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सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE) || Continuous and Comprehensive Evaluation

Written by thenotesadda.in



शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में आकलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है और यह विभिन्न पणधारकों (Stakeholders) की कई प्रकार से सहायता करता है। यह पता लगाकर कि बच्चे कितना सीख रहे हैं, CCE विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षकों, प्रशिक्षकों, नीति-निर्माताओं आदि को विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। यह विद्यालय या कक्षा स्तर पर पाठ्यचर्या, शिक्षण शास्त्र और शिक्षक की भूमिकाओं को सक्रिय करता एवं जोड़ता है। यह कथागत प्रक्रियाओं को इस प्रकार प्रभावित करता है कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में गुणात्मक सुधार आएँ जिससे प्रत्येक बच्चे को समग्र रूप से सीखने और विकसित होने के पर्याप्त अवसर मिल सकें।

“ज्ञान विस्फोट” के इस युग में और “ज्ञान-प्रधान समाज” की निरंतर बदलती आवश्यकताओं के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए, यह आवश्यक है कि वे कौशल प्राप्त किए जाएं जो ‘सीखना’ सिखा सकें।

आकलन की प्रक्रिया ऐसी हो जो उच्च कोटि चिंतन के कौशलों को विकसित कर सके। साथ ही आकलन, दिव्यांगताओं, पूर्वाग्रहों व पूर्व-निर्मित धारणाओं से जुड़ी अपनी समस्याओं को सुलझाने का एक प्रभावी साधन है।
● आकलन बच्चों की जन्मजात क्षमताओं पर आधारित होना चाहिए।
● विद्यालय आधारित आकलन, सीखने की प्रक्रिया को निरंतर बढ़ाते हुए बच्चों को न केवल प्रगति की ओर अग्रसर करता है, अपितु बाहरी परीक्षा के भय को भी दूर करता है। इस संदर्भ में, अप्रैल 2010 से लागू RTE अधिनियम-2009 के अनुसार सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को एक विद्यालय-आधारित मूल्यांकन प्रणाली के रूप में शुरू किया गया। इस अधिनियम के अनुसार CCE को प्रारम्भिक स्तर तक लागू किया जाना अनिवार्य है। बाहरी परीक्षा की प्रधानता को कम करने के लिए यह अधिनियम प्रत्येक पणधारक विशेषकर शिक्षकों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए यह जरूरी है कि शिक्षक न केवल इसकी सार्थकता को समझे बल्कि हर बच्चे के सम्पूर्ण विकास में इसका भरपूर उपयोग भी करे।
● भारत सरकार द्वारा स्थापित शिक्षा आयोग (1964-66) के परीक्षा सुधारों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 के अनुसार बच्चों के सीखने की प्रगति का आकलन, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। इसमें उल्लेख किया गया है कि CCE को शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में इस प्रकार लागू किया जाए जिससे शैक्षिक एवं गैर शैक्षिक पहलुओं को समग्र रूप से देखते हुए स्कूली व्यवस्था में अंकों के स्थान पर ग्रेड द्वारा आकलन करने पर बल दिया जाए। इसमें बाहरी परीक्षा की प्रधानता को कम करने पर तथा स्कूली स्तर पर मूल्यांकन को सरल और कारगर बनाने के लिए कहा गया है।
● सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के ‘सतत्’ से आशय सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान चलने वाले आकलन से है, जो सत्र के अंत में होने वाले आकलन के साथ-साथ समय रहते यह संकेत दे देता है कि शिक्षण में और सीखने में कहाँ-कहाँ सुधार की जरूरत है। विशिष्ट पाठ्यचर्या के क्षेत्रों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों को शामिल करते हुए बच्चे के समग्र विकास को ध्यान में रखने को व्यापकता के रूप में देखा जाता है।
● CCE की अनुशंसा इसलिए की गई थी कि सीखने की आवश्यकताओं को समझने में आ रही कठिनाइयों की पहचान की प्रक्रिया में संवर्द्धन करने और चिंता एवं तनाव दूर करने में समय रहते समुचित उपाय करने में मदद मिलेगी। इसका यह भी उद्देश्य है कि रटने की प्रवृत्ति को कम किया जाए, शिक्षकों द्वारा अपने शिक्षण पर विचार-विमर्श किया जाए, उसकी समीक्षा की जाए और सुधार किया जाए। सभी बच्चों को उनके सीखने में सुधार के लिए फीडबैक दिया जाए। यह व्यवस्था विशेष आवश्यकता वाले और वंचित वर्गों से संबंध रखने वाले बच्चों के लिए भी लागू है। हालाँकि इस व्यवस्था को संदर्भ के अनुरूप विभिन्न साधनों के द्वारा और अधिक विश्वसनीय और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है।
● अधिगम और आकलन की प्रक्रिया एक-दूसरे से जुड़ी है, उन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है।

सीखने की प्रकृति
(i) सीखना एक सतत् प्रक्रिया है।
(ii) सीखना चक्रीय (Spiral) होता है, रैखिक नहीं।
(iii) सीखने की समग्र प्रकृति

आकलन की पद्धति
समसामयिक अनुसंधान आकलन के तीन मुख्य उद्देश्यों पर प्रकाश डालता है, जिनमें सीखने के लिए आकलन, सीखने के रूप में आकलन और सीखने का आकलन शामिल हैं।

1. सीखने के लिए आकलन
यह आकलन सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के बाद न होकर उसके पहले  होता है, क्योंकि इसका मुख्य बिंदु यह है कि सभी विद्यार्थियों के सीखने की प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार साथ-साथ सुधार किया जा सके।
(i) आकलन, विद्यालय-आधारित सीखने-सिखाने का अभिन्न भाग होता है।
(ii) बहुसाक्ष्य-आधारित
(iii) सीखने की प्रगति का समग्र रूप से आकलन करना।
(iv) सीखने की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना।
(v) समय के साथ हो रही सीखने की प्रगति में होने वाले परिवर्तनों को जानने व समझने में सहायक है।
(vi) शिक्षकों को सीखने-सिखाने की प्रक्रिया की समीक्षा करने और उसे सुधारने में मदद करता है।
(vii) सीखने में रह गई कमियों/अंतरों पर चर्चा करने में मदद करता है।

2. सीखने के रूप में आकलन
यह विशेष रूप से माता-पिता, बच्चों, शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, मुख्य अध्यापकों और अन्य सबका सामूहिक दायित्व है।

(i) सहयोगी और सहभागी पद्धति – यह पद्धति सीखने की प्रक्रिया की योजना बनाने, संप्रेषण और आकलन में विद्यार्थियों को पणधारक के रूप में शामिल करती है। इस प्रकार विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों को फीडबैक देने और प्राप्त करने में शामिल करती है।
यह शिक्षक-समर्पित साथी-समूह अधिगम के माध्यम से स्वस्थ-शिक्षक-शिक्षार्थी और बच्चों के आपसी संबंधों को विकसित करती है। यह अधिगम को बढ़ावा देने के लिए, शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच संवाद और फीडबैक के अवसर उपलब्ध करवाकर, शिक्षण-अधिगम और आकलन की प्रक्रिया में विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।

(ii) ज्ञान के संसाधन पहचान करने में बच्चों की मदद करना –  सीखने के रूप में आकलन नए विचार ग्रहण करने, उन्हें विस्तृत संदर्भों में रखने, अपने स्वयं के और अपने साथियों के कार्य को सुपरिभाषित मापदंडों या अधिगम लक्ष्यों के लिए मूल्यांकन करने हेतु विद्यार्थियों की क्षमता का निर्माण करता है। 

(iii) बच्चों में ‘सीखने के लिए’ सीखने के कौशलों का निर्माण करना – आकलन के तीन उद्देश्यों में से ‘सीखने के रूप में आकलन’ बच्चों में सीखने के लिए आकलन और जीवनपर्यंत सीखने के कौशलों को ग्रहण करने में मदद करता है। इस कारण CCE के अंतर्गत यह आकलन का सबसे निर्णायक घटक है।
‘सीखने के लिए सीखना’ के लिए उपर्युक्त कार्यनीतियाँ विकसित करने और स्वयं की प्रगति के लिए संसाधन ढूँढ़ने में सहायता करके यह विद्यार्थियों को अपने अधिगम को समझने में मदद करता है। बच्चे के आत्मविश्वास को विकसित करता है और जीवनपर्यंत सीखने के लिए क्षमताओं को विकसित करने में मदद करता है जो कि शिक्षा के मुख्य लक्ष्यों में से एक है।
अत: यह स्वाभाविक है कि ‘सीखने के लिए आकलन’ और ‘सीखने के रूप में आकलन’ प्रत्येक बच्चे के सीखने को आगे बढ़ाने तथा बेहतर करने के लिए मुख्यत: शिक्षकों, विद्यार्थियों और कुछ सीमा तक अन्य पणधारकों की भी मदद करते हैं।

3. सीखने का आकलन
(i) मानदंड-आधारित व्यापक आकलन।
(ii) बहुसाक्ष्य-आधारित आकलन।
(iii) बच्चों की बिना लेबल व तुलना के रिपोर्ट करना।
(iv) पणधारकों के साथ सीखने की प्रगति को साझा करना – बच्चों के सीखने के परिणाम और उसकी स्थिति को विभिन्न पणधारकों, विद्यार्थियों, माता-पिता, अन्य शिक्षकों, प्रशासकों, विद्यालय प्रबंधन समिति और नीति-निर्माताओं से सरल भाषा में सरल प्रपत्रों का उपयोग करते हुए साझा या संप्रेषित किया जा सकता है।

CCE संकल्पना
CCE शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। यह शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से पूरी तरह अलग किसी भी परंपरागत गतिविधि के विरुद्ध है।
● CCE में तीन शब्द शामिल हैं- सतत्, व्यापक और मूल्यांकन।

● CCE के सतत् पहलू का अर्थ विभिन्न साधनों/उपकरणों (टूल्स) का उपयोग कर शिक्षण-अधिगम के समय बच्चों को लगातार देखना और उनकी मदद करना है। ध्यान रहे कि किसी भी रूप में इसका अर्थ बार-बार औपचारिक टेस्ट लेना नहीं है।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय सतत् आकलन बच्चों के सीखने में रह गई कमियों की पहचान करने के बारे में संकेत देता है, जिससे अधिगम को बेहतर बनाने के लिए शिक्षक समय पर कार्रवाई कर सकते हैं। शिक्षण-अधिगम के समय किए गए आकलन द्वारा बच्चों के सीखने में रह गई कमियों की पहचान करने में शिक्षकों की मदद करती है। यह पाठ्यचर्या और शिक्षण अधिगम पद्धतियाँ सभी बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षकों को मार्गदर्शन देने का काम करती है।

● सतत् पहलू के अंतर्गत मूल्यांकन के सतत् और आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है।

● निरंतरता का अर्थ है शिक्षा के प्रारम्भ में विद्यार्थियों का निर्धारण (स्थापन मूल्यांकन) और शिक्षण प्रक्रिया के दौरान निर्धारण (रचनात्मक मूल्यांकन), जो मूल्यांकन की बहुविध तकनीकों का उपयोग करके, अनौपचारिक रूप से किया जाता है।

● नियतकालिकता का अर्थ है- कार्य निष्पादन का निर्धारण जो यूनिट/ अवधि के समाप्त होने पर बार-बार किया जाता है। (सारांशात्मक)।

● CCE के व्यापक पहलू का अर्थ- बच्चे की प्रगति का समग्रता में बोध होना अर्थात् बच्चे के विकास को समग्र रूप से देखना, जैसे- संज्ञानात्मक, शारीरिक और मनो-सामाजिक पहलुओं में प्रगति का ब्यौरा देना। अकसर यह गलत अर्थ लगा लिया जाता है कि बच्चों के व्यक्तिगत सामाजिक गुणों जैसे- संवेदना, सहयोग, दूसरों के लिए सरोकार आदि का आकलन केवल पाठ्योत्तर माने जाने वाले क्षेत्रों जैसे- कला, संगीत, नृत्य, शारीरिक शिक्षा आदि द्वारा ही हो सकता है और इन्हें विभिन्न पैमानों पर ग्रेड दिया जा सकता है परंतु NCF-2005 इन सभी को शैक्षिक क्षेत्र ही मानती है और इनमें तथा अन्य विषयों गणित, विज्ञान और भाषा आदि में भेदभाव नहीं करती।

● सतत् और व्यापक मूल्यांकन का ‘व्यापक’ संघटक बच्चे के व्यक्तित्व के सर्वतोमुखी विकास के निर्धारण का ध्यान रखता है। इसमें विद्यार्थियों के विकास के शैक्षिक और इसके अलावा सह-शैक्षिक पहलुओं का निर्धारण शामिल है। शैक्षिक पहलुओं में पाठ्यक्रम के क्षेत्र अथवा विषय-सापेक्ष क्षेत्र शामिल होते हैं, जबकि सह-शैक्षिक पहलुओं में जीवन कौशल, सह-पाठ्यचर्या, अभिवृत्तियाँ और मूल्य शामिल होते हैं।

● मूल्यांकन बच्चों के सीखने और विकासात्मक पहलुओं का मानदंड आधारित मानचित्रण है। अक्सर आकलन और मूल्यांकन को एक-दूसरे के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, परंतु इनके अर्थ में अंतर है। आकलन सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान ही बच्चों के सीखने में रह गई कमियों को पहचानने की प्रक्रिया है। सीखने-सिखाने के दौरान ही आकलन के लिए विभिन्न कार्यनीतियों का उपयोग करते हुए साक्ष्य इकट्‌ठे किए जाते हैं और उनका विश्लेषण किया जाता है। इसके अंतर्गत बच्चों को आवश्यकतानुसार समय पर सहायता देने के लिए शिक्षकों द्वारा अपनी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की समीक्षा व सुधार भी शामिल हैं।

● मूल्यांकन, बेंचमार्क देने के लिए स्थापित मानदंडों की कसौटी पर शिक्षार्थियों के सीखने की प्रगति को परखता है अर्थात् सभी बच्चों में सीखने तथा विकास की दिशा में किस सीमा तक परिवर्तन हुए हैं, यह जानने के लिए इसे अनेक विश्वसनीय और मान्य साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए ताकि प्रामाणिक व्याख्याओं तक पहुँचा जा सके।

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● जे. कृष्णमूर्ति के अनुसार – “शिक्षा आपके बच्चों को शिक्षित करने के लिए है ताकि वे जीवन को पूर्ण रूप से समझ सकें न कि मात्र जीवन के एक हिस्से को। जैसे- शारीरिक, भावात्मक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक; जीवन पर विभाजित दृष्टिकोण न हो, बल्कि एक संपूर्ण एकीकृत दृष्टिकोण हो… शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा मानव सामने आए जो रचनाकार हो, सक्षम हो, जिसमें ऐसी बुद्धि हो जो बोझ के रूप में न हो और किसी एक विशेष दिशा में ढली न होकर परिपूर्ण हो। जो किसी विशेष समाज, जाति या धर्म से संबंधित न हो ताकि उस शिक्षा के माध्यम से और उस बुद्धि के साथ वह अपने जीवन को एक तकनीशियन का रूप देने के बजाय एक मानव का रूप देने में सक्षम हो सके।”

● रूथरफोर्ड डी रोजर्स – “हम सूचना में डूब रहे हैं और ज्ञान की भूख से तड़प रहे हैं।”

● CCE के लिए विविध प्रकार के स्रोतों से जानकारी इकट्ठा करने और आकलन के विभिन्न तरीकों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, जिससे यह जाना और समझा जा सके कि क्या सभी बच्चे विविध प्रकार के अनुभवों, गतिविधियों और सीखने के कार्यों से गुजरते हुए वास्तव में सीख रहे हैं? यह समझते हुए कि सभी बच्चे अपने आप में अद्वितीय हैं, अपने तरीके से ही सीखते हैं और यह कि सीखने की प्रक्रिया विद्यालयों और पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं रहती, यह आवश्यक हो जाता है कि कक्षाओं में बाल-केंद्रित शिक्षण-अधिगम और आकलन की कार्यसमितियाँ अपनाई जाएँ

● पोर्टफोलियो का तात्पर्य एक प्रकार की ऐसी फाइल, फोल्डर पॉकेट या स्थान से है, जो प्रत्येक बच्चे के लिए तैयार किया जाता है। इसमें एक अवधि में एक बच्चे द्वारा किए गए उसके कार्यों का विवरण इकट्ठा किया जाता है। इसमें लिखित सामग्री शामिल हो सकती है।
पोर्टफोलियो एक अवधि में बच्चे द्वारा किए गए समस्त कार्यों का एक संग्रह है, न कि केवल उनके सर्वोत्तम कार्यों का संग्रह।
पोर्टफोलियो के माध्यम से अध्यापक सीखने की प्रक्रिया के दौरान बच्चों के सीखने में बदलाव से जुड़े साक्ष्य प्राप्त करते हैं और उपयोगी जानकारी विभिन्न पणधारकों, विशेषकर माता-पिता, अभिभावकों और स्वयं बच्चों को उपलब्ध करवाते हैं।
पोर्टफोलियो माता-पिता/अभिभावकों को अपने बच्चों की योग्यताओं और उनकी रुचियों के बारे में और अधिक जानने में मदद करता है, जिनके बारे में उन्हें घर पर पता नहीं चल पाता है। यह उन्हें शिक्षकों के साथ बच्चों के कार्य प्रदर्शन, प्रगति और विकास पर चर्चा करने में मदद करता है।

● सीखने के प्रतिफल सतत् व व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत बच्चों की सीखने की प्रगति का निरीक्षण (मॉनीटर) करने हेतु एक रूपरेखा उपलब्ध करवाते हैँ।

● बच्चों को मदद देना (Scaffolding) एक क्रिया है जो शिक्षण-अधिगम के दौरान बच्चे क्या जानते हैं और उन्हें क्या सीखने की आवश्यकता है, के बीच के अंतर को दूर करने का काम करती है। इस प्रक्रिया में शिक्षक, साथी तथा अन्य व्यक्ति उन बच्चों को कार्य करने या किसी संकल्पना को समझने में मदद करते हैं, जिसे शुरू में वे अपने-आप नहीं कर पाते या समझ नहीं पाते।
मदद की यह प्रक्रिया तब तक जारी रखी जा सकती है जब तक कि बच्चे कार्य को अपने आप करने की जिम्मेदारी नहीं लेते।

● रूब्रिक्स – विद्यार्थियों के कार्य को परखने के लिए मानदंडों का एक समूह होता है, जिसमें कार्य प्रदर्शन की गुणवत्ता के स्तरों का वर्णन होता है। रूब्रिक्स का उपयोग विद्यार्थियों के कार्य प्रदर्शन की प्रक्रिया और प्राप्त परिणामों के आकलन के लिए किया जा सकता है। इस अर्थ में रूब्रिक्स विवरणात्मक होते हैं। अत: इनका उपयोग सिर्फ ग्रेड, अंकों या जाँच-सूचियों द्वारा विद्यार्थी के कार्यों को परखने के लिए नहीं किया जा सकता। प्रभावशाली रूब्रिक्स में कार्य प्रदर्शन के मानदंड स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं।

● CCE के अंतर्गत आकलन न केवल सतत् होना चाहिए, बल्कि विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों सहित सभी बच्चों के लिए भयमुक्त वातावरण भी होना चाहिए। इसमें असंगत तुलना करना, लेबल लगाना और परीक्षा के भय को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

CCE के लिए शिक्षकों का व्यावसायिक विकास
शिक्षक CCE को लागू करने में एक सक्रिय भूमिका निभाते हैँ। अत: शिक्षकों का व्यावसायिक विकास अत्यंत आवश्यक है। शिक्षकों की समझ बनाने के लिए कुछ बिंदुओं पर विचार करने की आवश्यकता है, जो इस प्रकार है-
● यह आवश्यक है कि शिक्षक को पाठ्यचर्या के क्षेत्र, उसकी अपेक्षाओं और सीखने के प्रतिफलों की जानकारी हो।
● शिक्षकों और शिक्षक-प्रशिक्षकों के व्यावसायिक विकास को शिक्षक विकास कार्यक्रमों का सतत् और आवश्यक भाग माना जाना चाहिए। इस प्रकार शिक्षक बच्चों में सीखने की प्रक्रिया में सुधार लाने वाला एक चिंतनशील और अनुभवी व्यक्ति बन सकेगा।
● किसी भी पाठ्यचर्या के क्षेत्र में सी.सी.ई. को लागू करने के लिए उन्हें संबंधित विषय की प्रकृति, शिक्षाशास्त्र और पद्धति को भी समझने की आवश्यकता है। अत: शिक्षण-अधिगम और आकलन को समग्रता के साथ करने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम नियोजित और संचालित किए जाने की आवश्यकता है।
● संबंधित अकादमिक अधिकारियों और सेवापूर्व तथा सेवाकालीन शिक्षक-प्रशिक्षक संगठनों को इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है।

CCE में व्यापकता का आशय
(i) विषयों की व्यापकता       (ii) अवसरों की व्यापकता
(iii) तरीकों की व्यापकता     (iv) दायरे की व्यापकता
(v) उपकरणों (Tools) की व्यापकता     (vi) प्रश्नों की व्यापकता*

CBSE बोर्ड का सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन

कक्षा      लागू होने का सत्र
कक्षा 1 से 5            2004-05
कक्षा 6 से 8            2006-07
कक्षा 1 से 9            2009-10
कक्षा 10वीं तथा 12वीं में         2010-11

Note :- माध्यमिक शिक्षा पूछे जाने पर सही विकल्प के रूप में सत्र 2009-10 होगा।

ग्रेडिंग व्यवस्था
● CBSE बोर्ड में सत्र 2009-10 से ग्रेडिंग प्रणाली लागू है।
● पहले कक्षा 6 से 9 तक के लिए 9 बिन्दु ग्रेडिंग प्रणाली थी, लेकिन सत्र 2017-18 से कक्षा 6-9 तक में 8 बिन्दु ग्रेडिंग प्रणाली लागू हो गई।
● वर्तमान में भी CBSE में कक्षा 6-9 तक में 8 बिन्दु ग्रेडिंग प्रणाली लागू है, जो निम्न प्रकार है-
A1    91-100
A2    81-90
B1    71-80
B2    61-70
C1    51-60
C2    41-50
D      33-40
E       0-32
Note :- कक्षा 8 में ‘E’ का अर्थ – Need Improvement
कक्षा-9 में ‘E’ का अर्थ- अभी तक CBSE ने ‘E’ का    तात्पर्य निर्धारित नहीं किया।         
● कक्षा-10 – वर्तमान में 9 बिन्दु ग्रेडिंग प्रणाली लागू है-

A1Top 1/8th of the passed Candidates
A2         Next 1/8th of the passed Candidates
B1         Next 1/8th of the passed Candidates
B2         Next 1/8th of the passed Candidates
C1         Next 1/8th of the passed Candidates
C2         Next 1/8th of the passed Candidates
D1         Next 1/8th of the passed Candidates
D2         Next 1/8th of the passed Candidates
E             The word informed shortly

Note :- शर्त According न्यूनतम 500 कैंडिडेट (उत्तीर्ण) होने पर यह प्रणाली लागू होगी।

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● CBSE (बोर्ड)

परीक्षा प्रकारअंकसमय
फॉर्मेटिव (FA-1)10%जुलाई
फॉर्मेटिव (FA-2)10%सितम्बर
समेटिव (SA-1)20%नवम्बर
फॉर्मेटिव (FA-3)10%दिसम्बर
फॉर्मेटिव (FA-4)10%फरवरी
समेटिव (SA-2)40%मार्च

● BSER (बोर्ड)
राजस्थान में CCE के तहत (वर्तमान नाम SIQE) 3 SA (SA-1, SA-2, SA-3) तथा 6 FA (FA-1, FA-2, FA-3, FA-4, FA-5, FA-6) होता है। राजस्थान में इनके अंक भार का कोई निश्चित निर्धारण नहीं है।  
● शैक्षणिक क्षेत्र पार्ट-1 (B) तथा सह शैक्षणिक क्षेत्र पार्ट 2(A) → 5 बिंदु प्रणाली की ग्रेडिंग
A+ →   Most Indicators  5 अंक
A    →   Many Indicators 4 अंक
B+ →   Some Indicators 3 अंक
B    →   Few Indicators    2 अंक
C    →   Very Indicators   1 अंक

● शैक्षणिक क्षेत्र पार्ट-2 (B) – सह शैक्षणिक गतिविधियाँ
पार्ट 3 (A), 3(B) → 3 बिंदु प्रणाली
A+    Most Indicaotrs
A      Many Indicators
B      Some Indicators
राजस्थान में सत्र 2015-16 में राज्य सरकार ने सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE), बाल केंद्रित शिक्षण (CCP)  गतिविधि आधारित शिक्षण (ABL) प्रक्रिया को समन्वित कार्यक्रम द्वारा राज्य में संचालित समस्त राजकीय विद्यालयों की प्राथमिक कक्षाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों के सीखने के प्रतिफल के अनुरूप शैक्षिक स्तर उन्नयन के उद्देश्य से लागू करने का निर्णय लिया गया। इसे SIQE (State Initiative for Quality Education – गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए राज्य की पहल) कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है।
CCE + CCP + ABL = SIQE

उद्देश्य
(i) बाल केंद्रित शिक्षण के द्वारा बालक को सीखने के पर्याप्त अवसर प्रदान करना।
(ii) बच्चों में परीक्षा के भय को दूर करना।
(iii) गतिविधि आधारित शिक्षण के द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर, आनंददायी एवं प्रभावी बनाना।
(iv) ज्ञान को स्थायी एवं प्रभावी बनाते हुए प्राथमिक शिक्षा की नींव को मजबूत करना।
(v) बच्चों में सृजनात्मकता एवं मौलिक चिंतन का विकास करना।
(vi) स्तरानुसार शिक्षण योजना बनाकर शिक्षण कार्य करते हुए शैक्षिक प्रगति को नियमित रूप से दर्ज करना।
(vii) बच्चों को पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवाते हुए उन्हें संज्ञानात्मक एवं व्यक्ति विकास के अवसर प्रदान करना।
(viii) बालकों के अधिगम स्तर में गुणात्मक विकास के साथ-साथ नामांकन एवं ठहराव में वृद्धि करना।
(ix) शिक्षकों का समुदाय से जुड़ाव के तहत बच्चों की उपलब्धि एवं प्रगति को अभिभावकों के साथ नियमित रूप से साझा करना।

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