राजस्थान में वन्यजीव
राजस्थान में वन्यजीव
- यह समवर्ती सूची का विषय है अर्थात् इसके लिए केन्द्र व राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं।
- 1951 में राजस्थान वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित हुआ।
- 1972 में राष्ट्रीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम लागू हुआ परन्तु राजस्थान में 1973 में पारित हुआ।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परियोजना 1973 में केन्द्र ने लागू की तथा राजस्थान में यह 1974 में लागू हुई।
- राजस्थान का प्रथम टाईगर प्रोजेक्ट रणथम्भौर में 1974 को लागू हुआ।
- राष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान में कुल 104 राष्ट्रीय उद्यान, 544 अभ्यारण्य व 18 बायोस्फीयर रिजर्व हैं।
- देश का पहला जन्तुआलय 1855 ई. में मद्रास में स्थापित किया गया। राजस्थान में प्रथम जन्तुआलय की स्थापना 1876 ई. में जयपुर के रामनिवास बाग में की गई।
- रणथम्भौर परियोजना क्षेत्रफल की दृष्टि से देश की सबसे छोटी बाघ परियोजना है।
- रणथम्भौर नेशनल पार्क में 10 करोड़ की लागत से क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय खोला जा रहा है।
- अलवर का सरिस्का अ अभ्यारण्य सबसे छोटा व जैसलमेर का राष्ट्रीय मरू उद्यान राज्य का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है।
- राजस्थान में वर्तमान में तीन टाईगर रिजर्व पार्क हैं।
1. रणथम्भौर
2. सरिस्का
3. मुकन्दरा हिल्स पार्क
राष्ट्रीय उद्यान
- राजस्थान में वर्तमान में तीन राष्ट्रीय उद्यान है।
राष्ट्रीय उद्यान : इसका व्यय केन्द्र सरकार वहन करती है।
- रणथम्भौर (1980) पहला राष्ट्रीय उद्यान (सवाई माधोपुर)।
- केवलादेव (1981)।
- मुकुन्दरा हिल्स – कोटा
राष्ट्रीय उद्यान :
- रणथम्भौर : सवाईमाधोपुर में। क्षेत्रफल – 282.03 किमी2
- यहां अरावली व विंध्याचल पर्वत मालाओं का संगम होता है।
- 1 नवम्बर, 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
- इससे पूर्व 1974 में इसे नेशनल टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया गया था।
- इसे बाघों का घर या Land of Tiger कहा जाता है।
- टाइगर मैन ‘कैलाश सांखला’ की की कर्मस्थली।
- यहां त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर व 6 तालाब/झील है।
(i) पदम् तालाब (ii) मलिक तालाब (iii) राजबाग तालाब (iv) मानसरोवर तालाब (v) गिलाई सांभर (vi) लाहपुर तालाब।
- 1996 में यहां विश्व बैंक के सहयोग से India Eco Development परियोजना चलाई गई।
- उद्देश्य–जन सहयोग से Biodiversity (जैव विविधता) का विकास करना।
(i) आस-पास वृक्षारोपण करवाना। (ii) पानी के संरक्षण का कार्य।
- 2004 में यह प्रोजेक्ट समाप्त।
- मई या नवम्बर में इनकी गणना करते हैं।
- नवम्बर 2009 में बाघों की गणना- रणथम्भौर में-36, रणथम्भौर से सटे सवाईमानसिंह अभयारण्य में-4, कैलादेवी में-1 और सरिस्का (विस्थापित) में-3, कुल-44 बाघ हैं।
- चर्चित बाघिन ‘मछली’ (टी-16) युनेस्को के द्वारा वर्ष-2010 में बेस्ट टाइग्रेस घोषित किया गया। इसे रणथम्भोर क्वीन, लैडी ऑफ द लेक, क्रॉकोडाइल किलर आदि नामों से भी जाना जाता है। फोटोग्राफर एस. नल्लामुत्थु ने इस बाघिन पर एक डॉक्यूमेन्ट्री बनायी थी। 2016 में मृत्यु
- टी-17 ‘मछली’ बाघिन की बेटी को अशोक गहलोत के द्वारा अक्टूबर-2010 में कृष्णा नाम दिया गया।
- टी-25 बाघ हाल ही में पर्यटकों के बीच चर्चित नर बाघ है। जिसे डॉलर मेल के नाम से जाना जाता है।
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान : भरतपुर (घाना)
- घने वन हैं – घाना। शिव का मंदिर – केवलादेव। 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
- क्षेत्रफल – 28.730 km2(29 km2)। इसे पक्षियों का स्वर्ग कहते हैं।
- इसे पहले शिकार गाह के रूप में प्रयुक्त किया जाता था।
- 1899 में मोरबी रियासत के राजकुमार हरभान ने इसे वन्य जीवों के केन्द्र (शिकारगाह) के रूप में विकसित किया था।
- 120 पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती है।
- 1980 के दशक में साइबेरियन क्रेन चर्चित रही।
- अक्टूबर-नवम्बर में आते हैं जनवरी-फरवरी में बच्चों सहित वापस चले जाते हैं।
- बार हेडेड ग्रीज पक्षी– रोजी पिस्टर (चिल्लाने वाला) वाल्मिकी द्वारा बताये गये चकवा-चकवी।
- 10 अक्टू. 1981 को रामसर साइट घोषित।
- 1985 में विश्व धरोहर स्थल UNESCO के द्वारा घोषित किया गया था।
- डॉ. सलीम अली के प्रयासों से इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया।
- इन्हें ‘The bird man of India’ व ‘पक्षी विज्ञान का जनक‘ कहते हैं।
- डॉ. सलीम अली पक्षी विज्ञान अनुसंधान संस्थान कोयम्बटूर में है।
- भारत में सबसे अधिक पक्षी सिक्किम में है।
- 2006 में यहां डॉ. सलीम अली इन्टरप्रिटेशन सेन्टर 17 जून, 2006 में खोला गया। साइबेरियन क्रेन का ध्यान रखने के लिए।
- यहां कदम्ब के वृक्ष पाये जाते हैं। यहां पायथन पॉइन्ट है।
- यहां सर्वाधिक अजगर मिलते हैं। यहां अजान बांध बना हुआ है जो केवलादेव की जीवन रेखा।
- गोवर्धन नहर (आगरा नहर की वितरिका) से अजान बांध को वर्तमान में भरा जाना (प्रस्तावित) है।
- केवलादेव में घूम रहे टी-7 बाघ को सरिस्का अभ्यारण्य में भेजा जाना विचाराधीन है। यहां बाणगंगा व गम्भीरी नदी बहती है।
- मुकुन्दरा हिल्स नेशनल पार्क
- 9 जनवरी 2012 में दर्राह को तीसरा राष्ट्रीय उद्यान बनाने की अंतिम अधिसूचना जारी की गई। कोटा, चितौड़गढ़ में विस्तृत। राज्य की तीसरी बाघ परियोजना
- 9 अप्रैल 2013 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित।
अभ्यारण्य
(1) राष्ट्रीय मरू उद्यान (जैसलमेर – बाड़मेर) : वर्तमान में राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है। 1962 + 1200 = 3162 किमी2
- 1981 में गोड़ावण (माल-मोरड़ी) के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था लेकिन अभी तक यह अभ्यारण्य ही है।
- क्रायोटिस, नाइग्रीसैप्स Zoological Name।
- हर्षवर्धन के प्रयासों से राष्ट्रीय पक्षी घोषित। जोधपुर जन्तुआलय में कृत्रिम प्रजनन करवाया जाता है।
- गोडावण प्रजनन स्थली के रूप में प्रसिद्ध।
- अशद रहमानी – Bombay Natural Society ने एक गोड़ावण Task force गठित की है। इसका अध्यक्ष अशद रहमानी को बनाया है।
- आकल (जैसलमेर) में वुड फॉसिल पार्क है। रामगढ़ में यहां 25 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म है। जिसमें 10 अनावृत व 15 आवृत है।
- N.H. – 15 बीच में से गुजरता है तथा यहां 1365 गांव-ढ़ाणियां है।
(2) सरिस्का : 1982 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया परन्तु यह अभी अभ्यारण्य है। यह अलवर में है। 1955 में अभयारण्य घोषित।
- प्रसिद्ध : (i) यहां हरे कबूतर पाये जाते हैं। वर्तमान में अजमेर (तिलोनिया) में भी पाये जाते हैं।
(ii) यहां जंगली सूअर पाये जाते हैं।
- 1978 में राजस्थान का दूसरा टाईगर प्रोजेक्ट बना।
- 2005 में बाघों की गणना करने पर यहां शून्य बाघ मिले अतः यह चर्चित रहा।
- प्रधानमंत्री ने टाईगर टास्क फॉर्स का गठन किया। इसकी अध्यक्षता सुनिता नारायणन को दी गई।
- Center for Science and Environment (CSE) की Director सुनिता नारायणन हैं।
- यहां के 5 धार्मिक स्थल प्रसिद्ध है-
(i) महाराजा भर्तृहरी की तपोस्थली (ii) महाभारत कालीन हनुमान जी का शयनमुद्रा वाला मंदिर पाण्डुपोल (iii) गढ़राजोर का जैन मंदिर (iv) पाराशर आश्रम (v) नलदेश्वर, नीलकण्ठ का शिव मंदिर।
सरिस्का ‘अ‘ वन्य जीव अभयारण्य को राजस्थान का सबसे छोटा अभयारण्य बनाया गया है।
‘रीसस बदंर’ के लिए प्रसिद्ध।
क्रासका व काकनवाड़ी पठार स्थित।
(3) दर्रा अभ्यारण्य (कोटा–झालावाड़) : कोटा में (कोटा मुम्बई रेल्वे लाइन से लेकर गागरोण तक फैला हुआ है)।
- 2003 सरकार द्वारा राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। राजीव गांधी नेशनल पार्क रखा था लेकिन 2004 में इसका नाम मुकुन्दरा पहाड़ी राष्ट्रीय पार्क रखा।
- गागरोनी तोता पाया जाता है। अन्य नाम – टुँइया तोता, हीरामन तोता।
- इस तोते को हिन्दुओं का आकाश लोचन तोता भी कहते हैं। वर्तमान में विलुप्त होने वाला है। कोटा के महाराव रामसिंह की प्रियसी अबली मीणी का महल, रावठाँ महल, अभेड़ा महल।
- रियासत कालीन- औदियाँ Watchtower, अवलोकन स्तंभ, अमझरा रामसागर, बड़ी तलाई तालाब उपस्थित है।
(4) तालछापर (चुरू) : शेखावाटी का एकमात्र अभ्यारण्य जो कृष्ण मृग के लिए प्रसिद्ध है।
- बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के द्वारा 1920 में काले हिरणों के संरक्षण के लिए प्रयास किया गया।
- डूंगोलाव – भैंसोलाव तालाबों का निर्माण करवाया गया। कृष्ण मृग पाए जाने का कारण – मोथिया घास (साइप्रस रोटण्ड्स)।
- खींचण के बाद सर्वाधिक कुरजां पक्षी यहीं पाए जाते हैं।
- कुरजां का नाम डोमिसाइल क्रेन– 2007-08 के बजट में तालछापर के संरक्षण के लिए 1 करोड़ 20 लाख रुपए आवण्टित है।
(5) टाँड़गढ़ रावली अभ्यारण्य : यह अभ्यारण्य तीन जिलों में फैला हुआ है-अजमेर, पाली व राजसमंद।
- यहां दूधालेश्वर महादेव का मंदिर है।
- कामली घाट व गोरम घाट दो सुरम्य स्थल यहां मिलते हैं।
(6) कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य : राजसमंद जिले में है।
- यह राजसमंद, पाली व उदयपुर में फैला है। यह भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध है।
- रणकपुर जैन मंदिर इसी अभ्यारण्य क्षेत्र में, निर्माता-धरणक सेठ, देपाक वास्तुकार, 1444 खम्भे आदि भी इसी क्षेत्र में है।
- यहां पाये जाने वाले चौसिंघा को स्थानीय भाषा में घण्टेल कहते हैं।
(7) सज्जनगढ़ अभ्यारण्य : उदयपुर जिले में स्थित।
- यह राजस्थान का दूसरा सबसे छोटा अभ्यारण्य है। 5 km2 फैलाव क्षेत्र।
- सबसे नया यह 1987 में बना।
- यहां राजस्थान का पहला जैविक पार्क (Biological Park) यहां स्थापित किया गया है।
- यहां का किला बाँसदड़ा पहाड़ी पर बना है।
(8) फुलवारी की नाल : उदयपुर जिले में स्थित।
- यहां मानसी-वाकल नदी का उद्गम स्थल है।
- माऊण्टआबू के पश्चात् जंगली मुर्गा यहीं मिलता है।
(9) जयसमंद : उदयपुर जिला, बघेरों के लिये प्रसिद्ध।
(10) बस्सी चित्तौड़गढ़ अभ्यारण्य : जालेश्वर महादेव का पौराणिक आस्था स्थल। चीतल हेतु प्रसिद्ध। ओरई व बामनी नदी का उद्गम।
(11) भैंसरोड़गढ़ अभ्यारण्य : यहां बामणी व चम्बल नदी मिलती है।
- वर्तमान में यह अभ्यारण्य राणाप्रताप सागर के डूब क्षेत्र में आता है।
- यह घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है।
(12) सीतामाता अभ्यारण्य : यह प्रतापगढ़ (85%) व चित्तौड़ (15.6%) फैला हुआ है।
- यह उड़न गिलहरियों के लिए प्रसिद्ध। चीतल की मातृभूमि। यहां से करमोई व इरू नदियाँ निकलती है।
- सागवान के वन पाये जाते हैं, हिमालय के पश्चात् सबसे अधिक जड़ी बूटियों वाला स्थल है। जाखम बांध यही स्थित है।
- लव व कुश दो जल स्रोत यहां उपस्थित है। सर्वाधिक जैव विविधता
(13) माऊण्ट आबू अभ्यारण्य : सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित अभ्यारण्य।
- यहां पर बब्बर शेर (1872) तक पाया जाता था। 1967 तक यहां बाघ थे।
- यहां जंगली मुर्गा पाया जाता है।
- डिक्लिपटेरा आबूएंसिस बड़े फूल वाला पौधा है। सितम्बर के माह में फूल आता है।
- यहां पर लैन्टाना नामक झाड़ी विशेष रूप से देखने को मिलती है, जो बीकानेर के महाराजा गंगासिंह अमेरिका से लाए थे।
- अनादरा Point – यहां से सम्पूर्ण अभ्यारण्य को देख सकते हैं। इसके पास वर्षभर बहने वाला झरना स्थित है।
- इसी अभ्यारण्य क्षेत्र में दिलवाड़ा के जैन मंदिर है।
- यहां अंजीर के पेड़, वनगुलाब, इगोद (हिंगोट)।
- राष्ट्रीय चम्बल अभ्यारण्य : 1990 में घोषित। चम्बल नदी के दोनों तरफ 1-1 km के क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित किया गया है।
- चम्बल नदी उत्तरप्रदेश, राजस्थान व मध्यप्रदेश में बहती है।
- यहां गेंगेटिक डाल्फिन (गांगेय सूँस), घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए पाये जाते हैं।
(14) जवाहर सागर कोटा – घड़ियाल के लिए प्रसिद्ध।
(15) शेरगढ़ अचरोली अभ्यारण्य : बारां जिले में।
- परवन नदी इसके मध्य से गुजरती है। यहां गोड़ावण देखने को मिलता है।
- यहां घास के बड़े-बड़े मैदान पाये जाते हैं इन मैदानों को स्थानीय भाषा में बरड़े कहते हैं।
- यहां काला भेड़िया भी पाया जाता है।
- सापों की शरण स्थली के रूप में चर्चित।
- वर्तमान में यहां की देखरेख धर्म कुमार सिंह व अशद रहमानी कर रहे हैं।
(16) रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य : बूंदी में, बाघ संरक्षण स्थलों के अलावा यहां बाघ मिलता है।
- वर्तमान में इसे रणथम्भौर में शामिल करने की योजना है।
(17) बंध बारेठा अभ्यारण्य : भरतपुर में। बंधबारेठा बांध- कुकुन्द नदी पर। ‘Water Four’ के लिए प्रसिद्ध। जरखो के लिए प्रसिद्ध।
- यह पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
(18) SMS अभ्यारण्य : सवाई माधोपुर में। सामान्य जीव पाये जाते हैं।
- पूर्वी राजस्थान में रोहिड़ा के वृक्ष बड़ी संख्या में मिलते हैं। (पूर्वी राजस्थान में)।
- यहां धोकड़ा के पेड़ भी मिलते हैं।
(19) केला देवी अभ्यारण्य : करौली में।
- यहां त्रिकूट पर्वत पर कैला देवी का मंदिर है।
- यहां सर्वाधिक धौकड़े के पेड़ पाये जाते हैं।
(20) नाहरगढ़ अभ्यारण्य : जयपुर में। राजस्थान का दूसरा Biological park यही पर है। 04 जून,2016 को लोकार्पण।
- यहां सियार, नीलगाय व बघेरे पाये जाते हैं।
- यहां से द्रव्यवती नदी (अमानीशाह नाला) निकलता है। यह आथुनी कुण्ड से निकलती है।
- यहां देश का तीसरा बीयर रेस्क्यू सेन्टर खोला जायेगा।
(21) जमुआरामगढ़ अभ्यारण्य : यहां बघेरा व जरख पाया जाता है।
(22) रामसागर : धौलपुर में। यहां तालाब-ए-शाही है।
- 1622 में सालेह खाँ ने बनवाया।
- यहां भेड़िए पाये जाते हैं।
(23) वनविहार : धौलपुर में। उर्मिला सागर व झोरदा बांध उपस्थित है।
(24) केसर बाग : उदयमान सिंह ने स्थापित करवाया। यह धौलपुर के अन्तिम महाराजा थे।
(25) गजनेर : बीकानेर में। बटबड़ पक्षी, रेत का तीतर (इम्पीरियल सैण्ड ग्राऊव्ज)।
- खींचन– फलौदी (जोधपुर) के निकट स्थित इस गांव में रूस, उक्रेन व कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी कुरजाँ (डेमोसिलक्रेन) बड़ी संख्या में आते हैं।
- साम्भर झील में सर्दियों में राजहंस (फ्लेमिंगोज) बड़ी संख्या में आते हैं।
- सत्याग्रह उद्यान आउवा (पाली) में स्थित है।
- सितम्बर-2009 में चीता विशेषज्ञों का सम्मेलन हुआ।
- भालू संरक्षण क्षेत्र – सूंधा माता पर्वतीय संरक्षित क्षेत्र यह जालोर और सिरोही दो जिलों में विस्तरित है, को घोषित किया गया।
- चीता संरक्षित क्षेत्र – जैसलमेर के उत्तर पश्चिम में स्थित शाहगढ़ बल्ज क्षेत्र में प्रस्तावित।
- राज्य का पहला रक्षित वन खण्ड कन्जर्वेशन रिजर्व जोहड़बीड़ (बीकानेर) प्रस्तावित।
- ऐमू फार्म हाउस किरडोली (सीकर) में प्रारम्भ।
आखेट निषिद्ध क्षेत्र
- वन्य जीव अधिनियम की धारा 37 से सम्बन्धित है।
- राजस्थान में 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र हैं-
1. जोधपुर : सर्वाधिक जोधपुर में स्थित है- डोली धवा, गुढ़ा विश्नोई, देचूँ , फीट काशनी, साथिन, जम्मेश्वर जी तथा लौहावट।
2. बीकानेर : 5 आखेट निषिद्ध क्षेत्र- मुकाम, दियातरा (दियात्रा), जोड़बीर, बज्जू, देशनोक, 6 कोटसर संवत्सर
3. अजमेर : 3 आखेट निषिद्ध क्षेत्र-सोंखलिया, गंगवाना व तिलौराँ।
4. अलवर : बर्ड़ोद तथा जौड़िया।
5. नागौर : रोटूँ तथा जरौंदा।
6. जैसलमेर : उज्जला तथा रामदेवरा (दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र – 3100 किमी.2)।
7. जयपुर – महला (दूसरा सबसे छोटा – 5 किमी.2)।
8. दौसा – सैथल सागर (सबसे छोटा – 3 किमी.2)।
9. टोंक – रानीपुरा।
10.सवाईमाधोपुर – कंबालजी
11.बूंदी – कनकसागर
12.पाली – जवाई बांध
13. जालौर – सांचौर
14. बाड़मेर – धोरीमन्ना
15.बारां – सोरसन
16. चित्तौड़ – मैनाल
17. उदयपुर – बागी दौरा
18.बीकानेर – संवत्सर-कोटसर (सबसे बड़ा – 7091 किमी.2)।
- ऐसे जिले जहां पर कोई राष्ट्रीय पार्क, अभ्यारण्य व आखेट निषिद्ध क्षेत्र नहीं है- गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुन्झुनूं, डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा भीलवाड़ा।
मृग वन
1. चित्तौड़गढ़ मृगवन सबसे पुराना है – 1969 में बना।
2. लीला सेवड़ी – पुष्कर, अजमेर (1983)।
3. सज्जनगढ़ – 1984 में बना।
4. माचिया सफारी – जोधपुर (1985)।
5. संजय मृगवन – शाहपुरा, जयपुर (1985)।
6. अशोक विहार मृगवन – सचिवालय, जयपुर (1986)।
7. अमृता देवी मृगवन – खेजड़ली, जोधपुर (1993)।
जन्तुआलय
1. जयपुर जन्तुआलय – 1876 में रामसिंह द्वितीय ने। वन्य जीवों की 40 व पक्षियों की 75 जातियाँ उपस्थित। तीन रेंगने वाले जीव – मगरमच्छ, घड़ियाल, अजगर।
- यह घड़ियाल के कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है।
2. उदयपुर जन्तुआलय – 1878 में सज्जनसिंह ने गुलाब बाग में बनवाया।
3. बीकानेर जन्तुआलय – 1922 में, वर्तमान में बंद।
4. जोधपुर जन्तुआलय – 1936 में। ‘एवरी‘ पक्षीशाला के लिए प्रसिद्ध। 112 प्रकार के पक्षी पाये जाते हैं।
- गोड़ावण के कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रसिद्ध।
5. कोटा जन्तुआलय – 1954 में। उत्तरी भारत का प्रथम सर्प उद्यान यहां स्थित है।
- कैलाश सांखला – वन्य जीव प्रेमी, जोधपुर निवासी। The Tiger व The return of Tiger इनकी पुस्तकें हैं।
- राज्य पशु – चिंकारा – 1983 में घोषित। वैज्ञानिक नाम ( गजेला-गजेला)।
- राज्य पक्षी – गोड़ावण (Great Indian Busterd) – 1981 में घोषित।
- यह पक्षी तुकदार, नाहर, गुंजनी, हुंकना, माल मोड़नी आदि नामों से जाना जाता है।
- यह पक्षी सोरसन (बाराँ), सोंखलिया (अजमेर), जैसलमेर, बाड़मेर व बीकानेर क्षेत्रों में पाया जाता है।
- यह लगभग 4 फीट ऊँचा होता है।
- राज्य वृक्ष – खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया) – 1983 में घोषित।
- राज्य पुष्प – रोहिड़ा (टिकोमेला अण्डुलेटा) – 1983 में घोषित। इसे रेगिस्तान का सागवान, पश्चिम राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है।
- खेजड़ी में आजकल सलेसट्रीना कीड़ा व गाइकोटर्मा कवक इसे नष्ट कर रहे हैं।
- भारतीय धर्म ग्रन्थों में खेजड़ी के वृक्ष को ”keh’ कहा गया है।
- इसे रेगिस्तान का कल्पवृक्ष, राजस्थान का गौरव तथा स्थानीय भाषा में इसे ‘जांटी’ भी कहा जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- डॉ. सलीम अली (पक्षी विशेषज्ञ) ने गिद्धों को “भगवान की निजी भस्मक मशीन’ कहा।
- जोहड़बीड़ (बीकानेर) में गिद्धों के लिए प्रदेश का पहला कन्जर्वेशन रिजर्व क्षेत्र बनाया गया है।
- बाघ संरक्षण प्रशिक्षण केन्द्र :- शाहपुरा (जयपुर)
- गोवर्धन ड्रेनेज प्रोजेक्ट का सम्बन्ध केवलादेव राष्ट्रीय पार्क से है।
- राजस्थान का सर्वाधिक जैव विविधता वाला अभयारण्य :- सीता माता अभयारण्य (प्रतापगढ़)
- रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (बूंदी) राजस्थान का एकमात्र ऐसा अभयारण्य है जहाँ राष्ट्रीय पशु बाघ विचरण करते हैं।
- राजस्थान में विश्व स्तरीय बर्ड पार्क की स्थापना :- गुलाब बाग (उदयपुर)
- प्रोजेक्ट लेपर्ड :- तेंदुओं के संरक्षण हेतु संचालित प्रोजेक्ट।
- 2017-18 के बजट में घोषणा। 8 अभयारण्य व संरक्षण क्षेत्रों में संचालित।
- प्रदेश में नेचर पार्क की स्थापना :- बाघदड़ा वन क्षेत्र (उदयपुर)।
- स्लॉथ बियर सेन्चुरी :- वन विहार अभयारण्य (धौलपुर)।
- गोडावण हैचिंग सेन्टर :- जैसलमेर में (राष्ट्रीय मरु उद्यान)
- 30 जून, 2014 को ऊंट को राजकीय पशु घोषित किया गया है।
- राजस्थान का पहला भालु अभयारण्य :- सुंधामाता (जालौर-सिरोही)
- प्रदेश की दूसरी बर्ड सेन्चुरी :- बड़ोपल (हनुमानगढ़)
- प्रदेश की पहली बर्ड सेन्चुरी :- घना पक्षी विहार (भरतपुर)
वन्यजीव संरक्षण :-
(क) स्वस्थाने संरक्षण :- जैव मण्डल रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिजर्व।
(ख) बहिस्थाने संरक्षण :- बॉटेनिकल गार्डन, बीज बैंक, टिश्यू कल्चर लैब, जीन बैंक, चिड़ियाघर आदि।
प्रदेश के कन्जर्वेशन रिजर्व :- 11
(1) बीसलपुर (टोंक)
(2) जोहड़बीड़ गढ़वाला (बीकानेर)
(3) गोगेलाव (नागौर)
(4) रोटू (नागौर)
(5) बीड़ (झुंझुनूं)
(6) उम्मेदगंज पक्षी विहार (कोटा)
(7) शाकम्भरी (सीकर-झुंझुनूं)
(8) बांसियाल (झुंझुनूं)
(9) सुंधामाता (जालौर-सिरोही)
(10) गुढ़ा विश्नोइया (जोधपुर)
(11) जवाई बांध (पाली)
- कैलाश साँखला प्रकृति व्याख्यान केन्द्र :- सरिस्का अभयारण्य (अलवर) में 1998 में स्थापित।
- टाइगर प्रोजेक्ट :- 1973 में प्रारम्भ
- सांभर झील में सर्दियों में बड़ी संख्या में राजहंस (फ्लेमिंगोज) आते हैं।
- फ्लोरा ऑफ द इंडियन डेजर्ट :- प्रो. एम. एम. भण्डारी की पुस्तक।
- शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी) :- जोधपुर (1988 में स्थापना)
- रेड डाटा बुक :- IUCN द्वारा जारी, जिसमें संकटग्रस्त एवं विलुप्त प्रजातियों को सूचीबद्ध किया जाता है।
जिला | शुभंकर | |
अजमेर | – | खरमौर |
अलवर | – | सांभर |
बाँसवाड़ा | – | जलपीपी |
बाड़मेर | – | मरू लोमड़ी |
भीलवाड़ा | – | मोर |
बूँदी | – | सूर्खाब |
चित्तौड़गढ़ | – | चौसिंघा |
चूरू | – | काला हिरण |
जैसलमेर | – | गोडावण |
पाली | – | तेंदुआ |
सीकर | – | शाहीन |
उदयपुर | – | बिज्जू |
दौसा | – | खरगोश |
जयपुर | – | चीतल |
श्रीगंगानगर | – | चिंकारा |
सिरोही | – | जंगली मुर्गी |
जोधपुर | – | कुरजां |
- साँपों की शरणस्थली :- शेरगढ़ वन्य जीव अभयारण्य (बारां)।
- देश का प्रथम राष्ट्रीय मरु वानस्पतिक उद्यान :- माचिया सफारी (जोधपुर)
- राजस्थान की सबसे सुन्दर छिपकली :- यूब्लेफरिस
- रणथम्भौर के बाघों का “जच्चा घर’ :- रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (बंूदी)
- “परिन्दों का घर’ बंध बारेठा अभयारण्य को कहा जाता है।
- “विश्नोई’ सम्प्रदाय वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रसिद्ध। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक “जाम्भोजी’ थे।
- बाघ परियोजनाएँ :- 3 (रणथम्भौर, सरिस्का एवं मुकन्दरा हिल्स)
- वन्य जीव मण्डल :- 16
- रामसर स्थल :- 2 (घना पक्षी विहार (1981) एवं सांभर झील (1990))
- सबसे बड़ा आखेट निषिद्ध क्षेत्र :- संवत्सर कोटसर (बीकानेर – चूरू)
- राजस्थान में पहली लॉयन सफारी :- नाहरगढ़ (जयपुर) में।
- देश का पहला जन्तुआलय :- मद्रास में (1855)