History of Mewar Rajasthan History

बांसवाड़ा का गुहिल वंश || Banswada ka guhil vansh

 बांसवाड़ा का गुहिल वंश

  • –  वागड़ के शासक उदय सिंह ने अपने राज्य को दो भागों में बाँटा था।
  • –  माही नदी के पूर्व का भाग बांसवाड़ा कहलाया और जगमाल यहाँ का प्रथम शासक बना।
  • –  महारावल जगमाल ने लगभग 1530 ई. में बांसवाड़ा में गुहिल वंश की नींव रखी।
  • –  महारावल जगमाल ने बांसवाड़ा में भीलेश्वर महादेव मन्दिर व फूल महल का निर्माण करवाया।
  • –  महारावल जगमाल की पत्नी लाछकुंवरी ने तेजपुर गाँव में ‘बाई का तालाब’ निर्मित करवाया।
  • –  11 वीं शताब्दी में यहाँ परमारों का शासन था, जिसकी राजधानी आर्थुणा थी।
  • –  प्रताप सिंह ने 1576 ई. में मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार की। डूंगरपुर के आसकरण ने भी अकबर की अधीनता स्वीकार की थी।
  • –  1615 ई. की मुगल-मेवाड़ संधि के द्वारा बांसवाड़ा को मेवाड़ का हिस्सा मान लिया गया था, लेकिन 1617 ई. में समर सिंह ने मांडू में जहांगीर से मिलकर बांसवाड़ा को मेवाड़ से मुक्त करवा लिया।
  • –  1728 ई. में महारावल विशन सिंह ने मराठों को खिराज दिया।
  • –  बांसवाड़ा के चारो ओर परकोटे (शहरपनाह) का निर्माण पृथ्वी सिंह ने करवाया था। इनकी रानी अनोप कुंवरी ने 1799 ई. में लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण करवाया।
  • –  महारावल उम्मेद सिंह ने 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ 13 शर्तों की सहायक सन्धि की थी।
  • –  1857 की क्रान्ति के समय बांसवाड़ा के शासक महारावल लक्ष्मण सिंह थे। इन्होंने 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों का साथ दिया।
  • –  इनके अल्पव्यस्कता के समय मुंशी शहामत अली खाँ इनके संरक्षक थे।
  • –  यह एक शिल्प प्रेमी शासक था। इन्होंने राजराजेश्वर शिव मंदिर बनवाया तथा राजराजेश्वरी लिपि (सांकेतिक) बनवाई। इनके समय में बांसवाड़ा में कलदार सिक्कों का प्रचलन आरंभ हुआ।
  • –  महारावल शंभू सिंह (1905-13 ई.) ने सालिमशाही व लक्ष्मणशाही सिक्कों को बन्द कर कलदार रुपयों का चलन प्रारम्भ किया था। शंभू सिंह के समय शासन कार्य चलाने के लिए एक पाँच सदस्यीय कौंसिल की स्थापना की गई।
  • –  महारावल शंभू सिंह ने बांसवाड़ा में हेमिल्टन पुस्तकालय स्थापित किया था।
  • –  महारावल शंभू सिंह ने अंगेजों के मानगढ़ पहाड़ी पर आक्रमण के समय सहयोग किया था।
  • –  महारावल चन्द्रवीर सिंह (1944-48 ई.) बांसवाड़ा के गुहिल वंश के अन्तिम शासक थे।
  • –  चन्द्रवीर सिंह ने 25 मार्च, 1948 को संयुक्त राजस्थान के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि मैं अपने डेथ वारंट (मृत्यु दस्तावेज) पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ’।
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