणा, तिजारा, कैसरोली, इन्दौर
सीकर      लक्ष्मणगढ़, फतेहगढ़, रामगढ़
झुन्झुनूँ      बिसाऊ, महनसर, नवलगढ़, पिलानी
चुरू         चुरू का किला
नागौर         अहिच्छत्रपुर, मेड़ता, कुचामन
जोधपुर    मेहरानगढ़, मंडोर
पाली         सोहत, बाली
राजसमन्द   कुम्भलगढ़

किलों के प्रचलित प्राचीन नाम

1  जोधपुर दुर्ग   मेहरानगढ़, मयूरध्वजगढ़, गढ़ चिन्तामणि
2  जालौर दुर्ग   जाबालिपुर, सोनगिरि,सोनलगढ़
3  भरतपुर दुर्ग  लोहागढ़, अजेय दुर्ग, मिट्टी का दुर्ग
4  आबू दुर्ग (सिरोही)             अचलगढ़, भंवराथल
5  गागरोण दुर्ग (झालावाड़)       डोडगढ़, धूलरगढ़
6  अजमेर का किला               अजयमेरु दुर्ग, गढ़ बीठली, तारागढ़, राजस्थान का जिब्राल्टर, राजपूताने की कुंजी
7  अकबर का किला (अजमेर)         मैगजीन, दौलतखाना,शास्त्रागार
8  बूंदी का किला           तारागढ़
9  नाहरगढ़ (जयपुर)            सुदर्शनगढ़, जयपुर का मुकुट
10. चौमू                           चौमूहागढ़, धाराधारगढ़, रघुनाथगढ़
11. अमीरगढ़ (टोंक)              भूमगढ़
12.असीरगढ़ (टोंक)               दक्खन की चाबी
13.धौलपुर का किला               शेरगढ़, दखर का दवारगढ़
14. वल्लभगढ़ (उदयपुर)       ऊंटाला का किला
15.  मेड़ता का किला (नागौर)     मालकोट, मेड़न्तकपुर दुर्ग
16. नागौर का किला           नागदुर्ग, अहिछत्रगढ़
17 हनुमानगढ़ का किला          भटनेर दुर्ग, उत्तरी सीमा का प्रहरी
18.  बीकानेर का किला               जूनागढ़
19.  जूनागढ़                    रातीघाटी का किला, जमीन का जेवर
20. अलवर दुर्ग                     बालांकिला
21.  बयाना दुर्ग (भरतपुर)   विजयमन्दिरगढ़
22. तिमनगढ़ (भरतपुर)             तवनगढ़, त्रिभुवनगढ़
23. शेरगढ़                          कोशवर्द्धन दुर्ग, दक्षिण का द्वारगढ़
24. जैसलमेर का किला             सोनारगढ़, सोनगढ़, त्रिकुटगढ़,उत्तर-भडकिवाड़, गौहरारगढ़ भाटियों की मरोड़
25. चौमूँ का किला (जयपुर)      चौमुँहागढ़
26. मीठड़ी का किला (जयपुर)     नाहरगढ़
27. मण्डोर का किला (जोधपुर) माण्डव्यपुर दुर्ग
28. कुम्भलगढ़ (राजसमंद)     कुम्भलमेर दुर्ग, कमलमीर
29. चित्तौड़गढ़                राजस्थान का गौरव, चित्रकूट,राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी प्रवेश द्वार,दुर्गों का सिरमौर
30. भैंसरोड़गढ़ (चितौड़गढ़)       राजस्थान का वेल्लोर
31. जयगढ़ दुर्ग (जयपुर)चिल्ह का टीला, संकटमोचक दुर्ग,तिस्मी दुर्ग
32. मंडरायल दुर्ग (करौली)ग्वालियर दुर्ग की कुंजी
33. सिवाणा (बाड़मेर)              कूमट, कुम्भथाना, खैराबाद
34. रणथम्भौर (सवाईमाधौपुर)  रणत भंवर का किला
35. झाइन (सवाईमाधोपुर)        रणथम्भौर की कुंजी
36. खण्डार                         प्रष्ठरक्षक का किला
37. तिमनगढ़ (करौली)            त्रिभुवनगढ़
38. बयाना (भरतपुर)             विजय मन्दिरगढ़, बाणासुर,
39. बाला (अलवर)          52 दुर्गों का लाडला, सलीम दुर्ग

साके किलों में

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1. रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)

पहला साका – 1301

कैसरिया – हम्मीर देव चौहान

जौहर – रानी रंगदेवी

तथ्य – राजस्थान का एकमात्र जल जौहर रानी रंगदेवी ने किया। (आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी)

2. चित्तौड़ (चित्तौड़गढ़)

पहला साका – 1303

कैसरिया – गौरा-बादल

जौहर – रानी पद्मिनी

शासक – रावल रत्नसिंह

आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी

तथ्य – इसके बाद किले का नाम खिज्राबाद रखा गया।

रचना – तारीख-ए-अलाई (अमीर खुसरो)

दूसरा साका1534 ई.

कैसरिया – बाघ सिंह

जौहर – कर्मावती/कर्णावती

आक्रमणकारी – बहादुरशाह (गुजरात)

तीसरा साका 1567 ई.

कैसरिया – वीर जयमल, फता व कल्ला राठौड़

जौहर – फूल कंवर

आक्रमणकारी – अकबर

4. सिवाणा (बाड़मेर)

प्रथम साका – 1308 ई.

आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी

तथ्य – इसके बाद इस किले का नाम खैराबाद रखा गया।

दूसरा साका – 1587

कैसरिया – कल्याणदास

आक्रमणकारी – राव मोटा राजा उदयसिंह (अकबर के कहने पर)

5. जालौर

प्रथम साका – 1311

कैसरिया – कान्हडदेव और वीरमदेव

आक्रमणकारी – अलाउद्दीन खिलजी

रचना – कान्हड़देव प्रबन्ध/वीरमदेव सोनगरा री बात (पद्मनाभ)

6. गागरोणझालावाड़

प्रथम साका – 1423

कैसरिया – अचलदास खींची

आक्रमणकारी – होशंगशाह/अल्पखां गौरी

रचना – अचलदास खीची री वचनिका (शिवदास गाढण)

दूसरा साका – 1444

कैसरिया – पाल्हणसी

आक्रमणकारी – महमूद खिलजी

तथ्य – किले का नाम बदलकर मुस्तफाबाद रखा गया।

7.  जैसलमेर के प्रसिद्ध ढाई साके

प्रथम साका – भाटी शासक मूलराज व दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मध्य सन् 1313 के लगभग हुआ था।

दूसरा साका – दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक व रावल दूदा (महारावल दुर्जनसाल) के मध्य

तीसरा साका – (अर्द्धसाका) 1550 ई. में जैसलमेर के राव लूणकरण व कंधार के शासक अमीर अली के मध्य।

तथ्य – इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ इसलिए इसे अर्द्ध साका माना जाता है।

किले                               तोपे

1. जयगढ़ (जयपुर) –      जयबाण (एशिया की सबसे बड़ी तोप)

2. तारागढ़ (बूँदी) –        गर्भगूंजन

3. शेरगढ़ (धौलपुर) –     हनुहुंकार

4. खण्डार (रणथम्भौर) –  शारदा तोप

5. शाहबाद (बारां) –       नवल वान

6. मेहरानगढ़ (जोधपुर) –   किलकिला, शम्भूबाण, गजनीखां।

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग

क्र.सं.   दुर्ग का नाम     स्थान निर्माता दुर्ग श्रेणी
1. चित्तौड़गढ़ दुर्गचित्तौड़गढ़चित्रांगद मौर्यगिरि दुर्ग
2. कुंभलगढ़ दुर्गमेवाड़-मारवाड़ की सीमा परराणा कुंभागिरि दुर्ग
3. रणथम्भौर दुर्गसवाई माधोपुररणथम्मन देवएरण दुर्ग
4. सिवाणा दुर्गसिवाणा (बाड़मेर)वीरनारायण पंवारवन दुर्ग
5. तारागढ़ दुर्गअजमेरअजयपालगिरि दुर्ग
6. गागरौण दुर्गझालावाड़खीची वंशजल दुर्ग
7. जैसलमेर दुर्गजैसलमेरभाटी राजवंशधान्वन दुर्ग
8. जूनागढ़ दुर्गबीकानेररायसिंहस्थल दुर्ग
9. दूदू का दुर्गअजमेर-जयपुर मार्ग  परश्यामसिंहस्थल दुर्ग
10. नागौर का दुर्गनागौरराठौड़ सावंतस्थल दुर्ग
11. मेहरानगढ़ का दुर्गजोधपुरराव जोधा  गिरि दुर्ग
12. लोहागढ़ दुर्गभरतपुरसूरजमलस्थल दुर्ग
13. भटनेर दुर्गहनुमानगढ़नरेश भूपतजल दुर्ग

प्रमुख दुर्ग

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1. 

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25. तवनगढ़ (त्रिभुवनगढ़), करौली

  • समुद्रतल से लगभग 1309 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण बयाना के राजवंशीय तहणपाल (तवनपाल) अथवा त्रिभुवनपाल (महाराजा विजयपाल का पुत्र) ने 11वीं शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्द्ध में करवाया था।
  • निर्माता के नाम पर ही इस दुर्ग का नाम तवनगढ़ तथा किले वाली पहाड़ी त्रिभुवन गिरि कहलाती है।
  • इस दुर्ग के बारे में ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि मुस्लिम आधिपत्य के बाद इसका नाम इस्लामाबाद कर दिया गया था।
  • कविराजा श्यामलदास कृत वीरविनोद में यह उल्लेख है कि- ‘मुसलमानों ने यादवों से बयाना का किला छीन लिया। विजयपाल के 18 बेटे थे। उसका सबसे बड़ा बेटा तवनपाल बारह वर्ष तक पोशीदह रहकर अपनी धाय के मकान पर आया, उसने तवनगढ़ का किला बयाना से लगभग पन्द्रह मील दूर बनाया।‘
  • तवनपाल के दो पुत्र थे- धर्मपाल और हरपाल परन्तु उनका उत्तराधिकारी धर्मपाल बना, गृहकलह के कारण महाराजा धर्मपाल ने तवनगढ़ छोड़कर एक नया किला ‘धौलदेहरा‘ (धौलपुर) बनवाया। उसके पुत्र कुंवरपाल (कुमारपाल) ने गोलारी में एक किला बनवाया जिसका नाम कुंवरगढ़ रखा। कुंवरपाल ने ही हरपाल को मारकर तवनगढ़ पर अधिकार किया।
  • हसन निजामी द्वारा लिखित ‘ताज-उल-मासिर‘ तथा मिनहाज सिराज कृत ‘तबकाते नासिरी‘ में तवनगढ़ के ऊपर गौरी के अधिकार का उल्लेख हुआ है।
  • 14वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यादववंशीय अर्जुनपाल ने अपने पैतृक राज्य तवनगढ़ पर फिर से अधिकार कर लिया। उसने विक्रम संवत् 1405 (1348 ई.) में कल्याण जी का मंदिर बनवाकर कल्याणपुरी नगर बसाया, जो वर्तमान में करौली कहलाया।
  • यह गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है। उन्नत एवं विशाल प्रवेश द्वार तथा ऊंचा परकोटा इसके स्थापत्य की प्रमुख विशेषता है।
  • जगनपोल एवं सूर्यपोल दोनों इस दुर्ग के प्रमुख प्रवेश द्वार हैं। समूचा नगर इस किले के भीतर बसा हुआ था।

26.   सोजत का किला

  • सोजत का किला मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग है, जो जोधपुर से लगभग 110 किमी. पर स्थित है।
  • गौड़वाड़ क्षेत्र पर निगरानी रखने तथा मेवाड़ की ओर से किसी भी संभावित आक्रमण का मुकाबला करने के लिए मारवाड़ (जोधपुर) रियासत की सेना का एक सशक्त दल यहां तैनात रहता था।
  • सूकड़ी नदी के मुहाने पर बसा सोजत (शुधदंती) एक प्राचीन स्थान है जो लोक में तांबावती (त्रंबावती) नगर के नाम से प्रसिद्ध था। मारवाड़ रा परगना री विगत में इस आशय का उल्लेख मिलता है- सासत्र नाव सुधदंती छै। आगे केहीक दिन त्रंबावती नगरी त्रंबसेन राजा हुतौ तिण राजा री सोझत ……।
  • राव जोधा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र नीम्बा को सोजत में नियुक्त किया। सम्भवतः उसने नानी सीरड़ी नामक डूंगरी पर 1460 ई. में सोजत के वर्तमान दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • जोधपुर ख्यात में राव मालदेव को सोजत किले का निर्माता माना गया है।
  • जोधपुर के पराक्रमी शासक राव मालदेव ने सोजत के चारों ओर सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करवाया तथा सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया।
  • बादशाह अकबर ने चन्द्रसेन से सोजत छीनकर राव मालदेव के पुत्र राम को सोजत इनायत किया। उसका बनवाया हुआ रामेलाव तालाब आज भी सोजत के किले के पर्वताचंल में विद्यमान है।
  • यह किला एक लघुगिरि दुर्ग है जो अभी भग्न और खण्डित अवस्था में है।
  • किले के प्रमुख भवनों में जनानी ड्योढ़ी, दरीखाना, तबेला, सूरजपोल तथा चाँदपोल प्रवेश द्वार हैं।
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27. कुचामन का किला, नागौर

  • कुचामन का किला जागीरी ठिकानों के रूप में प्रसिद्ध रहा है। नागौर जिले की नावां तहसील में स्थित यह ठिकाना जोधपुर रियासत में मेड़तिया राठौड़ों का एक प्रमुख ठिकाना था।
  • कुचामन का किला रियासतों के किलों से टक्कर लेता है इसलिए यदि कुचामन के किले को जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसके बारे में लोक में यह उक्ति प्रसिद्ध है-

      ‘ऐसा किला राणी जाये के पास भले ही हो, ठुकरानी जाये के पास नहीं।‘

  • कविराजा बांकीदास ने कुचामन के सामन्त शासकों की स्वामीभक्ति की प्रशंसा करते हुए अपनी ख्यात में लिखा है-

 कदीही कियो नह रूसणो कुचामण।

 कुचामण साम-ध्रम सदा कीधो।।

  • अलवर नरेश बख्तावरसिंह का विवाह 1793 ई. में कुचामन की राजकुमारी से सम्पन्न हुआ था। कुचामन के ठाकुर केसरीसिंह को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘राय बहादुर‘ का खिताब दिया गया था।
  • कुचामन का किला, गिरि दुर्ग का उदाहरण है। प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार यहां के पराक्रमी शासक जालिमसिंह ने वनखण्डी नामक महात्मा के आशीर्वाद से कुचामन के किले की नींव रखी।
  • इस किले के भवनों में सुनहरी बुर्ज सोने के बारीक व सुन्दर काम के लिए उल्लेखनीय है। यहां पर जल संग्रह हेतु पांच विशाल टांके है जिसमें से पाताल्या हौज और अंधेरया हौज (बंद टांका) प्रमुख है।

28. माधोराजपुरा का किला

  • माधोराजपुरा जयपुर से लगभग 59 किमी. दक्षिण में दूदू लालसोट जाने वाली सड़क पर अवस्थित है।
  • इस दुर्ग से जयपुर के कच्छवाहों की नरूका शाखा के वीरों के शौर्य और पराक्रम के उज्ज्वल प्रसंग जुड़े हुए हैं।
  • जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठों पर विजय के उपरान्त माधोराजपुरा का कस्बा अपने नाम पर बसाया था।
  • जयपुर की अनुकृति पर बसे इस छोटे कस्बे को ‘नंवा शहर‘ भी कहा जाता है।
  • माधोराजपुरा के किले के साथ इतिहास की एक गौरव दास्तान जुड़ी हुई है, जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह तृतीय की धाय ‘रूपा बढ़ारण‘ को उसके दरबारी षड़यंत्रों और कुचक्रों की सजा के रूप में इसी किले में नजरबन्द रखा गया था।
  • यह किला एक स्थल दुर्ग है जिसके चारों ओर लगभग 20 फीट चौड़ी और 30 फीट गहरी परिखा है। किले के भीतर एक पाताल फोड़ कुआं भी विद्यमान है।
  • इस किले के बीचोबीच एक भोमियाजी का स्थान है। जनश्रुति के अनुसार ये भोमिया करणसिंह नरूका है, जो किले की रक्षार्थ किसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • किले के भीतर एक ऊंचा भग्न महल है जो ‘रानी वाला महल‘ कहलाता है।

29. चौंमू का किला (चौमुँहागढ़)

  • जयपुर से लगभग 33 किमी. उत्तर में स्थित चौंमू का किला चौंमुँहागढ़ कहलाता है। जिसके चतुर्दिक बसा होने से यह कस्बा चौंमू कहलाया।
  • यह किला प्राचीन भारतीय शास्त्रों में वर्णित भूमि दुर्ग की श्रेणी में आता है।
  • पंडित हनुमान शर्मा द्वारा लिखित नथावतों का इतिहास के अनुसार ठाकुर कर्णसिंह ने विक्रम संवत् 1652-54 (1595-97 ई) के लगभग वेणीदास नामक एक संत के आशीर्वाद से इस चौंमुँहादुर्ग की नींव रखी।
  • ठाकुर मोहनसिंह ने इस दुर्ग की सुदृढ़ प्राचीर तथा किले के चारों तरफ गहरी नहर या परिखा का निर्माण करवाया।
  • चौंमू के इस किले को धाराधारगढ़ भी कहते हैं। इस किले को लक्ष्य कर दागे गए तोप के गोले उसे हानि पहुंचाए बिना ऊपर से निकल जाते थे।
  • कौटिल्य ने एक अच्छे भूमि दुर्ग के जो लक्षण बताये हैं, वे सब चौंमू के इस किले में विद्यमान है।
  • प्रमुख दरवाजों में बजरंग पोल, होली दरवाजा, बावड़ी दरवाजा तथा पीहाला दरवाजा आदि है।

30. शाहबाद दुर्ग, बारां

  • शाहबाद का दुर्ग हाड़ौती अंचल का एक सुदृढ़ और दुर्भेद्य दुर्ग है। यह बारां से 80 किमी. दूर कोटा-शिवपुरी मार्ग पर एक विशाल और ऊंचे पर्वत शिखर पर स्थित है।
  • दुर्ग के नाम पर कस्बे का नाम भी शाहबाद कहलाता है।
  • शाहबाद दुर्ग के निर्माण की सही तिथि और इसके निर्माताओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण 9वीं शताब्दी ई. के लगभग परमार शासकों द्वारा कराया गया जिनका उस समय इस क्षेत्र पर अधिकार था।
  • दूसरी मान्यता के अनुसार इस दुर्ग के निर्माता चौहान राजा मुकुटमणिदेव था जोकि रणथम्भौर के प्रसिद्ध शासक राव हम्मीर देव चौहान के वंश से था।
  • मेवाड़ के महाराणा कुंभा ने मांडू के सुल्तान को पराजित कर शाहबाद दुर्ग को अपने अधिकार में कर लिया था।
  • इस दुर्ग का पुनर्निमाण या जीर्णोद्वार संभवतः शेरशाह सूरी के द्वारा करवाया गया था।
  • मुगल सम्राट औरंगजेब अपनी दक्षिण यात्रा के दौरान इस दुर्ग का उपयोग विश्राम स्थल के रूप में करता है।
  • औरंगजेब के शासनकाल में शाहबाद के मुगल फौजदार मकबूल द्वारा निर्मित ‘जामा मस्जिद‘ मुगल स्थापत्य कला का सुन्दर उदाहरण है। इसकी मीनार लगभग 150 फीट ऊंची है।
  • इस दुर्ग पर रखी ‘ नवलबाण‘ तोप दूर तक मार करने के कारण प्रसिद्ध रही।
  • दुर्ग के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ दो विशाल प्रतिमाएं लगी थी जिन्हें स्थानीय बोलचाल में ‘अललपंख‘ कहा जाता था। अललपंख एक पंखयुक्त हाथी है जोकि अपने चारों पैरों तथा सूंड में पांच छोटे-छोटे हाथी लेकर उड़ता हुआ दिखाया गया है। वर्तमान में ये प्रतिमाएं जिलाधीश कार्यालय में स्थापित है।

31. खण्डार का किला

  • सवाईमाधोपुर से लगभग 40 किमी. पूर्व में स्थित खण्डार का किला रणथम्भौर के सहायक दुर्ग व उसके पृष्ठरक्षक के रूप में विख्यात है।
  • खण्डार किला नैसर्गिक सौन्दर्य का खजाना है, जिसके पूर्व में बनास व पश्चिम में गालण्डी नदियाँ बहती है।
  • खण्डार किले में गिरि दुर्ग एवं वन दुर्ग दोनों के गुण विद्यमान है। अपनी आकृति में यह दुर्ग त्रिभुजाकार है।
  • किले की प्राचीर के समीप ही एक जैन मंदिर है जहां महावीर स्वामी की पद्मासन मुद्रा में तथा पार्श्वनाथ की आदमकद व खड़ी प्रतिमा तथा अन्य जैन प्रतिमाएं बनी है।
  • खण्डार के किले के भीतर बने अन्य भवनों में राजप्रासाद,रानी का महल, चतुर्भुज मंदिर देवी मंदिर तथा सतकुण्डा, लक्ष्मणकुण्ड, बाणकुण्ड, झिरीकुण्ड आदि जलाशय प्रमुख उल्लेखनीय है।
  • खण्डार का किला कब बना और इसके निर्माता कौन थे इस बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। रणथम्भौर के यशस्वी शासक राव हम्मीरदेव चौहान के शासनकाल में खण्डार का किला विद्यमान था।
  • सन् 1301 में रणथम्भौर के साथ ही खण्डार का किला भी चौहानों के हाथ से निकलकर अलाउद्दीन खिलजी के अधिकार में आ गया।

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