देवल और छतरियाँ
- देवल – जिन स्मृति स्मारकों में चरण या देवताओं की प्रतिष्ठा कर दी जाती है और जिनमें गर्भगृह शिखर, नन्दी मण्डप, शिवलिंग बनाया जाता है उन्हें देवल कहा जाता है।
- टहला की छतरियाँ – अलवर जिले के टहला कस्बे की छतरियाँ मध्यकालीन छतरी निर्माण तथा भित्ति चित्रकला की जीती-जागती प्रतिमाएँ हैं।
- बत्तीस खंभों वाली छतरी (जगन्नाथ कछवाहा की छतरी) मांडल, भीलवाड़ा – यह छतरी ‘आमेर के जगन्नाथ कछवाहा’ की स्मृति में शाहजहाँ द्वारा निर्मित है। जगन्नथ कछवाहा का मांडल में मेवाड़ सेना के विरुद्ध युद्ध में निधन हो गया था।
- थानेदार नाथूसिंह की छतरी, शाहबाद, बाराँ – थानेदार नाथूसिंह ने 20 सितम्बर, 1932 में डाकुओं से मुकाबला किया। उनकी स्मृति में कोटा महाराव उम्मेदसिंह ने इस छतरी का निर्माण करवाया।
- चौरासी खम्भों की छतरी, बूँदी – देवपुरा गाँव के निकट राव अनिरुद्ध द्वारा धाबाई देवा की स्मृति में 1683 में निर्मित।
- बनजारों की छतरियाँ – लालसोट (दौसा) में हैं।
- नरायणा (जयपुर) – नरायणा में गौरीशंकर तालाब के निकट भोजराज के बाग में खंगारोत शासकों की भव्य छतरियाँ है।
✯ सवाई माधोपुर में कुकराज की घाटी में कुत्ते की छतरी बनी है।
✯ अमरसिंह राठौड़ की छतरी नागौर में है।
✯ मंडोर (जोधपुर) में ‘तैंतीस करोड़ देवताओं की साल’ महाराजा अभयसिंह के समय में बनाई गई।
✯ मंडोर से 4 मील दूर ‘पंचकुण्ड’ नामक स्थान पर राव चूण्डा, राव रणमल, राव जोधा व राव गांगा की छतरियाँ है।
✯ पंचकुण्ड के दक्षिण में मारवाड़ की रानियों की छतरियाँ स्थित है।
✯ राव मालदेव के समय से मारवाड़ के अधिपतियों की छतरियाँ पंचकुण्डों के बजाय मंडोर में बनने लगी थी।
- राजा मानसिंह प्रथम की छतरी – यह आमेर से लगभग दो किमी. की दूरी पर स्थित है।
- गैटोर की छतरियाँ – इस समूह में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह से लेकर माधोसिंह तक की छतरियाँ है।
- महाराणा प्रताप की छतरी – मेवाड़ में महाराणा प्रताप की छतरी केजड़ बाँध पर चावण्ड के पास बांडोली में है।
- आहड़ की छतरियाँ (महासतियाँ) – उदयपुर नगर से दो मील दूर आहाड़ (प्राचीन आघाटापुर) नामक स्थान पर महाराणा अमरसिंह से अब तक के सारे राणाओं की छतरियाँ विद्यमान हैं। इसमें महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय की छतरी सबसे भव्य एवं विशाल है।
- देवकुण्ड की छतरियाँ – बीकानेर से 5 मील दूर देवकुण्ड में राव जैतसी के समय से राजाओं, रानियों, पासवानों और उनकी संतानों की छतरियाँ बनी हैं। इन सबमें पुरानी छतरी राव कल्याणमल की छतरी है।
- गोवर्धन – मारवाड़ में वीर पुरुषों के गौरक्षार्थ दिवंगत हो जाने पर जो समाधि स्थल बने, वे गोवर्धन कहलाते हैं।
- मंडोर के देवल – जोधपुर नगर से छह मील दूर मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मण्डोर में जोधपुर के राजाओं की छतरियाँ निर्मित हैं। इसका प्राचीन नाम ‘माण्डव्यपुर’ है। मंडोर में सबसे प्राचीन राव गांगा की छतरी है।
- संत रैदास की छतरी – चित्तौड़गढ़ दुर्ग में मीरां के मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी स्थित है।
- मूसी महारानी की छतरी – अलवर राजप्रासाद के पिछवाड़े सागर के किनारे महाराजा बख्तावर सिंह और मूसी महारानी की स्मृति में 80 खंभों पर बनी इस दो मंजिली छतरी का निर्माण अलवर महाराजा विनयसिंह ने करवाया था।
- अजीत सिंह का देवल – जोधपुर के मण्डोर उद्यान में बना महाराजा अजीत सिंह का देवल स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है, जिसका निर्माण संवत् 1850 (सन् 1793 ई.) में करवाया गया था।
नैड़ा की छतरियाँ – ये अलवर में सरिस्का वन क्षेत्र में है।