महाराणा विक्रमादित्य (1528 – 1536 ई.)
Maharana Vikramaditya
- – यह महाराणा सांगा की हाड़ी रानी कर्णावती का पुत्र था। कर्णावती विक्रमादित्य की संरक्षिका थी।
- – विक्रमादित्य के समय मालवा और गुजरात के मुस्लिम शासक बहादुर शाह प्रथम ने चित्तौड़ पर 2 बार (1533 ई. तथा 1534 ई. में) आक्रमण किया।
- – 1534 ई. के दूसरे आक्रमण से पूर्व कर्णावती ने हुमायूँ को सहायता प्राप्त करने हेतु राखी भेजी थी परंतु हुमायूँ ने समय पर सहायता नहीं की। अतः बहादुर शाह के लंबे घेरे के बाद 1535 ई. में चित्तौड़ का पतन हुआ। इस समय चित्तौड़गढ़ का ‘दूसरा साका’ हुआ, जिसमें जौहर का नेतृत्व कर्णावती ने तथा केसरिया का नेतृत्व देवलिया (प्रतापगढ़) के बाघसिंह ने किया।
- – विक्रमादित्य ने मीराबाई को दो बार मारने का असफल प्रयास किया। मीरा वृंदावन चली गई तथा ‘रविदास’ को इसने अपना गुरु बनाया।
- – विक्रमादित्य की हत्या (1536 ई.) में दासी पुत्र बनवीर ने की थी। यह कुंवर पृथ्वीराज की दासी ’पुतल दे’ का पुत्र था।
- – बनवीर ने उदय सिंह को भी मारने का प्रयास किया परंतु पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन की बलि देकर उदय सिंह की रक्षा की। कीरत बारी (पत्तल उठाने वाला) की सहायता से उदय सिंह को कुम्भलगढ़ दुर्ग में पहुँचाया गया। इस समय कुम्भलगढ़ दुर्ग का किलेदार ‘आशा देवपुरा’ था।