History of Mewar Rajasthan History

महाराणा प्रताप (1572 – 1597 ई.) || Maharana Pratap

महाराणा प्रताप (1572 – 1597 ई.)

Maharana Pratap

  • –  राणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया) बादल महल (कटारगढ़), कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ। इनके बचपन का नाम ‘कीका’ था।
  • –  राजमहल की क्रांति–मेवाड़ के सामन्तों ने उदय सिंह द्वारा नियुक्त उत्तराधिकारी जगमाल को हटाकर राणा प्रताप को शासक बनाया। यह घटना राजमहल की क्रांति कहलाती है।
  • –  राज्याभिषेक – अखेराज सोनगरा ने जगमाल को गद्दी से हटाकर प्रताप को शासक बनाया। राज्याभिषेक महादेव बावड़ी (गोगुन्दा) में हुआ एवं सलूम्बर के सामंत कृष्णदास ने राणा प्रताप की कमर में तलवार बांधी। विधिवत राज्याभिषेक कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ, जिसमें मारवाड़ का राव चन्द्रसेन भी सम्मिलित हुआ।
  • –  अकबर द्वारा महाराणा प्रताप से संधि करने हेतु 4 संधि प्रस्तावक/शिष्ट मण्डल भेजे गए।
  • जलाल खाँ कोरची – नवम्बर, 1572
  • मिर्जा राजा मान सिंह – जून, 1573
  • भगवन्त दास – सितम्बर, 1573
  • टोडरमल – दिसम्बर, 1573 (प्रताप से इनकी मुलाकात नहीं हो पाई थी।)
  • –  सदाशिव कृत ‘राजरत्नाकर’ एवं रणछोड़ भट्ट कृत ‘अमरकाव्यम् वंशावली’ के अनुसार प्रताप ने मान सिंह का स्वागत व सत्कार उदयसागर झील के किनारे किया था।
  • –  अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध की व्यूह रचना मैग्जीन दुर्ग में रची थी।
  • –  कर्नल टॉड ने महाराणा प्रताप को ‘मेवाड़ केसरी कहा है।

हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून, 1576) –  

  • –  हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया।
  • –  राणा प्रताप ने युद्ध की योजना कुम्भलगढ़ दुर्ग में बनाई।
  • –  हल्दीघाटी युद्ध के समय प्रताप ने अपना मुख्य नियंत्रण केन्द्र केलवाड़ा, राजसमंद को बनाया।
  • –  इस युद्ध में राणा प्रताप की हरावल सेना का नेतृत्व एकमात्र मुस्लिम सेनापति हकीम खाँ सूर ने किया तथा चंदावल सेना का नेतृत्व राणा पूंजा ने किया था। मुगलों के हरावल सेना का नेतृत्व जगन्नाथ कच्छवाहा ने किया था।
  • –  हकीम खाँ सूरी का मकबरा खमनौर में स्थित है।
  • –  हल्दीघाटी में उपस्थित एकमात्र इतिहासकार बदायूँनी था, जो मुगल सेना के साथ आया था। इसने अपने ग्रंथ ‘मुन्तखाब उल तवारीख’ में हल्दी घाटी युद्ध का वर्णन किया है।

हल्दी घाटी युद्ध के अन्य नाम –

  • – मेवाड़ की थर्मोपल्ली – कर्नल टॉड
  • – खमनौर का युद्ध – अबुल-फजल
  • – गोगुन्दा का युद्ध – बदाँयूनी
  • – डॉ.ए.एल श्रीवास्तव ने हल्दीघाटी को ‘बादशाह बाग’ नाम दिया।
  • –  राजसमंद में प्रत्येक वर्ष ‘हल्दीघाटी महोत्सव’ मनाया जाता है।
  • –  राणा प्रताप के घायल होने पर झालाबीदा या झाला मन्ना ने राजचिह्न धारण किया।
  • –  राणा प्रताप का घोड़ा चेतक घायलावस्था में युद्ध भूमि से बाहर निकला। बलीचा गाँव (राजसमंद) में चेतक की मृत्यु हो गई थी। वहीं उसकी समाधि बनी हुई है।
  • –  हल्दीघाटी युद्ध में भाग लेने वाले महाराणा प्रताप के हाथी का नाम रामप्रसाद, लूणा था। अकबर ने इसका नाम पीर प्रसाद रख दिया था, जबकि मुगल हाथी का नाम मरदाना, गजमुक्ता था।
  • –  मिहत्तर खाँ नामक सैनिक ने युद्ध में अकबर के आने की झूठी सूचना फैलायी थी।
  • –  मान सिंह महाराणा प्रताप को मुगल अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा।
  • –  अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद उदयपुर व चित्तौड़ पर अधिकार कर उदयपुर का नाम ‘मुहम्मदाबाद’ रखा।
  • –  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को प्रधानमंत्री बनाया था। पाली के भामाशाह ने महाराणा प्रताप को स्वर्ण मुद्राएँ देकर आर्थिक सहायता की थी।
  • –  कर्नल टॉड ने भामाशाह को मेवाड़ का कर्ण कहा है।
  • –  अकबर ने अपने सेनापाति शाहबाज खाँ के नेतृत्व में कुम्भलगढ़ पर तीन बार (1577, 1578 तथा 1579 ई. में) आक्रमण किया लेकिन वह असफल रहा।
  • –  राणा प्रताप कुम्भलगढ़ दुर्ग राव भाण सोनगरा को सौंपकर स्वयं छाछन की पहाड़ियों में (उदयपुर) चले गए।
  • –  शेरपुर घटना (उदयपुर)– 1580 ई. में अमर सिंह ने अब्दुल रहीम (मुगल सेनापति) की बेगमों को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन महाराणा प्रताप ने उन्हें ससम्मान वापस भिजवाया।
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दिवेर का युद्ध (1582 ई.) –

  • –  दिवेर के युद्ध से महाराणा प्रताप की विजय श्रृंखला का श्री गणेश हुआ। इसमें प्रतापगढ़, बांसवाड़ा तथा ईडर रियासतों ने महाराणा प्रताप का साथ दिया था।
  • –  दिवेर युद्ध में प्रताप ने गुरिल्ला युद्ध पद्धति का प्रयोग किया।
  • –  कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा।
  • –  अकबर ने प्रताप के विरुद्ध अंतिम (पाँचवीं) बार 1585 ई. में जगन्नाथ कच्छवाहा को भेजा था।
  • –  जगन्नाथ कच्छवाहा की ’32 खम्भों की छतरी’ माण्डलगढ़ भीलवाड़ा में बनी हुई है।
  • –  प्रताप ने आमेर रियासत का मालपुरा (टोंक) छीन लिया। प्रताप ने यहाँ झालरा तालाब एवं नीलकण्ठ महादेव मन्दिर का निर्माण करवाया।
  • –  1585 ई. से 1597 ई. के मध्य प्रताप ने चित्तौड़ व माण्डलगढ़ को छोड़कर शेष सम्पूर्ण राज्य पर अधिकार कर लिया था।
  • –  1585 ई. में लूणा चावण्डिया को पराजित कर प्रताप ने चावण्ड को जीता व अपनी राजधानी बनाया। इसने चावण्ड में चामुण्डा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • –  चावण्ड शैली का विकास प्रताप के समय हुआ। इस शैली का प्रमुख चित्रकार नासिरुद्दीन था।
  • –  19 जनवरी, 1597 को 57 वर्ष की आयु में चावण्ड में प्रताप की मृत्यु हो गई। प्रताप की छतरी (8 खम्भों की छतरी) बांडोली (उदयपुर) में है।
  • –  फतेहसागर झील के किनारे राणा प्रताप का स्मारक (मोती मगरी, उदयपुर) स्थित है।
  • –  हेमरत्न सूरी, चक्रपाणि मिश्र, सादुलनाथ त्रिवेदी, ताराचन्द, माला सांदू तथा रामा सांदू आदि महाराणा प्रताप के दरबारी विद्वान थे।
  • –  गोरा बादल की चौपाई हेमरत्न सूरी की रचना है। राज्याभिषेक, विश्ववल्लभ (उद्यान विज्ञान की जानकारी), मुहुर्तमाला की रचना चक्रपाणि मिश्र ने की थी।
  • –  महाराणा प्रताप ने सादुलनाथ त्रिवेदी को मण्डेर नामक जागीर प्रदान की थी।
  • –  सलूम्बर के कृष्णदास चूण्डावत, ग्वालियर के रामशाह तोमर, हाकिम खाँ सूरी तथा पूंजा भील आदि महाराणा प्रताप के सहयोगी थे।
  • –  महाराणा प्रताप के संदर्भ में कर्नल टॉड ने लिखा – ‘आल्प्स पर्वत के समान अरावली में कोई भी ऐसी घाटी नहीं, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय या उससे अधिक कीर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो।’

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