● कोई भी दो बालक/व्यक्ति समान नहीं होते हैं अर्थात् सभी में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, बौद्धिक रूप से विभिन्नताएँ पाई जाती हैं, जिसे व्यक्तिगत विभिन्नता कहते हैं।
● प्रत्येक बालक विशिष्ट होता है। समाज में सभी बालक एक समान प्रकृति के नहीं होते हैं और उन बालकों में विभिन्न प्रकार की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं।
● व्यक्तिगत भेद में विचलनशीलता व सामान्यता दोनों पाई जाती हैं।
● फ्रांसिस गाल्टन ने सन् 1869 में सर्वप्रथम वैयक्तिक विभिन्नताओं का व्यवस्थित व क्रमबद्ध अध्ययन किया। (पुस्तक- Hereditary Genius)
टायलर :- “शरीर के आकार, स्वरूप, शारीरिक कार्यों, गति, बुद्धि, उपलब्धि, ज्ञान, रुचि, अभिवृत्तियों और व्यक्तित्व के लक्षणों में माप की जा सकने वाली विभिन्नता की उपस्थिति।”
जेम्स ड्रेवर :– “औसत समूह से मानसिक, शारीरिक विशेषताओं के संदर्भ में अंतर को वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं। यह मात्रात्मक व संख्यात्मक होती है न कि गुणात्मक।”
अत: व्यक्तियों में पाई जाने वाली उन सभी भिन्नताओं तथा भेदों को, जो एक-दूसरे से अलग करते हुए एक व्यक्ति को अपने आप में एक अनुपम व्यक्ति बनाती है, वैयक्तिक भिन्नता कहलाती है।
व्यक्तिगत विभिन्नता के प्रकार
1. शारीरिक विभिन्नता
2. मानसिक विभिन्नता
3. संवेगात्मक विभिन्नता
4. रुचियों, विचारों की भिन्नता
5. सीखने (अधिगम) में भिन्नता
6. व्यक्तित्व, चरित्र, विशिष्ट योग्यताओं में विभिन्नता
7. गामक कौशलों में विभिन्नता
8. सामाजिकता व सामाजिक विकास में भिन्नता
9. लैंगिक, उपलब्धि संबंधित विभिन्नताएँ
10. अभिवृत्ति, अभिक्षमता में विभिन्नता।
वैयक्तिक विभिन्नताओं के कारण
1. वंशानुक्रम
2. वातावरण भौगोलिक वातावरण
सामाजिक वातावरण
परिवार का वातावरण
3. प्रजाति
4. शिक्षा
5. बुद्धि
6. पोषण
7. परिपक्वता
8. मित्र-मण्डली
9. शारीरिक व मानसिक दोष, स्वास्थ्य
10. आर्थिक-सामाजिक स्थिति
11. लिंग भेद
12. आयु
वैयक्तिक विभिन्नता से अध्ययन की विधियाँ
(i) बुद्धि परीक्षण
(ii) उपलब्धि परीक्षण
(iii) अभिरुचि परीक्षण
(iv) अभिक्षमता परीक्षण
(v) व्यक्तित्व परीक्षण
(vi) संवेग परीक्षण
वैयक्तिक विभिन्नता का शैक्षिक महत्त्व
1. छात्र वर्गीकरण या समूहीकरण करने में सहायक
2. व्यक्तिगत शिक्षण व्यवस्था करने में
3. शिक्षण-पद्धतियों में परिवर्तन करने हेतु।
4. गृह-कार्य प्रदान करने में
5. बालकों में विशेष रुचियों का विकास करने में
6. शारीरिक दोष के प्रति ध्यान देने में
7. पाठ्यक्रम का विभिन्नीकरण करने में
8. कक्षा वर्गीकरण में
9. शिक्षक को वैयक्तिक क्षमताओं व योग्यताओं का उचित ज्ञान
विशिष्ट बालक (Exceptional Child) :-
अर्थ :- वे बालक जो अपनी योग्यताओं, क्षमताओं, व्यवहार तथा व्यक्तित्व संबंधी विशेषताओं की दृष्टि से अपनी आयु के अन्य औसत अथवा सामान्य बालकों से बहुत अधिक भिन्न होते हैं, विशिष्ट बालक कहलाते हैं।
इनमें सामान्य बालकों की अपेक्षा कुछ असामान्यताएँ तथा विशेषताएँ पाई जाती हैं। ये बालक मानसिक, संवेगात्मक, शारीरिक, सामाजिक रूप से सामान्य बालकों से अलग होते हैं।
क्रो एण्ड क्रो :- “वह बालक, जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और संवेगात्मक आदि विशेषताओं में औसत से विशिष्ट हो और उसे अपनी विकास की उच्चतम सीमा तक पहुँचने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता हो, असाधारण या विशिष्ट बालक कहलाता है।”
ओरलैन्सकी के अनुसार :– “विशिष्ट एक ऐसा पद है जिसका तात्पर्य किसी भी ऐसे बालक से होता है, जिसका निष्पादन मानक से ऊपर या नीचे इस हद तक विचलित होता है कि उसके लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम की आवश्यकता होती है।”
अत: विशिष्ट या असाधारण बालक वैसे बालक होते हैँ जो सामान्य या औसत बालक से ऊपर या नीचे की ओर विचलित होते हैं।
मुख्यत: विशिष्ट बालकों के निम्न प्रकार हैं :-
1. प्रतिभाशाली बालक
2. मंद बुद्धि बालक
3. पिछड़े बालक
4. बाल अपराधी बालक
5. समस्यात्मक बालक
6. सृजनशील बालक
7. शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक
Note :- हैवार्ड तथा ओरलेन्सकी ने विशिष्ट बालक के 9 प्रकार तथा रिली व लेविस ने 6 प्रकार बताए हैं।
विशिष्ट बालकों की विशेषताएँ
1. विशिष्ट बालक सामान्य या औसत बालकों से कई तरह के गुणों, जिनमें मानसिक व शारीरिक गुण मुख्य होता है, विचलित होते हैं।
2. इनका विचलन इस सीमा का होता है कि उन्हें विशेष शिक्षा देने की जरूरत होती है।
3. विशिष्ट बालकों से शिक्षकों को सबसे अधिक चुनौती मिलती है। अत: ऐसे बालकों पर शिक्षकों का ध्यान सबसे अधिक होता है।
(1) प्रतिभाशाली बालक (Gifted Child)
अर्थ :- वे बालक जो कार्य-व्यवहार के दृष्टिकोण से सभी कार्यों में अन्य बालकों की अपेक्षा सभी स्तर पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं, प्रतिभाशाली बालक कहलाते हैं।
टर्मन व ओडेन :– “वे बालक प्रतिभाशाली बालक होते हैं जो शारीरिक संगठन, समायोजन, व्यक्तित्व के लक्षणों, विद्यालय-उपलब्धि, खेल गतिविधियों में बहुलता से सामान्य बालकों से श्रेष्ठ होते हैं।”
स्कीनर व हैरीमैन :– “प्रतिभाशाली शब्द का प्रयोग उन एक प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।”
हैविगहर्स्ट :– “वह बालक जो महत्त्वपूर्ण प्रयास में अनोखा कार्य प्रदर्शन या व्यवहार करते हैं।”
कॉलसनिक :- “वह हर बालक जो अपने आयु स्तर के बच्चों में किसी योग्यता में श्रेष्ठ हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नई देन देता है, प्रतिभाशाली है।”
Note :– प्रतिभाशाली जन्मजात होते हैं।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ
1. इनकी बुद्धि-लब्धि (IQ) 140 या अधिक होती है। (क्रो एण्ड क्रो के अनुसार 130 या अधिक)
2. विशाल शब्दकोष
3. उच्च योग्यता
4. उच्च प्रतिबद्धता
5. मानसिक प्रक्रिया की तीव्रता
6. मिलनसार
7. उच्च आकांक्षा स्तर
8. दैनिक कार्यों में विभिन्नता।
9. सामान्य अध्ययन में रुचि।
10. अध्ययन में अद्वितीय सफलता
11. अमूर्त विषयों में रुचि
12. सहयोग की भावना
13. स्वतंत्र निर्णय शक्ति
14. नेतृत्व क्षमता
15. अभिसारी/परंपरागत चिंतन
16. पुनरावृत्ति से जल्दी उब जाना
17. स्कूल पाठ्यक्रम की सभी क्रियाओं में सक्रिय भाग।
18. तार्किक, जिज्ञासु व उत्तरदायित्व युक्त
19. आश्चर्यजनक अन्तर्दृष्टि
20. कठिन/जोखिम कार्य करने वाले बालक
21. तीव्र गति
22. अन्वेषण प्रवृत्ति
23. बड़ी आयु के मित्र
24. किसी विशेष क्षेत्र में प्रतिभा
25. शीघ्रतापूर्वक आसानी से याद करता व सीख लेता है।
26. विस्तृत रुचियाँ
27. अपनी कक्षा के अन्य बच्चों की अपेक्षा अपनी आयु के 1-2 वर्ष आगे के शैक्षणिक कार्यों को कर सकता है।
28. सहशैक्षिक गतिविधियों में क्षेत्र में सक्रिय
29. सूक्ष्म दृष्टि व शीघ्र उत्तर देता है।
30. मंद बुद्धि व सामान्य बालकों से अरुचि।
प्रतिभाशाली बालकों की आवश्यकता/समस्याएँ
1. ज्ञान प्राप्त करने व समझने की आवश्यकता।
2. सृजनात्मकता और अनुसंधान संबंधी आवश्यकता।
3. अपनी विशिष्ट योग्यता का उचित विकास करने की आवश्यकता।
4. आत्माभिव्यक्ति और आत्मप्रदर्शन की आवश्यकता।
5. अगर इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधा होती है तो ये मानसिक व संवेगात्मक रूप से अशांत हो जाते हैं और कुसमायोजित हो जाते हैं।
6. उचित वातावरण की आवश्यकता।
7. वर्तमान शिक्षा प्रणाली में समायोजन की समस्या।
8. माता-पिता व अध्यापकों से मान्यता ना मिलने पर विरोध व हीनभाव से ग्रस्त हो जाते हैं।
9. समायोजन की समस्या।
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा
1. सामान्य रूप से कक्षोन्नति :- प्रतिभाशाली बालकों को वर्ष के अंत में उसी प्रकार कक्षोन्नति दी जानी चाहिए जिस प्रकार अन्य बालकों को दी जाती है।
2. विस्तृत व विशेष पाठ्यक्रम :- प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष और विस्तृत पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए। इस पाठ्यक्रम में अधिक और कठिन विषय होने चाहिए, ताकि वे अपनी विशेष योग्यताओं के कारण अधिक ज्ञान का अर्जन कर सकें।
3. शिक्षक का व्यक्तिगत ध्यान :- शिक्षक को प्रतिभाशाली बालकों के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए। उसे नियमित रूप से परामर्श और र्निदेशन देना चाहिए।
4. विशेष अध्ययन की सुविधा :- प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य विषयों के अध्ययन में विशेष रुचि होती है। उनकी रुचि का विकास करने और उनको अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक विद्यालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकों का पुस्तकालय होना चाहिए।
5. पाठ्यसहगामी क्रियाओं का आयोजन :- प्रतिभाशाली बालकों में विस्तृत रुचियाँ होती हैं। अत: विद्यालय में विभिन्न पाठ्यसहगामी गतिविधियों का आयोजन करना चाहिए।
6. संवर्धन कार्यक्रम (वाद-विवाद, निबंध, खेल आदि)
7. विशेष शिक्षण विधि से शिक्षा
8. सामाजिक व नैतिक मूल्यों की शिक्षा
9. नेतृत्व का प्रशिक्षण
10. मौलिक तथा सृजनात्मक कार्यों को करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा।
11. विशिष्ट विद्यालयों में शिक्षा
12. अलग कक्षाओं अथवा समान योग्यता पर आधारित समूहों की व्यवस्था
13. डे सेन्टर (छात्रावास)
14. छात्रवृत्तियों द्वारा प्रोत्साहन
15. भ्रमण की व्यवस्था
(2) पिछड़े बालक
अर्थ :- जो बालक कक्षा का औसत मानसिक कार्य नहीं कर पाता है और कक्षा के औसत छात्रों से पीछे रह जाता है, उसे पिछड़ा बालक कहते हैं। किसी भी श्रेणी का बालक चाहे वह प्रतिभाशाली, प्रखर बुद्धि, तीव्र या सामाजिक बुद्धि हो, अगर वह अपनी श्रेणी के बालकों से कमजोरी प्रदर्शित करता है तो उसे पिछड़े बालक के रूप में जाना जाता है।
● पिछड़े बालक का मंदबुद्धि होना आवश्यक नहीं है बल्कि यह पिछड़ेपन का एक कारण हो सकता है।
शौनल :- “पिछड़ा बालक वह होता है जो अपनी आयु के अन्य विद्यार्थियों की तुलना में उल्लेखनीय शैक्षणिक कमजोरी का प्रदर्शन करता है।”
सिरिल बर्ट :– “पिछड़ा बालक वह है, जो अपने विद्यालय जीवन के मध्य में अपनी कक्षा से नीचे की कक्षा के उस कार्य को नहीं कर पाते हैं, जो उसकी आयु के बालकों के लिए सामान्य है।”
बार्टन हॉल :– “सामान्यतया पिछड़ेपन का प्रयोग उन बालकों के लिए होता है जिनकी शैक्षणिक उपलब्धि उनकी स्वाभाविक योग्यताओं के स्तर से कम हो।”
शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ेपन के प्रकार
1. सामान्य पिछड़ापन :- संपूर्ण पाठ्यक्रम/सभी विषयों में पिछड़ापन।
2. विशिष्ट पिछड़ापन :- किसी एक पाठ या विषय विशेष में पिछड़ापन।
● बर्ट ने इन बालकों की शैक्षिक लब्धि 85 से कम बताई है।
पिछड़ेपन के कारण
1. सामान्य से कम शारीरिक विकास, शारीरिक दोष/रोग
2. निम्न बुद्धि लब्धि (90 से कम)
3. बौद्धिक शक्तियों का अविकसित रहना
4. पारिवारिक वातावरण (निर्धनता, आकार, झगड़े)
5. माता-पिता की अशिक्षा
6. विद्यालय का वातावरण – दोषपूर्ण व अरुचिकर तथा प्रभावहीन अध्यापन।
7. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम व परीक्षा प्रणाली
8. अध्यापक का पक्षपातपूर्ण व्यवहार व तनावपूर्ण संबंध
9. निर्देशन का अभाव
10. विषयवस्तु की प्रकृति का कठिन होना
11. प्रयोगात्मक व रचनात्मक कार्यों, पाठ्यांतर क्रियाओं का अभाव
12. समाज का प्रभाव
13. अनुशासनहीनता व अव्यवस्था
14. माता-पिता का पक्षपातपूर्ण व्यवहार
15. विद्यालय में अनुपस्थिति
16. शारीरिक दोष
पिछड़ेपन की विशेषताएँ
1. सीखने की मंदगति।
2. बुद्धि-लब्धि (80-89)
3. योग्यता से शैक्षणिक उपलब्धि कम
4. सामान्य पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थ
5. विद्यालय कार्य को समय पर पूरा नहीं करना
6. अपनी कक्षा के बालकों से दूर रहने लगते हैं।
7. विद्यालय से पलायन।
8. जीवन में निराशा का अनुभव
9. सामान्य शिक्षण विधियों से शिक्षा ग्रहण करने में असफल।
10. अपनी और इससे नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थता।
11. मानसिक रूप से अस्वस्थ व कुसमायोजित व्यवहार
12. व्यवहार संबंधी समस्याओं की अभिव्यक्ति।
13. ध्यान कमजोर, विस्मृति शीघ्र, समस्या समाधान कमजोर आदि।
14. पिछड़े बालक की मानसिक आयु अपने समकक्षियों से कम होती है।
15. पिछड़े बालकों की शैक्षिक आयु भी अपने समकक्षियों से कम होती है।
16. इनकी शैक्षिक उपलब्धि सामान्य या औसत से कम होती है।
17. समायोजन की समस्या
पिछड़े बालकों के लिए शिक्षा (मंदता निवारण)
1. विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना (आवासीय, विशिष्ट विद्यालय)
2. विशिष्ट कक्षाओं का आयोजन।
3. अच्छे व प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति।
4. विशिष्ट पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों की व्यवस्था
5. व्यक्तिगत ध्यान देना
6. समय-समय पर उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था
7. हस्तकौशल की शिक्षा
8. सरल व रुचिकर पाठ्यक्रम
9. सांस्कृतिक विषयों की शिक्षा
10. सहशैक्षिक क्रियाओं की व्यवस्था
11. निर्देशन व परामर्श की व्यवस्था
12. वातावरण से संबंधित प्रतिकूल व नकारात्मक कारकों को दूर करना।
13. शारीरिक रोगों व दोषों का उपचार।
14. अनुपस्थिति और स्कूल से भागने की प्रवृत्ति पर रोक।
15. छोटे समूहों में शिक्षा
16. घर व विद्यालय में बालक को समायोजित होने में सहायता।
17. सामाजिक व नैतिक मूल्यों की शिक्षा।
18. मूर्त वस्तुओं का प्रयोग।
19. सहानुभूतिपूर्ण व स्नेहपूर्ण व्यवहार
20. दैनिक जीवन की गतिविधियों से जोड़ते हुए पढ़ाना।
21. विभिन्न उपकरणों का प्रयोग, विषय की पुनरावृत्ति, धीमी गति आदि।
(3) मंदबुद्धि बालक (Mentaly Deficient Child)
● मानसिक मंदता का सामान्य अर्थ है- औसत से कम मानसिक योग्यता। मानसिक मंदता वाले बालकों की बुद्धि-लब्धि साधारण बालकों की बुद्धि-लब्धि से कम होती है। अत: उनमें विभिन्न मानसिक शक्तियों की न्यूनता होती है।
● मानसिक मंदित या विकलांग बालक वे होते हैं जिनमें उनके मस्तिष्क की वृद्धि और विकास की दृष्टि से काफी न्यूनताएँ, मंदन और औसत कमियाँ पाई जाती हैं जिनसे उनकी बौद्धिक क्षमताओं पर इस सीमा तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उन्हें अपने वातावरण के साथ समायोजित होने में इतनी अधिक परेशानियाँ आती हैं कि उन्हें अपने कल्याण एवं शक्ति के विकास हेतु विशेष देखभाल तथा शिक्षा-दीक्षा की जरूरत पड़ती है।
● सन् 1913 से पहले तक मंदबुद्धि और पिछड़े हुए बालकों में किसी प्रकार का अंतर नहीं किया जाता था।
● 1913 में पहली बार इंग्लैण्ड के विद्वानों ने इस प्रकार के बालकों को पहचाना और इन्हें पहचानते हुए Mental Deficieny Act (मेंटल डेफिशियेंसी एक्ट) बनाया।
● सन् 1799 में जीन इटार्ड ने मानसिक रूप से मंद ‘विक्टर’ नामक बालक का अध्ययन किया जिसे एवेरॉन का जंगली बालक (Wild Boy of Averon) कहा गया।
क्रो एण्ड क्रो :- जिन बालकों की बुद्धि-लब्धि 70 से कम होती है, उनको मंदबुद्धि बालक कहते हैं।
स्कीनर :– ‘जो छात्र एक वर्ष में शिक्षा का निर्धारित कार्यक्रम पूरा नहीं कर पाते हैं, उन्हें मंदबुद्धि बालक कहा जाता है।’
अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेंटल डेफिशियेंसी :– “मानसिक मंदन से तात्पर्य विकास काल में दिखाई पड़ने वाली उल्लेखनीय औसत से नीचे की बौद्धिक कार्यक्षमता तथा समाज की माँगों के साथ समायोजन से असमर्थता से है।”
मंदबुद्धि बालक की विशेषताएँ
1. सीमित बौद्धिक क्षमता (IQ-70 से कम)
2. सामान्य बालकों के सिर बड़ा परंतु बौद्धिक क्षमताएँ कमजोर होती हैं तथा मंगोलिज्म कहलाते हैं।
3. शारीरिक न्यूनता
4. सीमित समायोजन व्यवहार
5. संवेगात्मक व सामाजिक असमायोजन
6. सीखी बातों को नई परिस्थिति में प्रयोग में कठिनाई।
7. कार्य व कारण में संबंध स्थापित नहीं।
8. आत्मविश्वास का अभाव।
9. विद्यालय वातावरण से अनुकूलित नहीं हो पाते और पलायन कर जाते हैं।
10. विद्यालयी असफलताओं के कारण निराश।
11. सदैव भोजन की चिंता।
12. यथार्थ चिंतन का अभाव।
13. बता देने के बाद भी कार्य करने में असफल।
14. निर्णय क्षमता का अभाव।
15. दूसरों को मित्र बनाने की इच्छा।
16. मान्यताओं के संबंध में अटल विश्वास।
17. मौलिकता का अभाव।
18. अत्यधिक सुझाव गृहणशीलता
19. साधारण व सीमित रुचियाँ
20. दोषपूर्ण शब्दावली
21. सामान्यीकरण का अभाव
22. संज्ञानात्मक दुर्बलता
23. शिक्षा व प्रशिक्षण प्राप्ति की अपर्याप्तता
24. सीमित प्रेरणा आदि।
मानसिक मंदता (मंदबुद्धि) के कारण
1. वंशानुक्रम (माता-पिता के मानसिक पिछड़ेपन के कारण)
2. गर्भाधान के समय में क्रियाशील कारण
3. अपरिपक्व जन्म
4. प्रसव के समय असामान्य दशाएँ
5. प्रसव के समय औजारों का प्रयोग
6. किसी दुर्घटना से मस्तिष्क या स्नायु तंत्र को आघात।
7. गंभीर बीमारी
8. मानसिक आघात
9. कुपोषण (असंतुलित भोजन)
10. वंचित वातावरण
11. संवेगात्मक कुसमायोजन, मानसिक चिंता, तनाव व संघर्ष का शिकार
12. आर्थिक व सामाजिक वंचना।
13. कपालीय विसंगतियाँ (मेक्रोसिफेली, माइक्रोसिफेली, हाइड्रोसिफेली)
14. ग्रंथियों का ठीक ढंग से काम न करना।
15. गर्भावस्था के समय विकिरण प्रभाव (एक्स-रे)
मानसिक मंदता के प्रकार या स्तर
● वर्तमान में अमेरिका की संस्था ‘अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेंटल डेफिशियेंसी (AAMD, 1973)’ संपूर्ण विश्व में मंदबुद्धि बालकों की पहचान, विकास कार्य आदि के लिए प्रयासरत है।
● इन्होंने मानसिक दुर्बलता के चार प्रमुख स्तर/प्रकार बताए हैं:-
1. साधारण मानसिक दुर्बलता (IQ – 52 से 67) – कुछ शिक्षण ग्रहण योग्य
2. मध्यम मानसिक दुर्बलता (35-51 तक) – प्रशिक्षणीय शैक्षिक श्रेणी
3. गंभीर मानसिक दुर्बलता (20 से 35 IQ) – आश्रित बालक
4. गहन/अतिगंभीर मानसिक दुर्बलता (20 से कम IQ) – गंभीर शारीरिक अनियमितता (आजीवन देखरेख की जरूरत)
बुद्धि-लब्धि के आधार पर वर्गीकरण
1. अल्पबुद्धि :- 70 से 89 तक IQ (सीमांत बच्चे)
2. मूर्ख :- 51 से 69 तक IQ
3. मूढ़ :- 25 से 49 तक IQ
4. महामूर्ख/जड़बुद्धि :- 25 से कम IQ
मंदबुद्धि बालकों की शिक्षा
1. अपनी देखभाल व शारीरिक प्रशिक्षण
2. आर्थिक प्रशिक्षण (हस्तकौशल की शिक्षा)
3. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की शिक्षा
4. विशिष्ट विद्यालयों की व्यवस्था
5. विशिष्ट शिक्षकों की व्यवस्था
6. विशिष्ट कक्षा आयोजन
7. विशेष प्रकार के खेलों का आयोजन
8. व्यक्तिगत शिक्षण या छात्र संख्या कम
9. स्वस्थ आदतों का निर्माण
10. स्वतंत्रता तथा आत्मविश्वास की भावनाओं का विकास करना।
11. सुरक्षा, प्राथमिक चिकित्सा और आचरण संबंधी शिक्षा।
12. शिक्षण-सहायक सामग्री का प्रयोग।
13. मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं का आयोजन।
14. सामाजिक प्रशिक्षण
15. मूर्त विषयों की शिक्षा
(4) सृजनशील बालक (Creative Child)
अर्थ :- किसी प्रकार का विधायकतापूर्ण, नवीन एवं मौलिक कार्य करने की क्षमता।
इसका अर्थ सृजन, उत्पन्न करना, रचनात्मकता, विधायकता, सृजित करना, बनाना आदि है। जब उपलब्ध साधनों से नवीन या अनजानी वस्तु, विचार या धारणा को जन्म दिया जाता है तो वह सृजनात्मकता कहलाती है।
क्रो एण्ड क्रो :- “सृजनात्मकता मौलिक/नवीन परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।”
जेम्स ड्रेवर :- “अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का सृजन करना ही सृजनशीलता है।”
स्टेगनर एवं कार्वोस्की :– “किसी नई वस्तु का पूर्ण या आंशिक उत्पादन ही सृजनात्मकता है।”
स्कीनर :– “सृजनात्मकता का अर्थ है कि व्यक्ति की भविष्यवाणी या निष्कर्ष नवीन, मौलिक, अन्वेषणात्मक व असाधारण हो।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि-
1. सृजनात्मकता मौलिक व नवीन है।
2. सृजनात्मकता कार्य उपयोगी हो।
सृजनात्मकता का स्वरूप
1. जन्मजात व अर्जित दोनों।
2. सृजनात्मकता सार्वभौमिक होती है।
3. लक्ष्य निर्देशित होती है।
4. सृजनात्मकता का विकास बाल्यावस्था से शुरू होता है और 30 वर्ष की आयु तक उच्चतम सीमा तक होता है।
5. यह प्रक्रिया व परिणाम दोनों है।
6. बुद्धि-लब्धि औसत से अधिक (110 से 120)
7. प्रकृति प्रदत्त योग्यता परंतु प्रशिक्षण व शिक्षा द्वारा विकास संभव।
बुद्धि व सृजनात्मकता में संबंध
सृजनात्मकता व बुद्धि में सकारात्मक संबंध पाया जाता है परंतु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति सृजनशील हो। सृजनात्मकता के लिए बुद्धि का एक साधारण स्तर जैसे बुद्धि-लब्धि का 110-120 (औसत से अधिक) तक होना अनिवार्य है, क्योंकि बुद्धि-लब्धि को इस सीमा से कम या अधिक होने पर सृजनात्मकता का संबंध बुद्धि से लुप्त हो जाता है।
● बुद्धि प्राप्तांक के वितरण के ऊपरी छोर पर सृजनात्मकता का संबंध बुद्धि से समाप्त हो जाता है। अत: ऐसी अवस्था में सृजनात्मकता बुद्धि से स्वतंत्र हो जाती है।
● एक-विध चिंतन (Convergent Thinking) बुद्धि का आधार है जबकि बहु-विध चिंतन (Divergent Thinking) सृजनात्मकता का आधार है।
● प्रखर बुद्धि बालक सदैव सफलता की ओर उन्मुख रहते हैं किन्तु सृजनशील बालक सदैव सफलता के लिए उन्मुख नहीं रहते।
● एक सृजनात्मक बालक प्रतिभाशाली होता है लेकिन यह आवश्यक नहीं कि प्रतिभाशाली बालक सदैव सृजनात्मक हो।
सृजनात्मकता का देहली मॉडल
इस मॉडल के अनुसार किसी भी सृजनात्मक कार्य के लिए बुद्धि का न्यूनतम स्तर (देहली) आवश्यक है। अत: एक खास सीमा तक सृजनात्मकता तथा बुद्धि एक-दूसरे से संबंधित होते हैं, परंतु उसके बाद सृजनात्मकता बुद्धि से स्वतंत्र हो जाती है।
सृजनात्मकता के तत्त्व
1. धारा प्रवाहिता 2. मौलिकता/नमनीयता
3. विस्तारण 4. लचीलापन (लोचशीलता)
गिलफोर्ड के अनुसार (सृजनात्मकता के तत्त्व)
1. तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता।
2. समस्या की पुनर्व्याख्या।
3. सामंजस्य
4. अन्य के विचारों में परिवर्तन
सृजनशील बालक की विशेषताएँ
1. मौलिकता/विधायकता
2. नवीनता
3. लचीलापन
4. अपसारी/बहु विध/पार्श्व/लेट्रल चिंतन
5. स्वतंत्र निर्णय क्षमता
6. परिहासप्रियता
7. उत्सुकता
8. संवेदनशीलता
9. स्वतंत्रता का भाव
10. उच्च समायोजन क्षमता
11. उच्च आकांक्षा स्तर
12. सहयोग की भावना
13. दूरदर्शिता
14. कल्पनाशीलता
15. विवेकशीलता
16. धारा प्रवाह
17. व्यवहारकुशल
18. संवेग-स्थिरता
19. अंत:दृष्टि/सूझ
20. गतिशीलता
21. स्वाभाविक व सहज अभिव्यक्ति
22. अध्ययन में सामान्य
23. काठिन्य निवारण
24. जिज्ञासावादी
25. स्पष्टवादी (यथार्थ)
26. भविष्य के प्रति आशावान
27. सजगता, ध्यान, एकाग्रता की प्रचुरता होती है।
28. उत्तरदायित्व के प्रति सजग
29. समस्या-समाधान की योग्यता
30. आशावादी
31. उच्च सौन्दर्यात्मक अनुभूति।
32. स्वनियंत्रण
33. अनुभवों के प्रति खुलापन।
Note :- पार्श्व चिंतन पद का सर्वप्रथम प्रयोग एडवर्ड बोनो ने अपनी पुस्तक New think: The use of Lateral thinking में किया।
सृजनात्मक चिंतन की अवस्थाएँ/प्रक्रियाँ
1. तैयारी/आयोजन/उपक्रम (Preparation) :- इसमें उन सूचनाओं को एकत्रित किया जाता है, जो समस्या समाधान में मदद करते हैं।
2. उद्भवन (Incubation) :- इसमें समस्या-समाधानकर्ता थोड़ा सुस्त हो जाता है। वह संगत सूचनाओं पर तो विचार करता है, परंतु असंगत सूचनाओं पर ध्यान नहीं देता है। अत: ऊपर से वह निष्क्रिय दिखता है।
3. प्रबोधन/प्रदीप्ति/प्रकाशित होना (Illumination) :- अचानक सही समाधान मन में आता है। अर्थात् अन्त:दृष्टि या अहा अनुभव प्राप्त होना।
4. सत्यापन/पुनरावृत्ति/संशोधन (Verification) :- इसमें योजना, विचार या समाधान के महत्त्व या उपयुक्तता का परीक्षण या मूल्यांकन किया जाता है।
● सृजनात्मकता का देहली मॉडल :– इसके अनुसार सृजनात्मकता के लिए बुद्धि का एक न्यूनतम स्तर होना आवश्यक है। (औसत से अधिक)
Note :- सृजनात्मकता को प्लेटो ने दैविक प्रेरणा, नीत्शे ने पागलपन, डार्विन ने कॉस्मिक जीवन शक्ति कहा है।
बालक के सृजनात्मकता विकास में शिक्षक की भूमिका
1. उत्तर देने की स्वतंत्रता
2. अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना।
3. मौलिकता तथा लचीलेपन को प्रोत्साहित करना।
4. उदाहरण एवं आदर्श प्रस्तुत करना (स्वयं के)
5. झिझक व डर को दूर करना।
6. स्वस्थ आदतों का विकास करना।
7. पाठ्यक्रम का उचित आयोजन।
8. अभिनव कार्यक्रमों का आयोजन करना।
9. ब्रेन स्टोर्मिंग/भूमिका निर्वाह/प्रायोजना विधि का प्रयोग
10. मुक्त उत्तर वाली प्रश्नावली का प्रयोग
11. मूल्यांकन प्रणाली में सुधार
12. शिक्षण प्रतिमानों/खेल तकनीकों का प्रयोग।
सृजनात्मकता का मापन
1. टोरेन्सन का सृजनात्मक चिंतन परीक्षण (TTCT)
प्रतिपादक :- ई. पाल टोरेन्स (अमेरिका), 1966
● यह शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों ही प्रकार का परीक्षण है।
● इस टेस्ट द्वारा सृजनात्मकता के प्रमुख तीन तत्त्वों प्रवाहिता, मौलिकता, लचीलापन का मापन किया जाता है।
● इसके द्वारा किंडरगार्टन अवस्था से वयस्कावस्था तक के छात्रों की सृजनात्मकता की माप होती है।
शाब्दिक परीक्षण | अशाब्दिक परीक्षण |
1. उत्पादन सुधार कार्य | 1. चित्र/आकृति पूर्ति परीक्षण |
2. टिन डिब्बों के असाधारण प्रयोग | 2. चित्र/आकृति निर्माण परीक्षण |
3. अप्रचलित उपयोग बताना। | 3. समान्तर रेखा परीक्षण |
4. पूछना और अनुमान लगाना। | |
5. असाधारण उपयोग | |
6. कल्पना क्षमता निर्धारण |
2. बाकर मेहंदी का सृजनात्मक चिंतन परीक्षण
प्रतिपादक :- डॉ. बाकर मेहंदी (1973, 1985)
● इसमें 4 शाब्दिक तथा तीन अशाब्दिक उप परीक्षण शामिल हैं।,
शाब्दिक परीक्षण :-
1. परिणाम सोचो परीक्षण 2. अप्रचलित (नए) उपयोग परीक्षण
3. नवीन संबंध परीक्षण 4. वस्तु विशेष का सृजन
अशाब्दिक परीक्षण :-
1. चित्र निर्माण परीक्षण 2. चित्र पूर्ति परीक्षण
3. अण्डाकार व त्रिभुजाकार आकृति निर्माण परीक्षण
3. बी.के. पासी सृजनात्मक परीक्षण (भारतीय)
प्रतिपादक :- B.K. पासी
● इसमें 4 शाब्दिक व 2 अशाब्दिक परीक्षण शामिल हैं।
शाब्दिक परीक्षण :-
1. देखने की समस्या 2. असाधारण उपयोग
3. परिणाम परीक्षण 4. जिज्ञासा परीक्षण
अशाब्दिक परीक्षण :-
1. वर्ग पहेली परीक्षण 2. ब्लॉक परीक्षण
4. रिमोट एसोसिएट परीक्षण
प्रतिपादक :- मेडनिक व मेडनिक द्वारा, 1974 में
इसमें 40 एकांश हैं। इसके द्वारा छात्रों की साहचर्यात्मक धाराप्रवाहिता की माप की जाती है।
अन्य सृजनात्मक परीक्षण
1. गिलफोर्ड का सृजनात्मक परीक्षण
2. गैटेजेल व जैक्सन परीक्षण
3. एस.पी. मल्होत्रा का परीक्षण
4. सक्सेना सृजनात्मक परीक्षण
5. मिनीसोटा सृजनात्मक परीक्षण
6. सृजनात्मक योग्यता का ए.सी. परीक्षण
7. वालक एवं कॉरगन का सृजनात्मक परीक्षण
8. के.एन. शर्मा का परीक्षण
9. मजूमदार का परीक्षण
Note :- गिलफोर्ड ने सृजनात्मक चिंतन के 5 मानसिक व्यापार बताए हैं:-
1. संज्ञान 2. स्मृति 3. अपसारी चिंतन
4. अभिसारी चिंतन 5. मूल्यांकन
(5) बाल अपराधी बालक
वे बालक जो सामाजिक व्यवस्थाओं से हटकर गैर-सामाजिक गतिविधियों में जुड़ जाते हैं और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति असामाजिक तरीके से करते हैं और सामाजिक व्यवस्थाओं के लिए अनुचित व्यवहार करते हैं, बाल अपराधी कहलाते हैं।
● सामान्यत: 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति जब कोई ऐसा कार्य करते हैं जो गैरकानूनी या समाज विरोधी हो अर्थात् अमान्य हो, बाल अपराधी कहलाता है।
स्कीनर :- “18 वर्ष से कम आयु का कोई बालक जब कोई ऐसा कार्य करता है जो किसी व्यस्क के द्वारा किए जाने पर अपराध/दण्डनीय हो, बाल अपराधी कहलाता है।”
गुड :– “कोई भी बालक, जिसका व्यवहार सामान्य सामाजिक व्यवहार से इतना भिन्न हो कि उसे समाज-विरोधी कहा जा सके।”
हीली :- “वह बालक जो समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का पालन नहीं करता है, बाल अपराधी कहलाता है।”
बाल अपराध के कारण
1. वंशक्रम का प्रभाव
2. गुणसूत्र संयोजन (पुरुषों में xyy तथा स्त्रियों में केवल x गुणसूत्र)
3. शारीरिक संरचना (मेसोमोर्फिस)
4. शारीरिक दोष, यौनांगों तथा तीव्र विकास
5. भग्न परिवार
6. परिवार की निर्धनता, तिरस्कृत बच्चे
7. बच्चों के प्रति दुर्व्यव्हार
8. असुरक्षा या अत्यधिक सुरक्षा
9. माता-पिता की अभिवृत्ति
10. अनैतिक परिवार
11. सामाजिक व आर्थिक स्थिति
12. साथी, गंदी बस्तियाँ, अपराधी क्षेत्र
13. बेरोजगारी
14. विद्यालय में संवेगात्मक वातावरण
15. नौकरों की संगति
16. अनुशासन का अभाव
17. विद्यालयी वातावरण
18. शिक्षकों का पक्षपातपूर्ण व्यवहार
19. निर्देशन व परामर्श का अभाव
20. आर्थिक असमानता
21. खेल व मनोरंजन का अभाव
22. परीक्षा प्रणाली
23. निम्न बुद्धि
24. अवरुद्ध इच्छा
25. संवेगात्मक असंतुलन
26. स्नायु विकृति
27. हीन भावना, निराशा
28. कुसंगति आदि।
बाल-अपराधी बालक की विशेषताएँ
1. शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट (ऊर्जावान)
2. सामाजिक व्यवस्थाओं का विरोध
3. संवेगात्मक असंतुलन
4. जिद्दी, स्वार्थी, साहसी, बहिर्मुखी, आक्रमणकारी व्यवहार
5. दूसरों को चुनौती
6. आवेगशीलता
7. समस्याओं को उचित विधि से हल नहीं करना।
8. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाना
9. व्यवस्थाओं में बाधा डालना।
10. गैर अनुशासित तरीके से विद्यालय से पलायन
11. धूम्रपान व नशे की आदतें
12. विद्यालयी कार्यों को समय पर नहीं करता है।
13. अध्ययन में मन न लगना।
14. औसत छात्रों से कम पढ़ना।
15. वर्तमान में आनंद, भविष्य की चिंता नहीं
16. नैतिक स्तर निम्न
17. यौन कदाचार
18. चोरी करना, झूठ बोलना, चुनौती देना, झगड़ा करना।
19. निरुद्देश्य भ्रमण, बिना टिकट यात्रा।
20. नियमों का पालन न करना।
बाल अपराधी को सुधारने/निवारण के उपाय
1. उत्तम वातावरण प्रदान करना।
2. निर्देशन व परामर्श की व्यवस्था।
3. आवश्यकताओं की उचित पूर्ति
4. अच्छी आदतों का निर्माण
5. सकारात्मक शिक्षा
6. विद्यालय का उचित वातावरण व स्वानुशासन
7. स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति के अवसर
8. व्यवहार कुशल शिक्षकों की नियुक्ति
9. शारीरिक श्रम से जुड़े कार्य देना।
10. नि:शुल्क शिक्षा, आदर्श स्कूलों की व्यवस्था।
11. माता-पिता का अपेक्षित ध्यान व स्नेह।
12. उपचारात्मक व व्यावसायिक कक्षाएँ
13. वांछनीय सामाजिक दृष्टिकोण
14. मनोरंजन की व्यवस्था
15. निर्धन परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार
बाल अपराध उपचार की मनोवैज्ञानिक विधियाँ
1. मनोविश्लेषण विधि :- सिगमण्ड फ्रॉयड ने।
– अचेतन मन का अध्ययन।
2. मनो-अभिनय विधि :- जे.एल. मोरेनो।
3. व्यक्ति इतिहास विधि :- टाइडमैन।
बाल-अपराध उपचार की कानूनी विधियाँ
1. कारावास
2. किशोर न्यायालय
3. पुनर्वास विधि :- इसमें अपराधी बालकों को ऐसे वातावरण में रखा जाता है, जहाँ स्नेह व मानवीय व्यवहार से स्वत: ही अपराध ना करने का भाव उत्पन्न हो जाता है।
4. प्रवीक्षण :- इसमें बाल-अपराधी को न्यायालय के दण्ड मिलने पर जेल न भेजकर कुछ शर्तों पर समाज में रहने की आज्ञा दी जाती है।
5. किशोर बंदी गृह :- इसमें किशोर अपराधियों को रखा जाता है। इनमें सामान्य व औद्योगिक शिक्षा प्रदान की जाती है।
6. बाल सुधार गृह :- यह वे सुधार गृह होते हैं जहाँ बाल-अपराधियों को सुधारने का कार्य किया जाता है और सामान्य व व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है।
7. बोर्स्टल संस्थाएँ :- इनमें साधारणत: 15 से 20 वर्ष के आयु के अपराधी रखे जाते हैं। इनमें भी सुधार कार्य, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाती है।
8. रिफोलेटरी व सर्टिफाइड स्कूल
Note :- बाल-अपराध का जनक – सीजर लाम्ब्रोसो
(6) समस्यात्मक बालक (Problem Child)
‘समस्यात्मक बालक’ उस बालक को कहते हैं, जिसके व्यवहार में कोई ऐसी असामान्य बात होती है, जिसके कारण वह समस्या बन जाती है। जैसे- चोरी करना, झूठ बोलना।
वेलेन्टाइन :- “समस्यात्मक बालक शब्द का प्रयोग साधारणत: उन बालकों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिनका व्यवहार या व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असामान्य होता है।”
समस्यात्मक बालकों के लक्षण
1. चोरी करना, झूठ बोलना 2. क्रोध व आक्रमणकारी व्यवहार
3. मादक पदार्थों का सेवन। 4. स्कूल से पलायन
5. अनुशासन भंग करना। 6. उदासी
7. मानसिक द्वंद्व 8. अंतर्वैयक्तिक संबंध
9. कार्य से जी चुराना। 10. दूसरों को तंग करना।
समस्यात्मक बालक का उपचार
1. कारणों का पता लगाकर समाधान
2. निदानात्मक व उपचारात्मक शिक्षण
3. मनोरंजन की व्यवस्था
4. निर्देशन व परामर्श
5. सहयोग की भावना
6. पाठ्यसहगामी क्रियाओं का आयोजन
7. खेल, कार्य आदि में अनावश्यक बाधा नहीं डालना।
Note :-
1. अलाभान्वित बालक वे होते हैं, जो सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण से व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से पिछड़े होते हैं, अलाभान्वित बालक कहलाते हैं।
2. वे बालक जिनकी मनोदशा अव्यवस्थित व मनोवैज्ञानिक रूप से उथल-पुथल होती है व संवेगात्मक रूप से अस्थिर व कुसमायोजित होते हैं, संवेगात्मक अव्यवस्थित/समस्या वाले बालक कहलाते हैं।
(7) शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक :-
(i) दृष्टिदोष से ग्रसित बालक – दृष्टिदोष वाले बालक दो प्रकार के होते हैं-
(A) अंधे बालक :- वे बालक जो पूर्ण रूप से अंधे होते हैं और अंधेपन के कारण उनकी सीखने की क्षमता काफी प्रभावित होती है। इन्हें ब्रेललिपि द्वारा ही पढ़ना-लिखना सिखाया जा सकता है।
(B) निम्न दृष्टिवाले बालक :– वे बालक जो आंशिक रूप से देख पाते हैं तथा उन्हें सामान्य पुस्तकों से ही पढ़ाया-लिखाया जा सकता है।
(ii) भाषा दोष (वाक्) से ग्रसित बालक :- क्रिक व गालाघर के अनुसार भाषा-दोष से ग्रसित बालकों के निम्न प्रकार हैं-
(a) गूंगे बालक :- वह बालक जो चाहकर भी अपनी इच्छा को अर्थपूर्ण भाषा के रूप में अभिव्यक्त नहीं कर पाता है, ऐसा बालक प्राय: कुछ संकेतों के माध्यम से ही अपनी इच्छा की अभिव्यक्ति करता है।
(b) उच्चारण संबंधी दोष वाले बालक :- ऐसे बालक प्राय: शब्दों का गलत ढंग से उच्चारण करते हैं। जैसे- चोटी को रोटी बोलना आदि।
(c) आवाज संबंधी दोष वाले बालक :- जब बालक द्वारा बोले गए शब्द की आवाज के गुण, उच्चता या तारत्व में असामान्यता होती है। कर्कश आवाज में बोलने वाले एवं नकियाकर (नाक से बोलने वाले) बालकों को इस श्रेणी में रखा जाता है।
(d) प्रवाहिता संबंधी दोष वाले बालक :– इन बालकों की वाणी की सामान्य प्रवाहिता बाधित हो जाती है अर्थात् हकलाने वाले बालक।
(e) व्याख्यान संबंधी दोष वाले बालक :– वे बालक जिन्हें खास-खास शब्दों को बोलने में कठिनाई होती है।
(iii) श्रवणदोष से ग्रसित बालक :- श्रवण दोष दो प्रकार के होते हैं-
(a) पूर्ण बहरापन :- पूर्ण बहरापन से ग्रसित बालक भाषा प्रवर्धक के प्रयोग के बाद भी कुछ नहीं सुनते तथा दूसरों की भाषा को नहीं समझ पाते हैं।
(b) आंशिक बहरापन :- आंशक बहरापन में छात्र भाषा प्रवर्धक का प्रयोग करके दूसरों की बोली को समझ लेते हैं या यदि इनसे उच्च स्वर में बोला जाए तो वे उसे सुनकर समझ लेते हैं।
(iv) गत्यात्मक अक्षम बालक :- वे बालक जिन्हें चलने, बैठने-उठने आदि गत्यात्मक कौशलों को करने में कठिनाई होती है।
विशिष्ट वर्ग के बालकों के लिए प्रयुक्त अधिगम सहायक सामग्री
श्रेणी | सहायक सामग्री |
दृष्टिहीन बच्चों हेतु सहायक तकनीकी | ब्रेलर, डेजी प्लेयर, स्कीन रीडर, ब्रेल स्लेट, अबेकस, टेलर फ्रेम, लेजर केन, क्रेनमर, एबाकस, स्पीचप्लस, आपटाकौड, कैल्कुलेटर, कुर्जबिलरिडिंग। |
अल्पदृष्टि बच्चों हेतु सहायक तकनीकी | मैग्नीफायर, स्क्रीन मैग्नीफायर, टेलिस्कोप, रीडिंग स्टैंड, राइटिंग गाइड। |
गामक दिव्यांगजन हेतु सहायक तकनीकी | जॉय स्टिक, व्हील चेयर, केन, स्मार्ट नैव, स्पीच टू टेक्स्ट सॉफ्टवेयर |
श्रवण-बाधितों हेतु सहायक तकनीकी | एफ.एम. सिस्टम, पर्सनल एम्प्लीफायर, इंडक्शन लूप सिस्टम, इन्फ्रारेड सिस्टम। |
बौद्धिक दिव्यांगजन हेतु सहायक तकनीकी | स्वचालित और कम्प्यूटरीकृत साधन, वीडियो आधारित शिक्षण सामग्री, ऑडियो प्रोम्पटिंग। |