सल्तनत काल

भारत में इस्लामिक शासन प्रारम्भ

–  दिल्ली से होने वाले तुर्कों के शासन को दिल्ली सल्तनत की संज्ञा दी गई और 13-16वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत के इतिहास को साधारणतया इसी नाम से पुकारा जाता है।

–  1206 से 1290 तक उत्तरी भारत के कुछ भागों पर जिन तुर्क शासकों ने शासन किया उन्हें फारसी इतिहासकारों ने मुइज्जी, कुत्बी, शम्सी तथा बल्बनी वर्गों में बाँटा है।

–  शम्सुद्दीन इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क था जबकि कुतुबुद्दीन ऐबक इल्बरी तुर्क नहीं था।

–  बलबन ने स्वयं को इल्बरी तुर्क कहा है।

–  हबीबुल्लाह ने आरम्भिक तुर्क शासन को ‘मामलूक’ शासन कहा है। मामलूक फारसी शब्द है। मामलूक – गुलाम माता-पिता की स्वतंत्र संताने।

(गुलाम वंश)

शासक का नाम

कालावधि

(1)

कुतुबुद्दीन ऐबक

1206-1210 ई.

(2)

आराम शाह

1210–1211 ई.

(3)

इल्तुतमिश

1211–1236 ई.

(4)

रुकनुद्दीन फिरोज

1236 ई.

(5)

रजिया

1236-40 ई.

(6)

बहरामशाह

1240-1242 ई.

(7)

अलाउद्दीन मसूदशाह

1242-1246 ई.

(8)

नासिरुदीन महमूद

1246-1266 ई.

(9)

बलबन

1266 – 87 ई.

(10)

कैकुबाद

1287-90 ई.

(11)

कैयूमर्स

1290 ई.

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210) :

–  1206 ई. में तुर्की गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का उत्तराधिकारी बना।

–  उसने सुल्तान का पद धारण न कर ‘मलिक’ तथा ‘सिपहसालार’ के पद से शासन किया इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

–  उसका राज्याभिषेक लाहौर में हुआ।

–  उसे भारत का प्रथम मुस्लिम शासक भी माना जाता है।

–  अपनी उदारता तथा दानी स्वभाव के कारण वह लाखबख्श तथा ‘हातिम द्वितीय’ के नाम से भी जाना जाता है।

–  उसके दरबार में अदब-उल हर्ब के लेखक फख्र-ए-मुदब्बिर तथा ताज-उल-मासिर के लेखक हसन निजामी रहते थे।

–  कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद’ तथा ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ के निर्माण का श्रेय ऐबक को है।

–  शेख ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य इसी समय आरम्भ हुआ लेकिन इल्तुतमिश के समय पूरा हुआ।

–  1210 में ‘चौगान’ (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई।

–  ऐबक का मकबरा लाहौर में है।

आरामशाह (1210-1211) :

–  ऐबक की मृत्यु के बाद आरामशाह शासक बना।

–  इल्तुतमिश ने दिल्ली के समीप ‘जूद’ में आरामशाह को पराजित किया।

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश : (1211 – 1236)

–    इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क था।

–    कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक लाख जीतल में इल्तुतमिश को खरीदा तथा उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह किया।

–  सुल्तान बनने से पूर्व इल्तुतमिश बदायूँ का सूबेदार था।

–  यह दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने ”सुल्तान” की उपाधि धारण की।

–  इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम लाहौर के स्थान पर ‘दिल्ली’ को अपनी राजधानी बनाया।

–  इल्तुतमिश ने बगदाद के खलीफा बिल्लाह मंसूर से 1229 ई. में धार्मिक व राजनीतिक मान्यता का अधिकार पत्र प्राप्त किया जिससे दिल्ली सल्तनत को औपचारिक मान्यता प्राप्त हुई।

–  इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का प्रथम वैधानिक एवं पूर्ण सम्प्रभुता सम्पन्न शासक माना जाता है

–  दिल्ली राजधानी स्थानान्तरित करने के कारण इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

–  इल्तुतमिश ने ‘सुल्तान’ व ‘नासिर-आमिर-उल मौमनिन’ की उपाधि धारण की।

–  इल्तुतमिश ने अपने प्रशासन को सुव्यवस्थित व सुचारु चलाने के लिए चालीस वफादार सरदारों का एक दल “तुर्कान-ए-चिहलगानी” (चालीस दल) का गठन किया जिसे बाद में बलबन ने समाप्त कर दिया था। बरनी ने इसे ‘तुर्कान-ए-चहलगानी’ कहा ।

–  इल्तुतमिश के विरोधी सरदारों में यल्दोज (गजनवी  का सुल्तान) नासिरुद्दीन कुबाचा (सिंध व  मुल्तान का गवर्नर) अली मर्दान  (बंगाल के गवर्नर) प्रमुख थे।

–  तराइन के तृतीय युद्ध (जनवरी, 1215-16) में इल्तुतमिश ने ताजुदीन यल्दौज को पराजित कर उसे बन्दी बनाया उसके बाद में उसका वध करवा दिया।

–  इल्तुतमिश ने कुबाचा को 1227-28 में परास्त कर मुल्तान व सिंध को जीत लिया।

–    इल्तुतमिश 1221 ई. में दिल्ली सल्तनत को मंगोल आक्रमण से बचाया जब चंगेज खाँ ख्वारिज्म के शाह जलालुद्दीन मंगबरनी का पीछा करते हुए सिंधु नदी तक आ गया लेकिन इल्तुतमिश ने उसे दिल्ली में शरण देने से मना कर दिया।

–    चंगेज खाँ का वास्तविक नाम तिमुचिन था वह अपने आप को ईश्वर का अभिशाप मानता था।

–    इल्तुतमिश ने 1226 ई. में रणथम्भौर पर आक्रमण किया वह चित्तौड़  सहित राजधानी नागदा पर अधिकार करना चाहता था।

–    रणथम्भौर अभियान में शासक जैत्रसिंह ने ‘भुताला युद्ध’ में इल्तुतमिश को बुरी तरह पराजित किया लेकिन इस समय राजधानी नागदा पूर्ण से नष्ट हो गई जिसके कारण जैत्रसिंह ने ‘चित्तौड़’ को  नई राजधानी बनाया।

–    इल्तुतमिश ने उज्जैन के महाकाल  मंदिर तथा 1234-35 ई. में ‘भिलसा’ (M.P.) के हिन्दू मंदिर को लूटा।

–    इल्तुतमिश के प्रशासनिक सुधार:-

    (1) चालीस दल का गठन

    (2) इक्ता प्रणाली विकसित करना

–    “इक्ता” का सर्वप्रथम प्रयोग मोहम्मद गौरी ने किया किन्तु संस्था का रूप इल्तुतमिश ने दिया।

–    राज्य के अधिकारियों व सैनिकों को वेतन के बदले दी जाने वाली जमीन/जागीर – ‘इक्ता’ कहलाती थी। इसका प्रमुख ‘इक्तेदार’ कहलाता था।

–    वह पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के जारी किए तथा टकसाल का नाम सिक्कों पर लिखवाने की परम्परा शुरू की।

–    इल्तुतमिश ने चाँदी का टका (175 ग्रेन) एवं ताँबे का जीतल प्रारंभ किया।

–  इल्तुतमिश ने नागौर में अतारकिन का दरवाजा बनवाया।

–  इल्तुतमिश ने दिल्ली व बदायूँ में ‘मदरसा-ए-मुइजी’ का निर्माण करवाया।

–    इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार का निर्माण पूरा करवाया तथा इसके ऊपर तीन मंजिले और बनवाई।

–    कुतुबमीनार का वास्तुकार फजल इब्न-अबुल माली था।

–    इल्तुतमिश को मकबरा निर्माण शैली का जन्मदाता माना जाता है।

–  इल्तुतमिश ने सुल्तानगढ़ी में अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा बनवाया जो सल्तनत काल का प्रथम मकबरा है।

–  इल्तुतमिश ने ‘मदरसा-ए-नासिरी’ का निर्माण अपने पुत्र की स्मृति में करवाया।

–    इल्तुतमिश में हौज-ए-शम्सी का निर्माण भी दिल्ली व बदायूँ मे करवाया।

–  इल्तुतमिश के दरबार मे नूरूदीन मुहम्मद औफी ने “जवामि-उल-हिकायत” नामक ग्रन्थ की रचना की। इसी पुस्तक में सर्वप्रथम चुम्बकीय कम्पास का उल्लेख मिलता है।

–  इल्तुतमिश के शासन काल में फख्रे मुदब्बिर ने “आदाब-उल-हर्ब” नामक प्रथम भारतीय मुस्लिम ग्रन्थ तैयार किया।

–  डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने इल्तुतमिश को  “भारत में गुलाम वंश का वास्तविक संस्थापक”  माना है।

–  आर.पी.त्रिपाठी ने इल्तुतमिश को “भारत में मुस्लिम राज्य का वास्तविक संस्थापक” माना है। 

रुकनुद्दीन फिरोज (1236) :

–  इल्तुतमिश ने अपने जीवनकाल में पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को उत्तराधिकारी बनाया था लेकिन महमूद की अकस्मात मृत्यु के बाद उसने योग्य पुत्री रजिया को उत्तराधिकारी बनाया परन्तु सुल्तान की मृत्यु के बाद अमीरों ने फिरोज को पदासीन कर दिया।

–  फिरोज के शासनकाल में वास्तविक सत्ता उसकी माँ शाहतुर्कान के हाथों में थी।

रजिया (1236-1240) :

–  वह मध्यकालीन भारत की पहली तथा अंतिम मुस्लिम महिला शासक थी।

–  दिल्ली के नागरिकों ने पहली बार अपने आप उत्तराधिकार के मामले का निर्णय किया था।

–  उसने जुनैदी (इल्तुतमिश के भूतपूर्व वजीर) के नेतृत्व में प्रान्तीय शासकों के गठबंधन को समाप्त कर दिया।

–  उसने लाहौर के गवर्नर याकूत खाँ तथा भटिंडा के गवर्नर अल्तूनिया के विद्रोहों को दबाया।

–  उसने अल्तूनिया से विवाह कर संयुक्त सेना का नेतृत्व करते हुए दिल्ली पर चढ़ाई की, लेकिन बहराम ने उसे पराजित कर दिया।

–  अपने सैनिकों द्वारा परित्यक्त कर दिए जाने पर लुटेरों ने उसे मार डाला।

–  उसकी मृत्यु कैथल के समीप हुई।

बहरामशाह (1240-1242) :

–  रजिया का उत्तराधिकारी बहरामशाह एक शक्तिहीन तथा अक्षम शासक था।

–  उसके शासनकाल में तुर्क सरदारों ने एक नवीन पद नायब का सृजन किया “नाइब-ए-मामलिकात”।

अलाउद्दीन मसूदशाह (1242-1246) :

–  इसके शासनकाल में बलबन ने नासिरुद्दीन महमूद तथा उसकी माँ से मिलकर नासिरुद्दीन महमूद को शासन पर बैठाया।

नासिरुद्दीन महमूद (1246-1265) :

–  सुल्तान ने बलबन को ‘नायब-ए-मामलकात’ के पद पर नियुक्त किया।

–  1253-54 के संक्षिप्त अंतकाल को छोड़कर बलबन दिल्ली सल्तनत का वास्तविक शासक बना रहा।

–  सुल्तान ने बलबन को ‘उलुग खाँ’ की उपाधि प्रदान की।

–  पूर्व में बलबन को हांसी भेज दिया गया था।

–  सुल्तान कुरान की नकल कर हस्तलिपियाँ तैयार करता था।

बलबन (1266-1287) :

–  बलबन के सिंहासन पर बैठने के साथ ही एक शक्तिशाली केन्द्रित शासन का युग आरम्भ हुआ इल्बरी तुर्क था

–  कुलीन घरानों तथा प्राचीन वंशों के व्यक्तियों से अपने को संबंधित करने के लिए बलबन ने प्रसिद्ध तुर्की योद्धा अफरासियाब का वंशज घोषित किया।

–  बलबन का मुख्य कार्य चहलगानी या तुर्की सरदारों की शक्ति भंग कर सम्राट की शक्ति एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था। इसके लिए उसने अपने रिश्तेदार शेर खाँ को विष देकर मार डाला।

–  बलबन ने सैन्य मंत्रालय बनाया-दीवान-ए-अर्ज

–  उसने ‘लौह एवं रक्त’ की नीति अपनाई।

–  तुर्क अमीरों के प्रभाव को कम करने के लिए बलबन ने सिजदा (घुटने पर बैठकर सिर झुकाना) तथा पेबोस (सम्राट के सामने झुककर पाँव को चूमना) की प्रथा आरम्भ की जो मूलतः ईरानी एवं गैर इस्लामी था।   

सल्तनतकालीन

स्थापत्यकला

1.कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

कुतुबुद्दीन ऐबक (दिल्ली)

2. कुतुबमीनार

कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश (दिल्ली)

3. अढ़ाई दिन का झोंपड़ा

कुतुबुद्दीन ऐबक (अजमेर)

4. लाल महल

बलबन (दिल्ली)

5. अलाई दरवाजा

अलाउद्दीन खिलजी (दिल्ली)

6. जमैयतखाना मस्जिद

अलाउद्दीन खिलजी (दिल्ली)

7. सिकन्दर लोदी का मकबरा

इब्राहिम लोदी (दिल्ली)

8. सुल्तानगढ़ी

इल्तुतमिश

9. हौज-ए-शम्सी

इल्तुतमिश

10. अतारकिन का दरवाजा

इल्तुतमिश

11. हौज-ए-खास

अलाउद्दीन खिलजी

12. तुगलकाबाद

गयासुद्दीन तुगलक

13.आदिलाबाद का किला

मुहम्मद बिन तुगलक

14. जहांपनाह नगर

मुहमद बिन तुगलक

15. कोटला फिरोजशाह

फिरोजशाह तुगलक

16. खान-ए-जहां तेलंगानी  का मकबरा (अष्टभुजीय)

जूनाशाह

17. काली मस्जिद

फिरोजशाह तुगलक

–  उसने नौरोज (फारसी) प्रथा को भी आरम्भ किया।

–  मृत्यु के पूर्व बलबन ने बुगरा खाँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। परन्तु बुगरा द्वारा अनिच्छा जाहिर करने पर कैखुसरो को उत्तराधिकारी बनाया गया।

–  बलबन ने राजत्व को दैवी संस्था मानते हुए राजा को नियामते खुदाई (ईश्वर का प्रतिनिधि) घोषित किया।

–  उसने सिक्कों पर खलीफा का नाम खुदवाया।

–  उसने अमीर खुसरो तथा अमीर हसन को राज्याश्रय दिया।

–  बलबन की मृत्यु के बाद कैखुसरो सुल्तान बना लेकिन दिल्ली के अमीरों ने उसे अपदस्थ कर बलबन के एक और पौत्र कैकुबाद को सुल्तान बना दिया।

–  कैकुबाद को पिता बुगरा खाँ के जीवित रहने पर ही सुल्तान बना दिया गया।

–  कैकुबाद ने जलालुद्दीन खिलजी को अपना सेनापति बनाया।

–  बाद में तुर्क सरदारों ने उसके पुत्र शम्सुद्दीन क्यूमर्स को सुल्तान घोषित किया।

–  जलालुद्दीन खिलजी ने क्यूमर्स की हत्या कर खिलजी राजवंश की स्थापना की।

खिलजी वंश

जलालुद्दीन खिलजी (1290-1296) :

–  जलालुद्दीन खिलजी ने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया।

–  गैर तुर्की मलिकों ने खिलजी विद्रोह का स्वागत किया।

–  खिलजी ने तुर्कों को उच्च पदों से वंचित नहीं किया बल्कि उसका एकाधिकार समाप्त कर दिया।

–  वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने अपने विचारों को स्पष्ट रूप से रखा कि राज्य का आधार प्रजा का समर्थन होना चाहिए चूँकि भारत की अधिकांश जनता हिन्दू थी, अतः सही अर्थों में यहाँ कोई राज्य इस्लामी राज्य नहीं हो सकता था।

–  उसके शासनकाल में 1292 ई. में मंगोल आक्रमणकारी अब्दुल्ला ने पंजाब पर आक्रमण किया।

–  देवगिरी के सफल अभियान के बाद जब अलाउद्दीन वापस आ रहा था तो सुल्तान स्वयं उससे मिलने कड़ा गया जहाँ अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा से गले मिलते समय हत्या कर दी।

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) :

–  अलाउद्दीन खिलजी पहले कड़ा का गवर्नर था।

–  बचपन में वही अली गुरशस्प नाम से प्रसिद्ध था।

–  उसके राज्यारोहण के साथ सल्तनत के साम्राज्यवादी युग का आरम्भ हुआ।

–  उसका राज्याभिषेक बलबन के लाल महल में हुआ था।

–  उसने सिकन्दरसानी ‘द्वितीय सिकन्दर’ की उपाधि धारण की।

–  उसके शासनकाल में अनेक मंगोल आक्रमण हुए।

अलाउद्दीन खिलर्जी के प्रमुख अभियान

–  उसने 1298 ई. में गुजरात के रायकर्ण, 1300-1301ई. में रणथम्भौर के हम्मीरदेव, 1303 ई. में चित्तौड़ के रतनसिंह, 1305 ई. में मालवा के महलक देव तथा सिवाना के शीतलदेव एवं 1311ई. में जालोर के कान्हड़देव पर आक्रमण किया।

–  अलाउद्दीन की समकालीन दक्षिण की महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ थीं-देवगिरी के यादव, तेलंगाना के होयसल, वारंगल के काकतीय तथा मदुरा के पांड्य राजवंश।

–  अलाउद्दीन प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिणी राज्यों पर आक्रमण किया।

–  उसने देवगिरी पर आक्रमण कर रामचन्द्र को पराजित किया तथा उसे ‘राय रायान’ की उपाधि प्रदान की। इसके अलावा नवसारी का किला भी रामचन्द्र को मिला।

–  1310 ई. में उसने वारंगल के काकतीय शासक प्रताप रुद्रदेव को पराजित किया। यहीं से विश्वप्रसिद्ध ‘कोहिनूर’ हीरा प्राप्त हुआ।

–  1310-11ई. में होयसल राज्य के शासक वीर बल्लाल-III पर आक्रमण किया गया।

–  1311-12 ई. में माबर (मदुरा) के पांड्य राज्य पर आक्रमण कर विशाल धन को प्राप्त किया गया।

–  अलाउद्दीन का अंतिम सैन्य अभियान दक्षिण भारत में देवगिरी के नए शासक शंकरदेव के विरुद्ध हुआ।

–  दक्षिणी राज्यों में आक्रमण का नेतृत्व मलिक काफूर द्वारा किया गया।

–  दक्षिणी राज्यों से धन वसूला गया न कि उसे सल्तनत में शामिल किया गया।

अलाउद्दीन के प्रशासनिक सुधार :

–  उसने धर्म को राजनीति से अलग किया।

–  दीवान-ए-रियासत विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने ही की थी जो व्यापार वाणिज्य मंत्रालय था।

–  सैन्य व्यवस्था में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उसने दाग तथा हुलिया प्रथा की शुरुआत की।

–  उसने सेना की सीधी भर्ती एवं नकद वेतन देने की प्रथा को आरम्भ किया।

बाजार नियंत्रण प्रणाली

–  अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख आर्थिक देन बाजार नियंत्रण नीति है।

–    वित्तीय एवं राजस्व सुधारों में रुचि लेन वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था।

–    दक्षिण विजय से अलाउद्दीन को अत्यधिक धन प्राप्त होने के कारण मुद्रा का प्रसार बढ़ गया और मुद्रा का मूल्य घटने से कीमतें बढ़ गई।

अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण नीति के स्रोत (पुस्तकें)

–    इब्नबतूता की रेहला

–    इसामी की फुतुह-उस- सलातीन

–    अमीर खुसरो की खजाइन-उल फुतुह

–    जियाउद्दीन बनरी की तारीख-ए-फिरोजशाही

–    शेख नासिरुद्दीन की खायरूल मजलिस

बाजार नियंत्रण नीति के उद्देश्य

–    चिश्ती संत नासिरुद्दीन महमूद चिराग-ए-दिल्ली अमीर खुसरो के अनुसार बाजार नियंत्रण का उद्देश्य प्रजा हित था।

–    बरनी के अनुसार बाजार नियंत्रण का उद्देश्य कम खर्चे पर अधिक सेना रखना था।

बाजार नियंत्रण का क्षेत्र

–    मोरलैण्ड के अनुसार मूल्य नियंत्रक का प्रयास मात्र दिल्ली तक सीमित था। क्योंकि दिल्ली में ही अधिकांश सेना केन्द्रित थी।

–    फरिश्ता के अनुसार बाजार नियंत्रण सुल्तान द्वारा शासित अधिकांश प्रान्तों में लागू था।

–    वास्तव में मंगोल आक्रमण से सुरक्षा हेतु एक आवश्यक विशाल सेना के रख-रखाव हेतु बाजार नियंत्रण प्रणाली को अपनाया गया।

बाजार नियंत्रण से संबंधित अधिकारी

–    दीवान-ए- रियासत

–    शहना-ए- मण्डी

–    बरीद-ए-मण्डी

अलाउद्दीन के समय प्रमुख बाजार

–    अलाउद्दीन ने दिल्ली में तीन तरह के बाजार बनवाए:-

    कपड़े एवं अन्य निर्मित वस्तुओं का बाजार

    खाद्यान्न एवं अनाज बाजार

    घोड़ों, मवेशियों व दासों के बाजार

–  सैनिकों को एक निश्चित वेतन पर जीवित रखने के उद्देश्य से अलाउद्दीन खिलजी ने सभी वस्तुओं के मूल्य निश्चित कर दिए।

–  वह प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया। भूमि पर उपज का 50% भूमिकर या खिराज के रूप में लेने की घोषणा की गई जिसे जाबिता/मसाहत प्रणाली कहा जाता है।

–  आवास कर (घरी), चराईकर नामक कर भी लगाए गए।

–  उसने अमीर खुसरो तथा हसन को प्रश्रय दिया।

–  1316 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

मुबारक खिलजी (1316-1320 ई.) :

–  उसने ‘खिलाफत’ के प्रति अपनी भक्ति नकारते हुए स्वयं को इस्लाम का सर्वोच्च प्रधान, स्वर्ग तथा पृथ्वी के अधिपति का खलीफा घोषित किया।

तुगलक वंश

गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) :

–  गाजी मलिक ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक शाह की उपाधि धारण कर सल्तनत के तीसरे राजवंश की स्थापना की।

–  उसने भू-मापीकरण के अलाउद्दीन खिलजी की प्रथा को बंद करवा दिया।

–  वह प्रथम शासक था जिसने सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण की योजना बनाई।

–  लगान की दर घटाकर उसने उपज का 1/11वाँ हिस्सा तय कर दिया।

–  उसने तुगलकाबाद के नगर-दुर्ग का निर्माण करवाया तथा सल्तनत काल के स्थापत्य का एक नवीन जीवन तैयार किया।

–  उसके शासनकाल में शहजादे जौना खाँ के नेतृत्व में वारंगल के काकतीय तथा मदुरा के पाण्ड्य साम्राज्य को विजित करके दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया गया।

–  1325 ई. में जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल के सैनिक अभियान से लौट रहा था तब शहजादे जौना खाँ ने सुल्तान का स्वागत करने के लिए दिल्ली के पास अफगानपुर गाँव में लकड़ी का एक मंडप तैयार किया। इसी मंडप के अचानक गिर जाने से सुल्तान की मृत्यु हो गई।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) :

–  मुहम्मद बिन तुगलक को अन्तर्विरोधों का विस्मयकारी मिश्रण, रक्तपिपासु परोपकारी/पागल भी कहा गया है। निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक के बारे में कहा था कि ’दिल्ली अभी बहुत दूर है।‘

–  गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खाँ मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से सत्ता पर आसीन हुआ।

–  उसके बारे में बरनी के ’तारीख-ए-फिरोजशाही’ तथा इब्नबतूता के ’रेहला‘ से जानकारी मिलती है।

–  अफ्रीकी यात्री इब्न बतूता को सुल्तान ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया तथा 1342 ई. में वह सुल्तान के राजदूत की हैसियत से चीन गया था।

–  मुहम्मद बिन तुगलक अपनी पाँच योजनाओं के लिए प्रसिद्ध है।

–  सुल्तान का सबसे विवादास्पद निर्णय राजधानी परिवर्तन का था जिसके तहत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि (दौलताबाद) स्थानान्तरित कर दिया गया।

–  सुल्तान की दूसरी परियोजना थी प्रतीक मुद्रा का प्रचलन।

–  सुल्तान की तीसरी परियोजना भी खुरासान अभियान।

–  कराचिल अभियान के तहत सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना कुमायूँ-गढ़वाल क्षेत्र में स्थित कराचिल को जीतने के लिए सेना भेजी गई।

–  अंतिम परियोजना के तहत सुल्तान ने ‘दोआब क्षेत्र’ में कर वृद्धि कर दी। दुर्भाग्यवश इसी समय अकाल पड़ गया तथा अधिकारियों द्वारा जबरन वसूली के कारण उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया तथा परियोजना असफल रही।

–  कृषि में विस्तार तथा विकास के लिए ‘दीवान-ए-अमीर-ए कोही’ नामक विभाग की स्थापना की गयी।

–  मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में ही दक्षिण में 1336 में हरिहर तथा बुक्का नाम के दो भाइयों ने स्वतंत्र विजयनगर राज्य की स्थापना की।

सल्तनतकालीन पुस्तकें

1. तबकात – ए – नासिरी

मिनहाज – उल – सिराज (फारसी)

2. तारीख – ए – फिरोजशाही

जियाउद्दीन बरनी (फारसी)

3. फतवा – ए – जहाँदारी

जियाउद्दीन बरनी (फारसी)

4. खजाइन – ए – फुतूह

अमीर खुसरो (फारसी)

5. नूहसिपेहर

अमीर खुसरो (फारसी)

6. आशिका

अमीर खुसरो (फारसी)

7. किरान – उल – सादेन

अमीर खुसरो (फारसी)

8. खजाइन – उल – फुतूह

अमीर खुसरो (फारसी)

9. तुगलकनामा

अमीर खुसरो (फारसी)

10. फुतूह – उस – सलातीन

ख्वाजा अब्दुल्ला मलिक इसामी (फारसी)

11. तारीख – ए – फिरोजशाही

राम्से सिराज अफीक (फारसी)

12. फुतूहात – ए – फिरोजशाही

फिरोजशाह तुगलक (फारसी)

13. तारीख – ए – मुबारकशाही

सरहिन्दी (फारसी)

14. तारीख – ए – यामिनी

उत्वी

15. जफरनामा

सारफुद्दीन अली याजिद

फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) –

–  फिरोजशाह तुगलक राजपूत माँ (रणमल की पुत्री बीबी नैला का पुत्र था) का पुत्र था।

–  उसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया।

–  सिंचाई पर भी ‘हक-ए-शर्ब’ नामक सिंचाई कर लगाया गया।

–  उसने उत्तम कोटि की फसलों का प्रचलन किया तथा फलों के 1200 बाग लगाए गए।

–  सेना को नकद वेतन के बदले भू-राजस्व वाले गाँव दिए जाते थे।

–  1361 ई. में नगरकोट पर आक्रमण कर वहाँ के शासक को पराजित किया तथा ज्वालामुखी मंदिर को तोड़ा।

–  निर्धनों की सहायता के लिए उसने ‘दीवान-ए-खैरात’ विभाग की स्थापना की।

–  फिरोजाबाद, जौनपुर, हिसार, फतेहाबाद आदि नगरों की स्थापना भी उसी के शासनकाल में हुई।

–  उसके शासनकाल में ही मेरठ एवं टोपरा में स्थित अशोक स्तम्भों को दिल्ली लाकर स्थापित किया गया।

–  दासों के संरक्षण हेतु ‘दीवान-ए-बंदगान’ नामक एक अलग विभाग की स्थापना की गई।

–  उसने जियाउद्दीन बरनी तथा शम्स-ए-सिराज अफीफ को संरक्षण दिया।

–  फिरोजशाह का अंतिम सैनिक अभियान 1365-67 में थट्टा में हुआ जो सफल नहीं रहा।

–  सल्तनत के पतन तथा विघटन की जो प्रक्रिया मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के अंतिम दिनों में प्रारम्भ हुई थी, वह फिरोजशाह के शासनकाल में और तीव्र हो गई।

परवर्ती तुगलक सुल्तान :

–  फिरोजशाह तुगलक के उपरान्त उसका एक पौत्र शाह गयासुद्दीन तुगलक II के नाम से गद्दी पर बैठा। अगले 5 वर्षों के दौरान तीन सुल्तान अबूबक्र, मुहम्मद शाह तथा अलाउद्दीन सिकन्दरशाह गद्दी पर बैठे।

–  नासिरुद्दीन महमूद (1394-1412) तुगलक वंश का अंतिम शासक था।

–  नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में मंगोल सेनानायक तैमूर का दिसम्बर, 1398 ई. में आक्रमण हुआ।

–  महमूद के साम्राज्य के बारे में कहा जाता था कि शहंशाह की सल्तनत दिल्ली से पालम तक फैली हुई है।

सैय्यद वंश (1414-1451 ई.) :

–  खिज्र खाँ सैयद वंश का संस्थापक था।

–  तत्पश्चात् मुबारकशाह (1421-1434 ई.) उसका उत्तराधिकारी बना।

–  अंतिम सैय्यद शासक शाह आलम को गद्दी से उतारकर वजीर बहलोल लोदी ने नए राजवंश की नींव रखी।

–  मुबारकशाह के शासनकाल में याहिया बिन सरहिन्दी ने तारीख-ए-मुबारकशाही नामक ग्रंथ की रचना की।

लोदी वंश

बहलोल लोदी (1451-1489 ई.) :

–  बहलोल लोदी अफगानिस्तान के गिलजाई कबीले की शाखा शाहूखेल में पैदा हुआ था।

–  उसने जौनपुर के शर्की शासक को पराजित कर जौनपुर को पुनः सल्तनत में शामिल किया।

–  ग्वालियर अभियान उसका अंतिम सैनिक अभियान था।

–  उसने बहलोली सिक्के चलाए।

सिकन्दर लोदी (1489-1517 ई.) :

–  उसने 1504 ई. में आगरा नगर का निर्माण करवाया तथा उसके बाद अपनी राजधानी को आगरा स्थानान्तरित कर दिया।

–  भूमि माप के लिए उसने ‘सिकन्दरी गज’ का प्रयोग किया।

–  वह ‘गुलरुखी’ नाम से कविताएँ लिखता था।

इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.) :

–  उसने ग्वालियर के शासक विक्रमजीत सिंह को अपने अधीन किया लेकिन मेवाड़ शासक राणा सांगा के विरुद्ध उसका अभियान असफल रहा।

–  पानीपत के प्रथम युद्ध में तैमूरवंशी शासक बाबर के साथ हुए युद्ध में 21 अप्रैल, 1526 को इब्राहिम लोदी पराजित हुआ।

दिल्ली सल्तनत का प्रशासन

–  तुर्क सुल्तानों ने स्वयं को बगदाद के अब्बासी खलीफा का स्वामिभक्त उत्तराधिकारी घोषित किया तथा खुतबे पर भी उसके नाम को शामिल किया।

–  सुल्तान न्यायपालिका, कार्यपालिका का प्रधान होता था।

–  उत्तराधिकार का कोई स्वीकृत नियम नहीं था।

–  वजीर राज्य का सर्वोच्च मंत्री होता था।

–  भारतीय वजारत का स्वर्णकाल ‘तुगलक काल’ को कहा जाता है।

–  प्रान्तीय शासन के प्रधान को वली या मुक्ति कहा जाता था।

–  प्रान्तों को ‘इक्ता’ भी कहा जाता था।

– –  जौनपुर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई जौन खाँ की स्मृति में करवाई थी।

–  1394 ई. में सुल्तान मुहम्मद तुगलक II ने अपने वजीर ख्वाजा जहाँ मलिक सरवर को ‘मलिक-उस-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की।

–  1398 ई. में तैमूर आक्रमण का लाभ उठाकर मलिक-उस-शर्क ने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया तथा शर्की वंश की नींव डाली।

–  इस वंश का शासक शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह शर्की स्थापत्य के जौनपुर या शर्की शैली का जन्मदाता कहा जाता है।

–  हुसैनशाह शर्की अंतिम शर्की सुल्तान था।

–  सिकन्दर लोदी के समय में जौनपुर को पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया गया।

–  सुल्तान इब्राहिम शाह के शासनकाल में साहित्य और स्थापत्य कला के क्षेत्र में हुए विकास के कारण जौनपुर को ‘भारत का सिराज’ कहा जाता है।

खानदेश :

–  मलिक राजा फारुखी ने स्वतंत्र खानदेश (नर्मदा व ताप्ती नदियों के बीच) की स्थापना की।

–  पूर्व में यह मुहम्मद बिन तुगलक के राज्य का हिस्सा था।

–  बुरहानपुर खानदेश की राजधानी थी।

–  असीरगढ़ फारुखी शासकों का सैनिक मुख्यालय था।

–  1589 ई. में बुरहानपुर में जामा मस्जिद का निर्माण आदिलशाह फारुखी IV ने करवाया।

बहमनी राज्य:-

–  स्वतंत्र बहमनी राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में हुई।

–  विद्रोही अमीरों ने इस्माइल मुख को अपना सुल्तान चुना जिसने अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधि धारण की तथा गुलबर्गा (कर्नाटक) को अपनी राजधानी बनाया।

–  मुहम्मदशाह I के शासनकाल में वारंगल तथा विजयनगर के शासकों के साथ युद्ध हुआ।

–  मुहम्मदशाह II शांतिप्रिय तथा विद्या प्रेमी शासक था। उसके शासनकाल में अनेक मस्जिदों, अनाथालयों, निःशुल्क पाठशालाओं का निर्माण करवाया गया।

–  ताजुद्दीन फिरोज एक पराक्रमी शासक था। उसने विजयनगर राज्य को दो बार पराजित किया लेकिन तीसरी बार पराजित हो गया।

–  शिहाबुद्दीन अहमद I (1422-1436 ई.) ने गुलबर्गा के स्थान पर बीदर को अपनी राजधानी बनाया।

–  बीदर का नया नाम मुस्तफाबाद रखा गया।

–  शिहाबुद्दीन अहमद I संत अहमद के नाम से भी जाना जाता है।

–  अलाउद्दीन अहमद II का गुजरात, खानदेश तथा विजयनगर के साथ संघर्ष हुआ।

–  अलाउद्दीन हुमायूँ (1458-61 ई.) को उसकी निष्ठुरता के लिए ‘जालिम’ कहा जाता है।

–  निजामशाह के शासनकाल में राजमाता मखदूम जहाँ ने ख्वाजा जहां तथा ख्वाजा महमूद गावां के सहयोग से शासन का संचालन किया।

–  शम्सुद्दीन मुहम्मद III (1463-1482 ई.) के शासनकाल में महमूद गावां का प्रभावशाली रूप से उदय हुआ।

–  महमूद गंवा को ख्वाजा जहां की उपाधि देकर राज्य का प्रधानमंत्री बनाया गया।

–  बहमनी राज्य का सर्वाधिक विस्तार महमूद गंवा के समय में हुआ।

–  महमूद गंवा के समय में ही गोवा पर बहमनी का अधिकार हुआ।

–  1482 ई. में गंवा के विरोधी सरदारों ने मुहम्मद III को उसके खिलाफ भड़काकर गावां की हत्या करवा दी।

–  महमूदशाह के समय में बहमनी राज्य का पतन हुआ।

–  कलीमुल्लाह बहमनी राज्य का अंतिम शासक था।

–  रूसी यात्री अल्थेनसियस निकितिन ने मुहम्मद III के शासनकाल में 1470-1474 ई. के बीच बहमनी राज्य का भमण किया था।

–  बहमनी राज्य के पतन के बाद दक्कन में पाँच स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ – बीदर, बरार, बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा।

बीदर :

–  अमीर अली बरीद दक्षिण की लोमड़ी कहा जाता है। बीदर के बरीदशाही वंश का संस्थापक कासिम बरीद था।

–  अली बरीदशाह ने विजयनगर के विरुद्ध युद्ध में मित्र राज्यों की सेना को मदद दी।

–  बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान ने इब्राहिम बरीदशाह के शासनकाल में बीदर को अपने राज्य में मिला लिया।

बरार :

–  बरार के इमादशाही वंश का संस्थापक फतेह उल्लाह इमादशाह ने की थी।

–  बरार बहमनी राज्य से स्वतंत्र होने वाला प्रथम राज्य था।

–  इसकी दो राजधानियाँ थी-एलिचपुर और गाविलगढ़।

–  1574 ई. में अहमदनगर ने बरार को अपने राज्य में मिला लिया।

अहमदनगर :

–  अहमदनगर के निजामशाही राजवंश का संस्थापक अहमदशाह निजाम-उल-मुल्क था।

–  उसने अहमदनगर की स्थापना की तथा राजधानी जुन्नैर से वहाँ स्थानान्तरित की।

–  बुरहान निजाम शाह ने बीजापुर, बीदर, बरार तथा विजयनगर के साथ आरम्भ में मित्रता की तथा बाद में शत्रुता।

–  हुसैन निजामशाह के शासनकाल में बीजापुर के अली आदिलशाह, गोलकुंडा के इब्राहिम कुतुबुशाह और विजयनगर के राम राय की संयुक्त सेनाओं ने 1562 ई. में अहमदनगर पर आक्रमण कर दिया।

–  शाहजहाँ के शासनकाल में 1633 ई. में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया साथ ही मुर्तजा निजाम शाह को बंदी बना लिया। कुछ प्रदेश बीजापुर को भी दे दिया गया।

बीजापुर :

–  बीजापुर के आदिलशाही राजवंश का संस्थापक यूसुफ आदिल खाँ था।

–  इस्माइल के शासनकाल में गोवा पर पुर्तगालियों ने अधिकार कर लिया।

–  इब्राहिम के शासनकाल में फारसी के स्थान पर हिन्दवी को राजकाज की भाषा बनाया गया और हिन्दुओं के अनेक पदों पर नियुक्त किया गया।

–  अली आदिल शाह (1558-1580 ई.) के शासनकाल में शोलापुर पर अधिकार को लेकर अहमदनगर और बीजापुर के मध्य संघर्ष हुआ।

–  अली आदिल शाह ने हुसैन निजामशाह की पुत्री चाँद बीबी के साथ विवाह करके अहमदनगर के साथ समझौता कर लिया।

–  इस समझौते के परिणामस्वरूप दक्कनी मुस्लिम राज्यों ने विजयनगर के विरुद्ध एक संयुक्त सैनिक मोर्चे का गठन किया, जिसने 1565 ई. में विजयनगर को बुरी तरह पराजित किया।

–  इब्राहिम II विद्या का संरक्षक था। इब्राहिम को ’अबला बाबा’ व जगतगुरु की उपाधि दी गई।

–  इस काल में सुल्तान की चाची चाँद बीबी बीजापुर की वास्तविक शासिका रही।

–  मुहम्मद आदिल शाह गोल गुम्बद के नाम से विश्व प्रसिद्ध मकबरे में दफन है।

–  अली आदिल शाह II (1627-1672 ई.) के शासनकाल में शाहजहाँ ने औरंगजेब को सैनिक कार्यवाही करने का आदेश दिया।

–  आदिलशाही वंश का अंतिम सुल्तान सिकन्दर आदिल शाह था।

–  सिकन्दर आदिल शाह के शासनकाल में 1674 ई. में शिवाजी ने रायगढ़ में छत्रपति के रूप में अपना राज्याभिषेक किया।

–  1686 ई. में औरंगजेब ने बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।

गोलकुंडा :

–  स्वतंत्र गोलकुंडा राज्य का संस्थापक कुली कुतुबशाह था।

–  इब्राहिम कुतुबशाह महान कूटनीतिज्ञ था।

–  मुहम्मद कुलीशाह हैदराबाद नगर का संस्थापक तथा दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्यसंग्रह या दीवान का लेखक था।

–  मुहम्मद कुलीशाह ने उर्दू तथा तेलुगु को संरक्षण दिया।

–  अब्दुल्ला के शासनकाल में गोलकुंडा का प्रसिद्ध अमीर मीर जुमला द्वारा मुगलों के साथ मिल जाने के कारण मुगलों ने हैदराबाद पर 1656 ई. में अधिकार कर लिया।

–  अंतिम कुतुबशाही सुल्तान अबुल हसन कुतुबशाह था।

–  1687 ई. में मुगलों ने गोलकुंडा को अपने साम्राज्य में मिला लिया।

–  गोलकुंडा हीरों का विश्व प्रसिद्ध बाजार था।

–  मुसलीपट्टनम कुतुबशाही साम्राज्य का विश्व प्रसिद्ध बंदरगाह था।

–  डच तथा अंग्रेज दोनों व्यापार के लिए पहली बार यहीं आए।

–  यहाँ उत्पादित वस्त्रों का विश्व में निर्यात होता था।

–  मुहम्मद कुली द्वारा हैदराबाद में निर्मित चारमीनार विश्व प्रसिद्ध है

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