Indian Polity

राष्ट्रपति

राष्ट्रपति

राष्ट्रपति (President)

राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रधान होता है। यह राष्ट्राध्यक्ष है, किन्तु सरकार का अध्यक्ष नहीं। सरकार का अध्यक्ष प्रधानमंत्री है। राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका का नाममात्र का प्रधान है।

शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामलें में उच्चतम न्यायालय का मत है कि ‘राष्ट्रपति मात्र संवैधानिक या औपचारिक प्रधान है।’ यह देश का प्रथम नागरिक है।

अनुच्छेद-52इस अनुच्छेद में उल्लेख किया गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। अर्थात् इस अनुच्छेद में भारत के राष्ट्रपति  पद का प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद-53इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि संघ की कार्यपालिका की समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होगी।
अनुच्छेद-54इस अनुच्छेद में भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन मण्डल का उल्लेख किया गया है।इसके तहत राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा संपन्न होता है। राष्ट्रपति के चुनावों में प्रत्येक सदस्य वरीयता के आधार पर मतदान करता है।राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल होते है :-संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यराज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यदिल्ली पुडुचेरी संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य (यह प्रावधान 70वें संविधान संशोधन, 1992 द्वारा जोड़ा गया) नोट : राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं ले सकते :संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्यराज्य विधान सभाओं के  मनोनीत सदस्यराज्य विधान परिषद के सभी सदस्यदिल्ली व पुडुचेरी विधान सभाओं के मनोनीत सदस्यविघटित की गई विधायिका के सदस्य
अनुच्छेद-55राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति (Manner of Election of President) : अनुच्छेद-55राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित तरीका अपनाया गया है : 1. राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति (Proportional Representation System) के अनुसार एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Voting) द्वारा होगा। मतदान गुप्त होगा। अनुच्छेद [55(3)]2. राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न- भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व को मापने में एकरूपता (Uniformity) होगी [अनुच्छेद-55 (1)]।3. राज्यों के बची ऐसी एकरूपता प्राप्त करने तथा संघ एवं सभी राज्यों के मध्य समतुल्यता (Party) प्राप्त करने के लिए उन मतों (या मत के मूल्य) की गणना की जाएगी, जिन्हें संसद या राज्य विधानसभा का प्रत्येक सदस्य देने का हकदार है। इसका तरीका निम्नलिखित होगा [55(2)]।किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए। यदि शेष पांच सौ से कम नहीं है तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा अर्थात्(b) संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपर्युक्त राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आये (इसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा) अर्थात्स्पष्टीकरण (Explanation)राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए जनसंख्या से आशय 1971 की जनगणना द्वारा अभिनिश्चित की गई जनसंख्या से है।84वें संविधान संशोधन, 2001 द्वारा इस अनुच्छेद में यह प्रावधान शामिल किया गया कि 2026 तक राष्ट्रपति के निर्वाचन में 1971 की जनसंख्या को आधार माना जाएगा।नोट :1. वह प्रत्याक्षी विजयी घोषित किया जाएगा जो न्यूनतम कुल मतों के आधे से एक अधिक मत प्राप्त करता है अर्थात्2. प्रत्येक मतदाता मत देते समय सभी प्रत्याशियों को वरीयता क्रम प्रदान करता है। मतगणना के समय सर्वप्रथम वरीयता के मत गिने जाते हैं। यदि किसी को जीत के लिए निर्धारित मत नहीं प्राप्त होते तो द्वितीय चरण की गणना एक संक्रमणीय मत के आधार पर होती है।3. राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी प्रावधान राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1952 में वर्णित किए गए हैं।

विधान सभा में सीटों की संख्या  एक विधायक के मत की मूल्य से संबंधित सारणी –

क्र.सं.राज्यविधान सभा में सीटों की संख्याराष्ट्रपति चुनाव में विधायक का मत मूल्य
1.आन्ध्रप्रदेश294148
2.अरुणाचल प्रदेश608
3.असम126116
4.बिहार243173
5.छत्तीसगढ़90129
6.गोवा4020
7.गुजरात182147
8.हरियाणा90112
9.हिमाचल प्रदेश6851
10.जम्मू एवं कश्मीर8772
11.झारखण्ड81176
12.कर्नाटक224131
13.केरल140152
14.मध्य प्रदेश230131
15.महाराष्ट्र288175
16.मणिपुर6018
17.मेघालय6017
18.मिजोरम408
19.नागालैण्ड609
20.ओडिशा147149
21.पंजाब117116
22.राजस्थान200129
23.सिक्किम327
24.तमिलनाडु234176
25.त्रिपुरा6026
26.उत्तर प्रदेश403208
27.उत्तरांचल7064
28.पश्चिम बंगाल294151
केन्द्र शासित प्रदेश
1.दिल्ली7058
2.पुडुचेरी3016
 कुल4,120 
अनुच्छेद-56राष्ट्रपति का कार्यकाल।-    इस अनुच्छेद के अन्तर्गत राष्ट्रपति के कार्यकाल का उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष तक अपने पद पर रहता है।-    वह अपने कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व उपराष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र द्वारा पद छोड़ सकता है।
अनुच्छेद-57पुन: चुनाव के लिए अर्हता।-   इस अनुच्छेद के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति पुन: निर्वाचित भी हो सकता है अर्थात् भारत का राष्ट्रपति एक से अधिक बार भी राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है।
अनुच्छेद-58राष्ट्रपति चुने जाने के लिए योग्यता।- इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति की योग्यता का उल्लेख किया गया है जो निम्न प्रकार है–(i) वह भारत का नागरिक हो।(ii) वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।(iii) वह लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।(iv) वह किसी लाभ के पद पर न हो।
अनुच्छेद-59राष्ट्रपति पद की शर्तें।इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति के पद के संबंध में कुछ शर्तें निर्धारित की गई है जो निम्न प्रकार हैं–-  संघ व राज्य के अधीन किसी भी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए, यदि वह सदस्य है तो राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तिथि से उसका पिछला पद रिक्त या खाली मान लिया जाएगा।-    अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकता।-   राष्ट्रपति को नि: शुल्क आवास का अधिकार होता है और उसे ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी अधिकार है जो संसद विधि द्वारा अवधारित करें और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।- राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जा सकते हैं।- वेतन-भत्ते भारत सरकार की संचित निधि कोष  पर भारित होंगे।वर्तमान वेतन – 5 लाख रुपये/माह 
अनुच्छेद-60राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान।नोट – H.V. कामथ के सुझाव पर भारतीय संविधान में “सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान/ईश्वर …….” यह शब्द राष्ट्रपति की शपथ हेतु संविधान में जोडे़ गए।शपथ – “मैंअमुक (राष्ट्रपति का नाम) ………. ईश्वर की शपथ लेता/लेती हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता/करती हूँ कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूँगा/करूँगी तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षणसंरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा/करूँगी और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा/रहूँगी।”– राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलाता है।-  राष्ट्रपति संविधान व विधि के परिरक्षण, संरक्षण, प्रतिरक्षण, लोक कल्याण व सेवा की शपथ लेता है।
अनुच्छेद-61राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया।इस अनुच्छेद के अन्तर्गत राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है, जिसके अन्तर्गत–-  संविधान के उल्लंघन के आधार पर राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग, केवल संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन में लाया जा सकता है। महाभियोग हेतु अभियोग चलाने वाले सदन की समस्त संख्या के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।-  राष्ट्रपति को अभियोग की सूचना 14 दिन पहले देना अनिवार्य है। अभियोग चलाने के 14 दिन बाद अभियोग चलाने वाले सदन में उस पर विचार किया जाएगा, यदि अभियोग का प्रस्ताव सदन की कुल सदस्य संख्या के 2/3 सदस्यों द्वारा स्वीकृत हो जाए, तो उसके उपरांत प्रस्ताव द्वितीय सदन को भेज दिया जाता है।-  दूसरा सदन, इन अभियोगों की या तो स्वयं जाँच करेगा या इस कार्य के लिए एक विशेष समिति नियुक्त करेगा। राष्ट्रपति स्वयं उपस्थित होकर या अपने प्रतिनिधि द्वारा अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है। यदि इस सदन में राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं और सदन भी अपने कुल सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से महाभियोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है, तो प्रस्ताव स्वीकृत होने की तिथि से राष्ट्रपति पदमुक्त समझा जाएगा।
अनुच्छेद-62राष्ट्रपति पद की रिक्ति के संबंध में प्रावधान।इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति के पद की रिक्ति के संबंध में प्रावधान किए गए हैं।- सामान्यत: नए राष्ट्रपति के चुनाव कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही करवा लिए जाते हैं तथा नया राष्ट्रपति पद ग्रहण से पूरे पाँच वर्ष तक रहेगा।- यदि राष्ट्रपति की मृत्यु या त्यागपत्र तथा महाभियोग के कारण पद खाली हो जाए तो छह माह के भीतर नए राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न करवाना आवश्यक है।- रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति को अनुच्छेद-56 के उपबंधों के तहत अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का अधिकार होता है।नोट – अनुच्छेद-65 के तहत राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने व उसके कृत्यों के निर्वहन करने का उल्लेख किया गया है।नोट – अनुच्छेद-70 के अन्तर्गत अन्य किसी आकस्मिकता में जो संविधान में उपबंधित नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए संसद ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठीक समझे ।
अनुच्छेद-71राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामलों के संबंध में प्रावधान।- राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी शंकाओं और विवादों की जाँच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।- यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया जाता है तो उसके द्वारा, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन में उच्चतम न्यायालय के विनिश्चय की तारीख को या उससे पहले किए गए कार्य उस घोषणा के कारण ‍अधिमान्य नहीं होंगे।- इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकती है।- राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन को उसे निर्वाचित करने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों में किसी भी कारण से विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद-72राष्ट्रपति की क्षमादान इत्यादि की शक्ति तथा कतिपय मामलों में दंड का स्थगन, माफी अथवा कम कर देना।जो निम्नलिखित है-क्षमा (Pardon)-क्षमादान केवल दण्ड को समाप्त नहीं करता अपितु दण्डित व्यक्ति को उस स्थिति में ला देता है जैसे कि उसने अपराध किया ही न हो अर्थात् वह निर्दोष हो जाता है।लघुकरण (Commutation)-एक प्रकार के दण्ड के स्थान पर दूसरा हल्का दण्ड देना, जैसे कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।परिहार (Remission)-दण्डादेश की मात्रा को उसकी प्रकृति में परिवर्तन किए बिना कम करना, जैसे 1 वर्ष के कारावास को घटाकर 6 माह कर देना।विराम (Respite)-दण्ड पाए हुए व्यक्ति की विशिष्ट अवस्था (शारीरिक अपंगता या महिलाओं की गर्भावस्था) के कारण उसके दण्ड की कठोरता को कम करना। जैसे – मृत्युदण्ड के स्थान पर आजीवन कारावास देना।निलम्बन (Reprieve)-दण्डादेश के निष्पादन को रोक दिया जाना। दूसरे शब्दों में मृत्यु दण्ड का अस्थायी निलम्बन करना। जैसे- फाँसी को कुछ समय के लिए टालना।नोट – राष्ट्रपति क्षमादान शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह पर करता है। राष्ट्रपति की यह शक्ति न्यायिक पुनरवलोकन के अधीन हैं।
अनुच्छेद-73– राष्ट्रपति की शक्तियाँ वहाँ तक होगी जहाँ तक कि संघ की कार्यपालिका का विस्तार है।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ-

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¨कार्यपालिका शक्तियाँ:-

–   अनुच्छेद-53 के अनुसार संघीय कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। इसके कारण राष्ट्रपति संघीय कार्यपालिका का प्रमुख होता है।

–  अनुच्छेद-75 – मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान, जैसे- नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन इत्यादि।

–  अनुच्छेद-76 – महान्यायवादी की नियुक्ति मंत्रिपरिषद् की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-77 के अनुसार संघ सरकार का समस्त प्रशासन कार्य राष्ट्रपति के नाम से होता है।

–  अनुच्छेद-78 के अनुसार राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री से प्रशासन के सन्दर्भ में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।

–  अनुच्छेद-155 राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-239 संघ शासित क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति के नाम से सम्पादित किया जाता है।

–  अनुच्छेद-239AA में यह उल्लिखित है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी तथा मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। (69वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1992)

–  संघ शासित प्रदेश प्रशासन अधिनियम, 1963 के अनुसार पुडुचेरी के मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-338 के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-338A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-338B के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

विधायी शक्तियाँ

–  अनुच्छेद-80(3) – इसके अनुसार राष्ट्रपति राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करता है, जिनका संबंध साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा जैसे विषयों में विशेष ज्ञान से हैं।

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–  यह राष्ट्रपति का स्वविवेक नहीं है, गृहमंत्रालय की सलाह पर करता है।

–  अनुच्छेद-85 के अनुसार- राष्ट्रपति संसद के सत्र आहूत करता है, वह किसी सदन का सत्रावसान कर सकता है तथा लोकसभा को विघटित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।

–  अनुच्छेद-86 के अनुसार– राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या दोनों सदनों को एक साथ समवेत कर अभिभाषण कर सकता है।

–  अनुच्छेद-87 के अनुसार– राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण – नई लोकसभा के गठन के पश्चात् प्रथम बैठक एवं प्रत्येक वर्ष की प्रथम बैठक। 

 अनुच्छेद-108 के अनुसार– संसद के दोनों सदनों में 6 माह से अधिक का गतिरोध होने की स्थिति में संयुक्त बैठक आहूत कराता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।

नोट- साधारण विधेयक या वित्त विधेयक के संबंध में ही संयुक्त बैठक का प्रावधान है।

–  आज तक संसद की तीन संयुक्त बैठक हुई हैं।

क्र. संसमयकारणराष्ट्रपतिअध्यक्षताप्रधानमंत्री
1.06-05-1961दहेज विरोध अधिनियमराजेन्द्र प्रसादलोकसभा अध्यक्ष (ए.एस. आयंगर)प. जवाहर लाल नेहरू
2.16-05-1978बैंकिंग सेवा अधिनियमएन.एस. रेड्डीलोकसभा अध्यक्ष (के.एस. हेगड़े)मोरारजी देसाई
3.26-03-2002आतंकवाद निरोधक अधिनियमके.आर. नारायणलोकसभा उपाध्यक्ष (जी.एम.सी. बालयोगी)अटल बिहारी वाजपेयी

अध्यादेश जारी करने की शक्ति

–  अनुच्छेद-123 – इसके अनुसार राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है। अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 माह तथा सदन की पुन: बैठक के बाद 6 सप्ताह तक बनी रहती है। राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश को किसी भी समय वापस लिया जा सकता है। अध्यादेश का प्रभाव वैसा ही होता है जैसा कि संसद के किसी अधिनियम का होता है। 38वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 के माध्यम से अध्यादेश को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया गया है परन्तु 44वें संविधान संशोधन अधिनियम,1978 के माध्यम से इसे फिर से न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत कर दिया गया है।

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–  कुछ विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किए जा सकते हैं- जैसे :

(1) नए राज्य का निर्माण, राज्य के नाम व सीमा क्षेत्र आदि में परिवर्तन से संबंधित विधेयक।

(2) धन विधेयक

(3) भारत की संचित निधि से व्यय संबंधी विधेयक (अनुच्छेद-117)

विधेयक (अनुच्छेद-304) 

न्यायिक शक्तियाँ :-

–  अनुच्छेद-72 – राष्ट्रपति द्वारा किसी व्यक्ति की सजा को कम या माफ करना।

–  अनुच्छेद-124 – इस अनुच्छेद के तहत‌ राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। (अनुच्छेद-124 (2)) उन्हें पदमुक्त करता है (अनुच्छेद-124 (4) तथा उन्हें शपथ दिलाता है (अनुच्छेद-124 (6)

–  अनुच्छेद-126 – इस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-217 – इसके तहत राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है तथा उन्हें पद मुक्त करता है।

–  अनुच्छेद-223 – इसके तहत उच्च न्यायालय में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–  अनुच्छेद-143 – के अनुसार राष्ट्रपति को दो श्रेणियों के मामले में उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने की शक्ति प्रदान की गई है।

–  यदि राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि –

1. विधि या तथ्यों का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ या होने की सम्भावना है,

2. ऐसी प्रकृति का और ऐसे सार्वजनिक महत्त्व का विषय हों कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय लेना आवश्यक है तो वह उस प्रश्न को विचारार्थ भेज सकता है।

–  दूसरी श्रेणी में संविधान के प्रारम्भ में पहले अर्थात् 26 जनवरी, 1950 से पूर्व की गई सन्धियाँ, करारों, समझौतों आदि किसी विषयों से संबंधित विवाद आते हैं।

वित्तीय शक्तियाँ

–  अनुच्छेद-109 – इसके तहत धन विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है।

–  अनुच्छेद-112 – भारत सरकार का वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) राष्ट्रपति के नाम से प्रस्तुत किया जाता है।

–  अनुच्छेद-280 – के अंतर्गत राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व बँटवारे के लिए वित्त आयोग का गठन करता है।

नोट – Ist वित्त आयोग के अध्यक्ष – के.सी. नियोगी (1952-1957)

15th वित्त आयोग के अध्यक्ष – एन. के. सिंह (2020-2025)

–  अनुच्छेद-267 – भारत सरकार की आकस्मिक निधि कोष पर राष्ट्रपति का नियंत्रण होता है।

वीटो शक्ति

–  वीटो (निषेधाधिकार) चार प्रकार के होते हैं–

1. आत्यंतिक निषेधाधिकार (Abosalute Veto)

2. निलम्बित निषेधाधिकार (Suspensive Veto)

3. जेबी निषेधाधिकार (Pocket Veto)

4. विशेषित निषेधाधिकार (Qulified Veto)

नोट: उपर्युक्त वीटो में आत्यंन्तिक निषेधाधिकार, निलम्बित निषेधाधिकार व जेबी निषेधाधिकार भारत के राष्ट्रपति को प्राप्त है।

1. आत्यंतिक निषेधाधिकार – व्यवस्थापिका द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति देने से इंकार करने हेतु इस वीटो का प्रयोग किया जाता है।

–  1954 में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा ‘पेप्सू विनियोजन विधेयक’ पर इसका प्रयोग किया गया।

–  1991 में राष्ट्रपति द्वारा आर. वेंकटरमण ने सांसदों के वेतन आदि से संबंधित विधेयक पर इस वीटो का प्रयोग किया गया।

2.निलम्बित निषेधाधिकार – इस वीटो के तहत व्यवस्थापिका द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति पुन: विचार हेतु लौटा सकता है।

3.जेबी निषेधाधिकार – इस वीटो के तहत व्यवस्थापिका द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति न स्वीकृति दें, न अस्वीकृति दें तथा न ही पुन:विचार हेतु  लौटाए।

(सन् 1986 में ज्ञानी जैल सिंह द्वारा डाक विधेयक के सन्दर्भ में इस वीटो का प्रयोग किया गया था। )

–  अनुच्छेद-111 – इसके अनुसार कोई विधेयक पारित किए जाने पर राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए भेजा जाता है, संसद द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्रदान करने संबंधी शक्ति को ही राष्ट्रपति की वीटो शक्ति कहा जाता है। यह राष्ट्रपति की विधायी शक्ति का अंग है।

–  संसद द्वारा पारित किसी विधेयक पर अनुमति रोकता है अथवा उसे संसद के दोनों सदनों या विधानमंडलों को पुनर्विचार के लिए लौटाता है तो उसे वीटो कहा जाता है।

–  24वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 के माध्यम से राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर सहमति देने के लिए बाध्य कर दिया गया।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ

–  आपातकाल का प्रावधान संविधान के भाग 18 के अनुच्छेद 352 से 360 तक है।

–  आपातकाल का प्रावधान भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है तथा आपातकाल के समय मौलिक अधिकारों को निलम्बित करने का प्रावधान जर्मनी के संविधान से लिया गया है।

–  आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति उत्पन्न परिस्थितियों के आधार पर करता है।

–  एक साथ एक से अधिक आपातकाल की भी घोषणा की जा सकती है।

–  आपातकाल की घोषणा को निर्धारित समयसीमा में संसद से स्वीकृत करवाना आवश्यक होता है।

अनुच्छेद 352

–  युद्ध बाहरी आक्रमण एवं सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में संघीय मंत्रीमण्डल के लिखित परामर्श पर राष्ट्रपति सम्पूर्ण भारत या उसके किसी एक भाग में आपातकाल की घोषणा कर सकता है।

(Note: 44वें संविधान संशोधन के द्वारा आंतरिक अशांति शब्द को संविधान से हटा दिया गया तथा इसके स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया।आपातकाल की अवधि को बढ़ाने हेतु:

–  संसद की स्वीकृति के बिना इसे एक माह तक लागू रखा जा सकता है।

–  एक बार संसद की स्वीकृति पर इसे स्वीकृति की तिथि से आगामी माह तक लागू रखा जा सकता है और अधिक अवधि के लिए लागू रखना हो तो प्रति माह में संसद की स्वीकृति आवश्यक है। इसकी अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं है।

–  वर्तमान तक 3 बार इसकी घोषणा की जा चुकी है

क्र. सं.समयकारणराष्ट्रपतिप्रधानमंत्री
1.26-10-1962से 10-01-1968 तकयुद्ध व बाहरी आक्रमणराधाकृष्ण¯जाकिर हुसैनजवाहर लाल नेहरू¯लाल बहादुर शास्त्री¯इन्दिरा गांधी
2.03-12-1971से 17-03-1977 तकयुद्ध व बाहरी आक्रमणवी.वी. गिरी¯फखरुद्दीनन अहमद¯बी.डी. जत्तीइन्दिरा गांधी¯मोरारजी देसाई
3.25-06-1975 से 21-03-1977आन्तरिक शांतिफखरुद्दीन अली अहमद¯बी.डी. जत्तीइन्दिरा गांधी¯मोरारजी देसाई

आपातकाल को कैसे समाप्त कर सकते हैं? –

44वें संविधान संशोधन में यह प्रावधान किया गया कि कैबिनेट (मंत्रिमंडलइस आशय की लिखित सूचना राष्ट्रपति को देगा।

–  यदि लोक सभा के 1/10 सदस्य राष्ट्रपति या स्पीकर से यह अनुरोध करें कि आपातकाल हटाने का प्रस्ताव लाया जाए। तब लोक सभा साधारण बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पास कर इसे समाप्त कर सकती है।

जबकि बढ़ाने के लिएदोनों सदनों की सहमति की आवश्यकता होती है।

आपातकाल और संघ एवं राज्य संबंध

– संघराज्य सूची के किसी विषय पर विधि निर्माण कर सकता है।

– राज्य विधान सभाएँ बनी रहती हैंलेकिन संसद को राज्य सूची पर विधि निर्माण की समानांतर शक्ति प्राप्त हो जाती है।

– आपातकाल के समय राज्य सूचीसमवर्ती सूची बन जाती है।

– अगर संसद का सत्र नहीं चल रहा हैतो राष्ट्रपतिराज्य सूची के विषय पर अध्यादेश भी जारी कर सकता है।

– इस दौरान संघ सरकार राज्यों को किसी भी मुद्दे पर निर्देश दे सकती है।

राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356)

– संविधान में इसे संवैधानिक तंत्र की विफलता कहा गया। लोकप्रिय रूप में इसे राष्ट्रपति शासन के रूप में जाना जाता है।

अवधि को बढ़ाने हेतु:

–  संसद की स्वीकृति के बिना यह घोषणा 2 माह तक लागू रखी जा सकती है।

–  एक बार संसद की स्वीकृति के बाद इसे घोषणा की तिथि से आगामी माह तक लागू रखा जा सकता है।

–  सामान्य परिस्थितियों में इसे 1 वर्ष तक लागू रखा जा सकता हैपरन्तु यदि उस समय राज्य में अनुच्छेद 352 लागू हो या चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे कि राज्य की परिस्थितियाँ चुनाव संपन्न करवाने योग्य नहीं हैतो इसे अधिकतम 3 वर्ष तक लागू रखा जा सकता है।

–  पहली बार घोषणा:- 1951 पंजाब

–  सर्वाधिक बार घोषणा प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कार्यकाल के समय की गई।

अनुच्छेद356 हटाने का प्रावधान

– राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा इसे किसी भी समय समाप्त कर सकता है।

केन्द्र एवं राज्य संबंध पर इसका प्रभाव

– विधान मंडल भंग हो जाता है एवं पहले विधान सभा निलंबित (Suspension) रहती है।

– राज्य सूची के सभी विषयों पर कानून का निर्माण राष्ट्रपति या अन्य प्राधिकारी जिसे वह उचित समझे करेगा।

अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल

– यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि भारत या उसके किसी भाग में वित्तीय अस्थायित्व या भारत की साख (Credit) संकट में हैतो वित्तीय आपातकाल की घोषणा हो सकती है।

बढ़ाने का प्रावधान

–  संसद की स्वीकृति के बिना इसे 2 माह तक लागू रखा जा सकता है।

–  एक बार संसद की स्वीकृति के बाद इसे स्वीकृति की तिथि से आगामी माह या अनिश्चित काल के लिए लागू रखा जा सकता है।

–  इसकी अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं है और  ही बार बार संसद की स्वीकृति लेने की बाध्यता है।

– अभी तक भारत में वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया गया।

समाप्त करने का प्रावधान

– राष्ट्रपति कभी भी वित्तीय आपातकाल को समाप्त करने की उद्घोषणा कर सकता है।

–  संघ एवं राज्य संबंधों पर प्रभाव

– राज्य के क्रियाकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किन्हीं व्यक्तियों के वेतन या भत्तों में कटौती की जा सकती है।

–  राष्ट्रपति के द्वारा संघ सरकार के अंतर्गत कार्य करने वाले किसी वर्ग या सभी अधिकारियों के वेतन एवं भत्तों में कटौती की जा सकती है। इसमें उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते भी सम्मिलित हैं।

–  संघ सरकार के द्वारा राज्यों को किसी भी वित्तीय मामले पर निर्देश दिए जा सकते हैं।

–  अनुच्छेद-207 के अंतर्गत राज्य विधान मंडल द्वारा पारित धन विधेयक या अन्य विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया जा सकता।

–  हरगोविन्द वाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहाकि अनुच्छेद-356 का न्यायिक पुनरवलोकन नहीं करेंगे तथा बोम्मई वाद में कहाकि अगर दुरूपयोग हुआतो न्यायपालिकाभंग विधान सभा को भी बहाल कर देगी।

राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के पदों का एक साथ रिक्त होना

–  कभी-कभी ऐसी स्थिति भी पैदा हो सकती है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों पद एक साथ रिक्त हो जाए। संविधान में इस संबंध में कोई निश्चित प्रावधान नहीं दिया गया है किंतु अनुच्छेद 70 में संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह इस प्रकार की आकस्मिकताओं के संबंध में ऐसे उपबंध कर सकेगी, जिन्हें वह ठीक समझती है।

–  संसद ने ‘राष्ट्रपति (कृत्यों का निर्वहन) अधिनियम, 1969’ पारित करके स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के न होने की दशा में सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की भूमिका ग्रहण करेगा और यदि वह पद भी खाली हो तो सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश राष्ट्रपति का कार्य संभालेगा।

भारत के राष्ट्रपतियों की सूची
क्र.सं.राष्ट्रपतिकार्यकालविशेष
1.डॉ. राजेन्द्र प्रसाद26 जनवरी, 1950 – 13 मई, 1962एकमात्र राष्ट्रपति थे जो कि दो बार राष्ट्रपति बने।
2.डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन13 मई, 1962 – 13 मई, 1967राधाकृष्णन मुख्यत: दर्शनशास्त्री और लेखक थे। आंध्र विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके थे।
3.ज़ाकिर हुसैन13 मई, 1967 – 3 मई, 1969ज़ाकिर हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे और ‘पद्मविभूषण’ व ‘भारतरत्न’ के भी प्राप्तकर्ता थे।
वराह गिरि वेंकट गिरि (कार्यवाहक)3 मई, 1969 – 20 जुलाई, 1969वी. वी. गिरि पदस्थ राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। वह दूसरी/वरीयता से जीतने वाले पहले राष्ट्रपति थे।
4.मुहम्मद हिदायतुल्लाह (कार्यवाहक)20 जुलाई, 1969 – 24 अगस्त, 1969हिदायतुल्लाह भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया के प्राप्तकर्ता थे।
वराह गिरि वेंकट गिरि24 अगस्त, 1969 – 24 अगस्त, 1974गिरि एकमात्र व्यक्ति थे जो कार्यवाहक राष्ट्रपति व पूर्णकालिक राष्ट्रपति दोनों बने।
5.फखरुद्दीन अली अहमद24 अगस्त, 1974 – 11 फरवरी, 1977फखरुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति बनने से पूर्व मंत्री थे। उनकी पदस्थ रहते हुए मृत्यु हो गई। वे दूसरे राष्ट्रपति थे जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
6.बासप्पा दनप्पा जत्ती (कार्यवाहक)11 फरवरी, 1974 – 25 जुलाई, 1977बी. डी. जत्ती, फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के बाद भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। इससे पहले वे मैसूर के मुख्यमंत्री थे।
नीलम संजीव रेड्‌डी25 जुलाई, 1977 – 25 जुलाई, 1982नीलम संजीव रेड्‌डी आंध्र प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे। रेड्‌डी आंध्र प्रदेश से चुने गए एकमात्र सांसद थे। वे 26 मार्च, 1977 को लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए और 13 जुलाई, 1977 को यह पद छोड़ दिया और भारत के छठे राष्ट्रपति बने।
7.ज्ञानी जैल सिंह25 जुलाई, 1982 – 25 जुलाई, 1987जैल सिंह मार्च 1972 में पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री बने और 1980 में गृहमंत्री बने।
8.राधास्वामी वेंकटरमण25 जुलाई, 1987 – 25 जुलाई, 19921942 में वेंकटरमण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जेल भी गए। जेल से छूटने के बाद वे कांग्रेस पार्टी के सांसद रहे। इसके अलावा वे भारत के वित्त एवं औद्योगिक मंत्री और रक्षामंत्री भी रहे।
9.शंकरदयाल शर्मा25 जुलाई, 1992 – 25 जुलाई, 1997ये मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के संचार मंत्री रह चुके थे। इसके अलावा ये आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल भी थे।
10.के. आर. नारायणन25 जुलाई, 1997 – 25 जुलाई, 2002नारायणन चीन, तुर्की, थाईलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके थे। उन्हें विज्ञान और कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त थी। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
11.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम25 जुलाई, 2002-25 जुलाई, 2007कलाम मुख्यत: वैज्ञानिक थे जिन्होंने मिसाइल और परमाणु हथियार बनाने में मुख्य योगदान दिया, इस कारण उन्हें ‘भारतरत्न’ भी मिला। उन्हें भारत का ‘मिसाइलमैन’ भी कहा जाता है।
12.प्रतिभा देवी सिंह पाटिल25 जुलाई, 2007 – 25 जुलाई, 2012प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनीं। वह राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल भी थीं।
13.प्रणब मुखर्जी25 जुलाई, 2012 – 25 जुलाई, 2017प्रणब मुखर्जी भारत सरकार में वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके हैं।
14.रामनाथ कोविंद25 जुलाई, 2017 – पदस्थराज्यसभा सदस्य तथा बिहार के राज्यपाल रह चुके हैं।

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