मगध का उत्थान
– छठी से चौथी शताब्दी ई.पू. में मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। आधुनिक इतिहासकार इसके कई कारण बताते हैं। एक यह कि मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी। दूसरा यह कि लोहे की खदानें भी आसानी से उपलब्ध थी, जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था। जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग थे। साथ ही गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था लेकिन आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बताया है। इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार, अजातशत्रु और महापद्मनंद जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक थे और इनकें मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।
– प्रारंभ में, राजगृह मगध की राजधानी थी। यह रोचक बात है कि इस शब्द का अर्थ है ‘राजाओं का घर’। पहाड़ियों के बीच बसा राजगृह एक किलेबंद शहर था। बाद में चौथी शताब्दी ई.पू. में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जिसे अब पटना कहा जाता है जिसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर महत्त्वपूर्ण अवस्थिति थी पाटलिपुत्र का संस्थापक उदयन (उदायिन) था।
– मगध देश में आर्य और अनार्य संस्कृतियों का सुन्दर समन्वय हुआ, जिसके कारण वर्णव्यवस्था इतनी जटिल न बन सकी जैसे कि मध्य प्रदेश (उत्तर प्रदेश) में । मगध के राजाओं ने योग्य व्यक्तियों को अपना मन्त्री चुना और अच्छा प्रशासन स्थापित किया। इन सब कारणों का सामूहिक प्रभाव यह हुआ कि मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया।
– मगध – राजनीतिक एवं धार्मिक एकता के कारण प्रसिद्ध था।
मगध की राजधानियों का क्रम – 1. गिरिव्रज, 2. राजगृह/राजगीर, 3.पाटलिपुत्र
– गिरिव्रज को वसुमति या कुशाग्रपुर भी कहा जाता था।
– मगध के अन्य नाम – बृहद्रथपुरी, मगधपुरी, वसुनगरी।
– मगध की वर्तमान स्थिति – दक्षिणी बिहार में पटना व गया के आसपास का क्षेत्र।
– मगध पर शासन करने वाले राजवंश –
वंश का क्रम
बृहद्रथ
हर्यक
नाग
नंद
मौर्य
संस्थापक
बृहद्रथ
भट्टीय (प्रथम)
बिम्बिसार (वास्तविक)
शिशुनाग
महापद्मनंद
चन्द्रगुप्त मौर्य
– महाभारत व पुराणों में मगध पर शासन करने वाला प्रथम राजवंश – बृहद्रथ वंश बताया गया है।
– जैन साहित्य में मगध के प्रथम शासक का नाम प्रेमगंद मिलता है।
1. बृहद्रथ राजवंश :-
संस्थापक – बृहद्रथ
गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया।
– ‘जरा’ नामक राक्षसी की पूजा की, इसी कारण उसी के वरदान से उसे जरासंध नामक पुत्र प्राप्त हुआ।
जरासंध :-
– बृहद्रथ की मृत्यु के बाद शासक बना।
– श्रीमद्भगवद् पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने उसे अनेक बार पराजित किया।
– अन्तत: पाण्डु पुत्र भीम के हाथों मल्ल युद्ध (कुश्ती) में मारा गया।
– बृहद्रथ वंश का अंतिम शासक “रिपुजन्य” कमजोर शासक था। इसकी हत्या इसके सामन्त भट्टीय ने कर दी थी तथा हर्यक वंश की स्थापना की थी।
2. हर्यक वंश (544 ई. पू. 412 ई. पू.):-
शासकों का क्रम
बिंबिसार (544 – 492 ई. पू.)
अजातशत्रु (492 – 459 ई. पू.)
उदायिन (459 ई. पू. – 444 ई. पू.)
अनिरुद्ध (444 – 437 ई. पू.)
– यूनानी इतिहासकार टर्नर के अनुसार भट्टीय बिम्बिसार के पिता माने जाते हैं।
– जैनग्रंथों के अनुसार बिम्बिसार के पिता का नाम हेमजीत क्षैत्रोजा था।
– बौद्धग्रंथ महावंश के अनुसार – हर्यक वंश का वास्तविक संस्थापक – बिम्बिसार था।
– भारतीय इतिहास का प्रथम पितृहंता – अजातशत्रु (अपने पिता बिम्बिसार की हत्या) था।
– भारतीय इतिहास का दूसरा पितृहंता – उदायिन था।
– पहला ऐसा राजवंश जिसमें सर्वाधिक पितृहंता हुए।
– हर्यक वंश का प्रथम शासक – भट्टीय था।
– हर्यक वंश का वास्तविक संस्थापक – बिम्बिसार को माना जाता है।
बिम्बिसार :-
– मगध का सबसे पहला शक्तिशाली राजा बिम्बिसार था। पालिग्रन्थों के अनुसार वह हर्यक कुल का था। वह एक साधारण सामन्त का पुत्र था। महावंश के अनुसार जब वह गद्दी पर बैठा, उसकी अवस्था केवल 15 वर्ष की थी।
– बिम्बिसार ने बड़ी बुद्धिमता से काम लिया। उसने शक्तिशाली राजघरानों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी शक्ति बढ़ाई। उसकी प्रधान रानी कौशल देवी थी, जो कौशल के राजा प्रसेनजीत की बहन थी। इस विवाह में दहेज के रूप में बिम्बिसार को काशी राज्य का कुछ प्रदेश मिला था, उसकी दूसरी रानी चेल्लना थी, जो लिच्छवियों के राजा चेटक की बहन थी। तीसरी रानी क्षेमा पंजाब के शक्तिशाली मद्र राज्य की राजकुमारी थी। उसकी चौथी रानी विदेह की राजकुमार पाती थी। ये वैवाहिक सम्बन्ध मगध के साम्राज्य-विस्तार में बहुत सहायक हुए। तक्षशिला के राजा पुष्करसारी ने प्रद्योत के विरुद्ध उससे सहायता माँगी किन्तु उसने प्रद्योत से शत्रुता मोल लेना उचित नहीं समझा। उसने पुष्करसारी के राजदूत का स्वागत किया परन्तु प्रद्योत के विरुद्ध उसे सहायता न दी। इसके विपरीत जब प्रद्योत पाण्डुरोग से पीड़ित हुआ तो बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उसकी चिकित्सा करने भेजा।
– हर्यक वंश का वास्तविक संस्थापक (आयु में बुद्ध से 5 वर्ष छोटा)
– भगवान महावीर व गौतम बुद्ध दोनों के समकालीन था।
– जैन ग्रंथों में इसका नाम श्रोणिक/श्रेणिक बताया गया है।
– भगवान महावीर का अनुयायी व बुद्ध का उपासक था।
– बिम्बिसार ने बौद्धसंघ को एक करन्द वेनु वन दान में दिया।
– मगध का प्रथम शासक – जिसने वृहद् मगध साम्राज्य की नींव रखी थी।
– बौद्ध ग्रंथ “महावग्गा” के अनुसार बिम्बिसार ने अपने जीवनकाल में लगभग 500 विवाह किए।
– साम्राज्य में – 80000 गाँव शामिल थे।
– अंग राज्य को जीता तथा अपने पुत्र अज्ञातशत्रु को वहाँ का शासक नियुक्त किया।
– अजातशत्रु ने 492 ई. पू. में बिम्बिसार की हत्या की व राजा बना।
अजातशत्रु :-
– अजातशत्रु अपने पिता – बिम्बिसार की हत्या करने के लिए 491 ई.पू. में शासक बना।
– भारतीय इतिहास का प्रथम पितृहंता था।
– अजातशत्रु का उपनाम – “कुणिक” था।
– अजातशत्रु ने प्रसेनजीत पर आक्रमण किया।
– प्रसेनजीत ने पराजित अजातशत्रु को कारावास में कैद कर दिया। कारावास में कैद अजातशत्रु से प्रसेनजीत की पुत्री वाज़ीरा को प्रेम हो गया, पिता से विवाह कराने का आग्रह किया। विवाह के पश्चात् काशी पुन: अजातशत्रु को प्राप्त हो गई।
– वज्जि संघ की राजधानी वैशाली में लिच्छवी वंश के राजा चेटक का शासन था।
– अजातशत्रु ने चेटक को पराजित करने के लिए एक योजना बनाई। उसने अपने मंत्री वत्सकार (विश्वासपात्र मंत्री) का दिखावे हेतु अपमान किया। वत्सकार ने चेटक की शरण ली तथा विश्वास जीतकर लिच्छवियों में फूट डाली।
– लिच्छवियों में फूट का फायदा उठाकर अजातशत्रु लगातार 16 वर्षों तक लिच्छवियों से संघर्ष करता रहा।
– अंतत: अपने मंत्री वत्सकार की सहायता से यह लिच्छवियों को पराजित करने में सफल रहा।
– अजातशत्रु ने काशी व वैशाली को मगध सम्राज्य में मिलाया
– अजातशत्रु ने वज्जि संघ को पराजित करने हेतु 2 हथियार प्रयोग किए-
1) रथ मूसल – वर्तमान टैंक के समान
2) महाशिलाकंटक – वर्तमान आधुनिक तोप के समान
– महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, मक्खलिपुत्र गौशाल को निर्वाण की प्राप्ति अजातशत्रु के समय हुई।
– 483 ई. पू. – राजगृह की सप्तवर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया।
– अजातशत्रु ने राजगृह की एक पहाड़ी पर बुद्ध की अस्थियों पर एक स्तूप का निर्माण करवाया।
– अजातशत्रु ने अपने शासन के अंतिम समय में – गंगा व सोन नदियों के संगम पर दुर्ग निर्माण का कार्य प्रारंभ किया।
– अजातशत्रु के पुत्र उदायिन (उदयभद्र) ने यहीं पर 459 ई.पू. में उसकी हत्या कर दी।
उदायिन/ उदयभद्र (460 – 444 ई.पू.):-
– अपने पिता की हत्या कर सोन तथा गंगा के किनारे पाटलिपुत्र (कुसुमपुर) नगर बसाया व इसे अपनी राजधानी बनाया।
– उदायिन के समय ही काशी, अंग व वज्जि का पूर्णत: विलय मगध में हुआ।
– उदायिन की हत्या पुत्र अनिरुद्ध ने की।
– उदायिन के 3 पुत्र माने जाते हैं – अनिरुद्ध, मुण्ड, नागदशक संयुक्त रूप से शासक बने।
– इस वंश के अंतिम शासक – नागदशक की हत्या बनारस के राज्यपाल शिशुनाग ने की तथा उसने नागवंश की स्थापना की।
3. शिशुनाग वंश / नाग वंश (412 ई.पू. – 344 ई.पू.):-
शासकों का क्रम-
शिशुनाग – कालाशोक – नंदिवर्धन (10 राजा) + 9 भाई सामूहिक रूप से शासक
संस्थापक
1. शिशुनाग :-
– राजा बनने से पूर्व यह बनारस का राज्यपाल था।
– वैशाली की एक नगरवधू की संतान था।
– हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक की हत्या कर शासक बना।
– अवंति, कौशल, व वज्जि संघ का मगध में विलय कर लिया।
– गिरिव्रज को पुन: राजधानी बनाया।
– वैशाली को अपनी द्वितीय राजधानी बनाया।
(बिम्बिसार कालाशोक (काकवर्ण) के समय राजधानी – राजगृह थी)
– शिशुनाग की मृत्यु के बाद शासक बना।
– कृष्ण वर्ण का होने के कारण इतिहास में इसे काकवर्ण कहा जाता है।
– राजधानी पुन: पाटलिपुत्र को बनाया।
– द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन – 383 ई.पू. में वैशाली में कालाशोक के समय किया गया था।
– कालाशोक के दरबार में नाई कार्य करता था। उसकी मृत्यु हो गई, नाई का पुत्र अग्रसेन अब वहाँ कार्य करने लगा। कालाशोक की पत्नी को अग्रसेन नाई से प्रेम हुआ। रानी के ईशारे पर अग्रसेन ने कालाशोक की हत्या कर दी।
– यूनानी इतिहासकार कार्टियस- के अनुसार अग्रसेन नाई ही महापद्मनंद था जिसने मगध पर नंद वंश की नींव डाली।
– बाद में अग्रसेन कालाशोक के 10 पुत्रों का संरक्षक बना व रानी की सहायता से उन्हें भी मार डाला।
4. नंद वंश (344 – 322/323 ई.पू.) :-
– नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनंद था।
– महापद्मनंद को बौद्ध व जैन ग्रन्थों में अग्रसेन, -महाबोधिवंश में इसे उग्रसेन कहा गया है।
– महापद्मनंद ने पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन करने की शपथ ली थी।
– महापद्मनंद को “सर्वक्षत्रान्तक” व “सर्वक्षायन्तक” कहा जाता है।
– यूनानी लेखकों व जैनअनुश्रुति के अनुसार महापद्मनन्द एक नाई था।
– महापद्मनंद ने इक्ष्वाकु, काशी, कौशल, पांचाल महाजनपदों पर अधिकार करके इनका मगध में विलय कर लिया था।
– मैसूर के कुछ प्राचीन अभिलेखों से पता चलता है कि नन्दों ने मैसूर के उत्तर-पश्चिमी भाग अर्थात् कुन्तल पर भी राज्य किया था।
– सम्पूर्ण मगध में “एकराट” पद प्राप्त करने वाला प्रथम शासक था। इसने एकछत्र साम्राज्य की स्थापना की थी।
– “नवानंद दोहरा” नामक नगर की स्थापना की थी।
– इस वंश में 9 राजा थे इसलिए इस वंश के शासकों को नवानंद /नवभातरौ कहा जाता है।
शासक – कुल 9 किन्तु मध्य में शासकों का विवरण अज्ञात।
– महापद्मनंद प्रथम शासक तथा घनानंद अंतिम शासक था बाकी इनके मध्य के शासकों का इतिहास अज्ञात है।
– व्याकरणाचार्य पाणिनि महापद्मनन्द के मित्र थे उन्होंने पाटलिपुत्र में ही शिक्षा ग्रहण की।
घनानंद :-
– अतुल धन संपदा का मालिक था।
– यूनानी इतिहासकारों ने इसे नाम दिया – अग्रमीज
– नंदों के समय मगध का विस्तार गंगा, यमुना से व्यास नदी तक हो गया।
– नंदों के अत्याचारों का वर्णन – विशाखदत्त कृत ‘मुद्राराक्षस’ में मिलता है।
– एकमात्र ऐसा ग्रंथ जिसमें नंदों को “क्षत्रिय” कहा गया है।
– अन्य ग्रंथों में नंदों को शूद्र कहा गया है।
– मुद्राराक्षस पुस्तक गुप्तकाल में लिखी गई।
– मुद्राराक्षस पर टीका लेखन – ढूँढीराज ने 10वीं शती में किया था।
– तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य कौटिल्य से जनता न्याय की गुहार लगाती है कि घनानंद हमसे अत्यधिक कर लेता है। कौटिल्य इस विषय पर समस्या समाधान हेतु घनानंद के दरबार में जाते हैं, वहाँ से अपमानित होकर पुन: तक्षशिला लौटते हैं।
– तक्षशिला लौटते समय निम्नलिखित घटना घटित होती है-
– चंद्रगुप्त मौर्य चाणक्य को राजकिलम् खेल खेलते हुए मिला, बालक के शौर्य से प्रभावित होकर चाणक्य ने शिकारी से 1000 काषार्पण में बालक को खरीद कर तक्षशिला ले गए। तक्षशिला में शिक्षित कर चंद्रगुप्त को सभी विद्याओं में पारंगत किया और उसी की सहायता से घनानंद का समूल विनाश किया। मगध पर नए राजवंश मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
– 322 ई. पूर्व में ही चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य व घनानंद के मंत्रियों से मिलकर नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को मार डाला और मगध पर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
– नंद वंश के शासक जैन धर्म के अनुयायी थे (मुद्राराक्षस)।
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