● बुद्धि मनुष्य की वह विलक्षण क्षमता है जिसके कारण वह अन्य प्राणियों में सबसे श्रेष्ठ है। बुद्धि के बल पर ही एक व्यक्ति उन कार्यों को कर पाता है जिनके बारे में सोचने मात्र से हैरानी हो जाती है और एक व्यक्ति इसके बल को लेकर अंदाजा नहीं लगा पाता।
● शेर जैसे खूंखार प्राणी को वश में करना, टनों वजनी वायुयान को आकाश में उड़ाना तथा जलयान को पानी में तैराना तथा साँप जैसे जहरीले प्राणी को वश में कर लेना बुद्धि का परिणाम है।
● बुद्धि व्यक्ति की जन्मजात शक्ति है परंतु इसमें कार्य करने की क्षमता का विकास वातावरण के संपर्क से होता है।
परिभाषाएँ :-
1. बिने :- “बुद्धि इन चार शब्दों में निहित है- ज्ञान, आविष्कार, निर्देश और आलोचना।”
2. वुडरो :- “बुद्धि ज्ञान अर्जन करने की क्षमता है।”
3. वुडवर्थ :- “बुद्धि कार्य करने की एक विधि है।”
4. टरमन :- “बुद्धि, अमूर्त विचारों को तार्किक रूप से समझने की योग्यता है।”
5. डीयरबार्न :- “बुद्धि, सीखने या अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता है।”
6. बकिंघम :- “बुद्धि, सीखने की शक्ति है।”
7. थॉर्नडाइक :- “सत्य या तथ्य के दृष्टिकोण से उत्तम प्रतिक्रियाओं की शक्ति ही बुद्धि है।”
8. गाल्टन :- “बुद्धि पहचानने व समझने की शक्ति है।”
9. डेविड वैश्लर :- “बुद्धि एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिंतन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है।”
10. रायबर्न :- “बुद्धि वह शक्ति है, जो हमको समस्याओं का समाधान करने और उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।”
11. कॉलसनिक :- “बुद्धि कोई एक शक्ति या क्षमता या योग्यता नहीं है, जो सब परिस्थितियों में समान रूप से कार्य करती है, वरन् अनेक विभिन्न योग्यताओं का योग है।”
12. बोरिंग :- “बुद्धि वही है जो बुद्धि परीक्षण मापता है।”
Note :- सबसे पहले बोरिंग ने बुद्धि की एक औपचारिक परिभाषा दी।
बुद्धि की विशेषताएँ
1. बुद्धि, व्यक्ति की जन्मजात शक्ति है अर्थात् बुद्धि वंशानुक्रम द्वारा निर्धारित होती है, परंतु वंशानुक्रम केवल बुद्धि के प्रसार व उसकी सीमाओं को निर्धारित करता है तथा इस क्षमता का कितना विकास होगा, इसका निर्धारण वातावरण द्वारा किया जाता है।
2. सीखने की योग्यता
3. समस्या समाधान करने की योग्यता
4. अनुभव से लाभ उठाने की योग्यता
5. संबंधों को समझने की योग्यता
6. अपने वातावरण से सामंजस्य करने की योग्यता
7. अमूर्त चिंतन की योग्यता
8. कठिन परिस्थितियों और जटिल समस्याओं के समाधान को सरल बनाती है।
9. यह व्यक्ति को भले-बुरे, सत्य-असत्य, नैतिक और अनैतिक कार्यों में अंतर करने की योग्यता देती है।
10. बुद्धि क्षमताओं का योग है।
11. बुद्धि तर्क, चिंतन, कल्पना तथा स्मरण करने की योग्यता है।
12. बुद्धि पर वंशानुक्रम तथा वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
13. बुद्धि के वितरण की दृष्टि से भी व्यक्तियों में विभिन्नता होती है।
14. जैसे-जैसे आयु बढ़ती है वैसे-वैसे व्यक्ति की बुद्धि भी बढ़ती है। बुद्धि की लम्बवत् वृद्धि किशोरावस्था तक चरम सीमा पर होती है परंतु क्षैतिज वृद्धि, ज्ञान एवं कौशल प्राप्त करना व्यक्ति के समूचे जीवन में जारी रहता है।
15. लैंगिक विभिन्नता बौद्धिक विभिन्नता का कारण नहीं होती।
16. बुद्धि के सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है।
बुद्धि के बारे में भ्रांतियाँ (बुद्धि क्या नहीं है)
1. ज्ञान बुद्धि नहीं है :- यद्यपि ज्ञान प्राप्ति अधिकांश रूप से बुद्धि पर निर्भर करती है।
2. स्मृति बुद्धि नहीं है :- यद्यपि हो सकता है कि अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति की स्मरण शक्ति मंद हो। इसके विपरीत एक मंद बुद्धि व्यक्ति की स्मरण शक्ति तेज़ हो सकती है।
3. बुद्धि प्रतिभा नहीं है।
4. कौशल बुद्धि नहीं है।
बुद्धि के प्रकार (KINDS OF INTELLIGENCE)
थॉर्नडाइक एवं गैरेट के अनुसार :- बुद्धि 3 प्रकार की होती है और सभी व्यक्तियों में तीनों प्रकार की बुद्धि पाई जाती है परंतु जो व्यक्ति जिस क्षेत्र में अधिक कार्य करता है उस व्यक्ति में उसी प्रकार की बुद्धि अधिक सक्रिय हो जाती है।
(1) मूर्त/गामक/यांत्रिक/व्यावहारिक बुद्धि (Concrete Intelligence) :- इसका संबंध यंत्रों व मशीनों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह यंत्रों और मशीनों के कार्य में विशेष रुचि लेता है। मूर्त/ठोस वस्तुओं के बारे में सोचना, समझना इसकी विशेषता है।
जैसे- कारीगर, मैकेनिक, इंजीनियर, चालक, औद्योगिक कार्यकर्ता।
(2) अमूर्त बुद्धि/शाब्दिक/सैद्धांतिक बुद्धि (Abstract Intelligence) :- इस बुद्धि का संबंध पुस्तकीय ज्ञान से होता है। इसका प्रयोग ज्ञानोपार्जन के लिए किया जाता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है वह ज्ञान का अर्जन करने में विशेष रुचि लेता है।
इसमें प्रतीकों, शब्दों, अंकों, सूत्रों आदि में प्रस्तुत समस्याओं को सुलझाने की योग्यता होती है।
जैसे- शिक्षक, लेखक, दार्शनिक, साहित्यकार, वकील, डॉक्टर, पेंटर, चित्रकार, विद्यार्थी, कलाकार, गणितज्ञ, कहानीकार।
(3) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) :- इस बुद्धि का संबंध सामाजिक और व्यक्तिगत कार्यों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह मिलनसार, सामाजिक कार्यों में रुचि लेने वाला और मानव संबंधों के ज्ञान से परिपूर्ण होता है। इस बुद्धि के द्वारा व्यक्ति समाज में समायोजन करता है। विभिन्न व्यवसायों में सफलता प्राप्त करता है। ऐसे लोगों में सामाजिक संबंध, व्यवहार कुशलता व सामाजिक प्रतिष्ठा काफी अच्छी होती है।
जैसे- अच्छे मंत्री, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यवसायी, कूटनीतिज्ञ, समाजसेवी।
बुद्धि के सिद्धांत (Theories of intelligence) :-
बुद्धि के स्वरूप की व्याख्या करने के लिए दो तरह के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है:-
1. कारक सिद्धांत (Factor Theories) :- बुद्धि के संगठन की व्याख्या कुछ कारकों के आधार पर की जाती है। इसमें स्पीयरमैन, थर्स्टन, कैटेल, थॉर्नडाइक, गिलफोर्ड, गार्डनर, बर्ट/वर्नन का सिद्धांत मुख्य रूप से शामिल हैं।
2. प्रक्रिया उन्मुखी सिद्धांत (Process Oriented Theories)
इसमें बुद्धि के स्वरूप की व्याख्या उन बौद्धिक प्रक्रियाओं के रूप में की गई है जिसे व्यक्ति किसी समस्या के समाधान करने में या सोच विचार करने में लगाता है।
इसमें स्टनबर्ग, जेन्सन, पियाजे, जे.पी. दास के सिद्धांत प्रमुख हैं।
(1) एक खण्ड/एक तत्त्व/एक कारक बुद्धि सिद्धांत (Unifactor Theory)
प्रतिपादक :- अल्फ्रेड बिने (फ्रांस) ने सन् 1905, 1911 में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया।
सहयोगी :– टर्मन, स्टर्न
● इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि एक अखंड और अविभाज्य इकाई है। व्यक्ति की विभिन्न मानसिक योग्यताएँ एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं। हमारी बुद्धि में एक कारक होता है जो सभी कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है।
जॉनसन नामक विद्वान ने इस सिद्धांत को निरंकुशवादी बुद्धि सिद्धांत कहा।
Note :- यह सिद्धांत इसलिए सही प्रतीत नहीं होता है क्योंकि यदि एक ही कारक/तत्त्व होता तो गणित में होशियार बालक इतिहास या अन्य क्षेत्रों में कमजोर नहीं होता। अत: एक कारक सिद्धांत मान्य नहीं है जबकि इस सिद्धांत के अनुसार हमारी बुद्धि में कोई एकमात्र खंड होता है जो सभी प्रकार के कार्यों को पूरा कर सकता है।
(2) द्वि-कारक/द्वि–खंड/द्वि–तत्त्व सिद्धांत
प्रतिपादक :- स्पीयरमैन ने, 1904 में तथा 1927 में विस्तार से व्याख्या की।
● स्पीयरमैन (ब्रिटेन) ने द्वि-खंडात्मक बुद्धि की अवधारणा दी और बताया कि हमारी बुद्धि की संरचना में मूल रूप से दो कारक होते हैं-
i. सामान्य कारक (General Factor) (G)
ii. विशिष्ट कारक (Special Factor) (S)
(i) सामान्य कारक (G) :- सामान्य कारक ‘जन्मजात’ होता है। यह मानसिक कार्य करने की एक सामान्य क्षमता होती है। अत: यह मानसिक ऊर्जा का कार्य करता है। इस पर शिक्षण, प्रशिक्षण एवं पूर्व अनुभूतियों आदि का प्रभाव नहीं पड़ता है। यह सदैव एक-सा रहता है अर्थात् इसमें बदलाव संभव नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होता है। G कारक व्यक्ति के सब मानसिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है। जिस व्यक्ति में सामान्य कारक (G) जितना अधिक होता है, वह उतना ही अधिक सफल होता है।
(ii) विशिष्ट कारक (S) :- इसका संबंध व्यक्ति के ‘विशिष्ट’ कार्यों से होता है। विशिष्ट कारक (S) मानव की ‘अर्जित योग्यता’ (वातावरण से) है तथा ये योग्यताएँ विभिन्न व्यक्तियों में विभिन्न और अलग-अलग मात्रा में होती हैं। योग्यताएँ अनेक और एक-दूसरे से स्वतंत्र होती हैं। विशिष्ट योग्यता परिवर्तनशील होती है। S-कारक व्यक्ति के विशेष क्षेत्र में सफलता के लिए जिम्मेदार होता है। इस पर प्रशिक्षण व पूर्व अनुभूति का काफी प्रभाव पड़ता है।
Note:- स्पीयरमैन के द्वि-कारक सिद्धांत को राजतंत्रात्मक सिद्धांत कहा जाता है।
(3) तीन-खण्ड/त्रि–तत्त्व/त्रिकारक सिद्धांत
प्रतिपादक :- स्पीयरमैन
● स्पीयरमैन ने कुछ वर्षों बाद अपने द्वि-कारक सिद्धांत के बाद सन् 1911 में त्रिकारक बुद्धि सिद्धांत दिया, जिसमें G व S कारक दोनों सम्मिलित रूप से पाए जाते हैं उसे “सामूहिक खण्ड या तत्त्व” कहा गया।
● इस खण्ड में ऐसी योग्यताओं को स्थान दिया, जो ‘सामान्य योग्यता’ से श्रेष्ठ और विशिष्ट योग्यताओं से निम्न होने के कारण मध्य स्थान ग्रहण करती है।
● स्पीयरमैन ने सामूहिक खण्ड को अंग्रेजी के छोटे अक्षर ‘g’ से दर्शाया है।
(4) बहुकारक/बहुखण्ड/बहुतत्त्व बुद्धि सिद्धांत
प्रतिपादक :- E.L. थॉर्नडाइक (अमेरिका), 1913 में
अन्य नाम :– मात्रा सिद्धांत
– परमाणु का सिद्धांत (क्वांटम थ्योरी)
– बालुका सिद्धांत
● थॉर्नडाइक के अनुसार बुद्धि की संरचना बहुत से छोटे-छोटे तत्त्वों या कारकों के मिलने से होती है। ठीक वैसे ही जैसे अनेक ईंटों के मिलने से मकान का निर्माण होता है। प्रत्येक कारक या तत्त्व एक विशिष्ट मानसिक क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है तथा साथ ही साथ एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।
● थॉर्नडाइक ने बुद्धि के कारकों की तुलना बालू (रेत) के टीले या परमाणु से किए जाने पर इस सिद्धांत को बालुका सिद्धांत या परमाणुवाद का सिद्धांत भी कहा है।
● इसे प्रजातांत्रिक बुद्धि सिद्धांत कहते हैं।
● थॉर्नडाइक के अनुसार, सामान्य (G) बुद्धि नाम की कोई चीज नहीं होती बल्कि बुद्धि में कई स्वतंत्र, विशिष्ट योग्यताएँ निहित रहती हैं।
(5) समूह कारक बुद्धि सिद्धांत (Group Factor Theory)
प्रतिपादक :- थर्स्टन (अमेरिका), 1938 (समर्थन → कैली ने)
● यह सिद्धांत सबसे पहले थर्स्टन ने दिया और इनका सहयोग कैली ने किया।
● थर्स्टन ने अपनी पुस्तक PMA (Primary Mental Abilities/प्राथमिक मानसिक योग्यता) में लिखा कि हमारी बुद्धि में कुल 13 कारक/खंड/तत्त्व होते हैं अर्थात् उन्होंने बुद्धि को 13 मानसिक योग्यताओं का समूह बताया है।
● इनमें से सात कारक प्रधान या महत्त्वपूर्ण होते हैं-
1. स्थानिक/दैशिक क्षमता (Spatial Ability-S)
2. आंकिक क्षमता (Numerical Ability-N)
3. तर्क क्षमता (Reasoning Ability-R)
4. स्मृति क्षमता (Memory Ability-M)
5. प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक गति क्षमता (Perceptual Speed Ability-P)
6. शाब्दिक अर्थ क्षमता (Verbal Comprehension Ability-V)
7. शब्द प्रवाह (Word Fluency Ability-W)
● कुछ समय बाद कैली (1954) ने स्वतंत्र रूप से अपनी पुस्तक The Crossroads in the Mind of Man में बुद्धि के 9 कारक/खंड समूह माने और सभी को महत्त्वपूर्ण बताया। इनके अनुसार ये सभी 9 कारक एक-दूसरे को काटते हुए समकोण जैसी आकृति में विद्यमान रहते हैं।
● थर्स्टन के अनुसार सभी बौद्धिक क्रियाओं में एक या इससे अधिक प्रमुख मानसिक क्षमता सम्मिलित होती हैं।
● थर्स्टन ने g-कारक को अस्वीकार किया।
(6) तरल व ठोस बुद्धि सिद्धांत/gc-gf मॉडल
प्रतिपादक :- R.B. कैटल (1971 में)
● कैटल ने स्पीयरमैन के सामान्य कारक (G-कारक) को दो भागों में विभक्त किया-
i. तरल बुद्धि (Fluid Intelligence – gf)
ii. ठोस बुद्धि (Crystallized Intelligence – gc)
(i) तरल बुद्धि :- यह व्यक्ति की जन्मजात क्षमता होती है जिसके माध्यम से व्यक्ति सोचता एवं तर्क करता है। यह एक तरह से मस्तिष्क की धातु सामग्री (Hardware) होती है, जो सूचना संसाधनों की सीमा (Limit) का निर्धारण करती है। यह अमूर्त व तार्किक चिंतन की क्षमता है। यह व्यक्ति के दैनिक कार्यों में उपयोगी है। इसमें उम्र बीतने के साथ मंद गति से इस तरह की बुद्धि में कमी आती है।
(ii) ठोस बुद्धि :- इसे व्यक्ति अपने जीवन में ग्रहण करता है अर्थात् वातावरण से अर्जित बुद्धि है। इसमें विभिन्न तरह की समस्याओं के समाधान से उत्पन्न कौशल व्यक्ति में संगृहीत होते हैं। यह उम्र और अनुभव के साथ-साथ बढ़ती है। इससे व्यक्ति जीवन में विशेष कार्य करता है और सफलता भी प्राप्त करता है।
अत: तरल बुद्धि के आधार पर व्यक्ति जो मानसिक कार्य करता है तथा उससे जो अनुभव प्राप्त होता है, उस पर ठोस बुद्धि आधारित होती है। किसी सूचना को व्यक्ति जितनी तीव्रता से विश्लेषित कर पाता है, यह उसके तरल बुद्धि का उदाहरण है परंतु शब्दावली की गहराई अर्थात् उसमें संचित शब्दों की क्षमता ठोस बुद्धि का उदाहरण है।
(7) प्रतिदर्श/प्रतिमान/न्यादर्श/नमूना/वर्ग घटक बुद्धि सिद्धांत
प्रतिपादक :- जी. थॉम्पसन
● इस सिद्धांत के अनुसार हमारी बुद्धि में कई कारक विद्यमान होते हैं। उन कारकों में से कोई एक कारक प्रतिदर्श या सैंपल के रूप में कार्य करता है और उसी प्रतिदर्श से वह कार्य संपन्न होता है अर्थात् बुद्धि में विभिन्न मानसिक योग्यताओं का एक अंश पाया जाता है।
● थॉम्पसन ने बुद्धि को अनेक विशिष्ट योग्यताओं तथा विशेषताओं का समूह माना है। एक ही वर्ग में अनेक प्रकार की विशेषताएँ होती हैं। जैसे- व्यावसायिक योग्यता में प्रबंध, विक्रय, उत्पादक, भंडारण, जनसंपर्क आदि योग्यताएँ पाई जाती हैं।
(8) त्रिआयामी/त्रिवीमीय बुद्धि सिद्धांत (3-D)
प्रतिपादक :- J.P. गिलफोर्ड (सोवियत संघ, रूस), (1967 में)
● इसे बुद्धि संरचना सिद्धांत (SOI – Structure of Intelligence) कहते हैं।
● गिलफोर्ड के अनुसार, हमारी बुद्धि में त्रिविमीय आयाम होते हैं और प्रत्येक आयाम का एक-दूसरे से गुणात्मक रूप से संबंध होता है। ये विमाएँ/आयाम क्रमश: निम्नलिखित हैं:-
1. मानसिक सक्रिया (5)
2. विषयवस्तु (4)
3. उत्पाद/परिणाम (6)
● गिलफोर्ड ने व्यक्ति की बुद्धि संरचना के मूल सिद्धांत में संक्रिया (5), विषयवस्तु (4) तथा उत्पाद (परिणाम) (6) बताए हैं तथा कुल मूल कोषों की संख्या 5 × 4 × 6 = 120 है।
● सन् 1971 में इन्होंने संशोधन करते हुए विषयवस्तु की संख्या 5 बताई और कुल प्रकोष्ठ/खंड/कोष की संख्या 5 × 5 × 6 = 150 बताई है।
● 1988 में फिर संशोधन किया और बुद्धि की संचरना में मानसिक संक्रिया (6), विषयवस्तु (5) तथा उत्पाद (6) माने हैं और कुल प्रकोष्ठ 6 × 5 × 6 = 180 बताए।
(9) त्रिचापीय/त्रितंत्र बुद्धि सिद्धांत
प्रतिपादक :- रॉबर्ट स्टर्नबर्ग ने, (अमेरिका) 1985 में
पुस्तक – बियोण्ड आईक्यू (Beyond IQ)
● स्टर्नबर्ग के अनुसार– “बुद्धि वह योग्यता है जिससे व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होता है, अपने तथा समाज ओर संस्कृति के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पर्यावरण के कुछ पक्षों का चयन करता है और उन्हें परिवर्तित करता है।”
● स्टर्नबर्ग के अनुसार बुद्धि मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है:-
1. घटकीय/विश्लेषण/प्रसंगाश्रित बुद्धि
2. आनुभविक/सृजनात्मक बुद्धि
3. सांदर्भिक/व्यवहारिक बुद्धि
(i) घटकीय/विश्लेषणात्मक बुद्धि (Componential Intelligence) :- वह बुद्धि जिसमें व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करने के लिए प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है। इस बुद्धि की अधिक मात्रा वाले लोग विश्लेषणात्मक व आलोचनात्क ढंग से सोचते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं।
(ii) आनुभविक/सृजनात्मक बुद्धि (Experimential Intelligence) :- यह वह बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी नई समस्या के समाधान हेतु अपने पूर्व अनुभवों का सृजनात्मक रूप में उपयोग करता है अर्थात् यह व्यक्ति में असाधारण सूझ तथा नए-नए विचारों को जन्म देने की क्षमता है। इस बुद्धि की उच्च मात्रा वाले लोग विगत अनुभवों को मौलिक रूप में समाकलित करते हैं तथा समस्या का मौलिक समाधान खोजते हुए आविष्कार करते हैं। वैज्ञानिक एवं अन्वेषणकर्ता में यह बुद्धि प्रबलता में होती है।
(iii) सांदर्भिक/व्यावहारिक बुद्धि (Contextual Intelligence)
वह बुद्धि जिसके द्वारा व्यक्ति अपने दिन-प्रतिदिन की पर्यावरणीय माँगों से निपटता है। यह व्यक्ति में व्यावहारिक सूझ-बूझ उत्पन्न करने के साथ ही विपरीत परिस्थितियों में उत्तम समायोजन क्षमता दिखलाने में मदद करती है। इसकी अधिक मात्रा वाले व्यक्ति अपने वर्तमान पर्यावरण से शीर्घ अनुकूलित हो जाते हैं अर्थात् अपनी आवश्यकतानुरूप परिवर्तन कर लेते हैं।
● स्टर्नबर्ग ने बुद्धि के पाँच चरण बताए हैं-
(i) कूटसंकेतन (Encoding) – व्यक्ति अपने मस्तिष्क में संगत प्राप्य सूचनाओं की पहचान करता है।
(ii) अनुमान (Inferring) – प्राप्त सूचनाओं के आधार पर व्यक्ति कुछ अनुमान लगाता है।
(iii) व्यवस्था (Mapping) – प्राणी पूर्व परिस्थिति तथा वर्तमान परिस्थिति के बीच संबंध जोड़ता है।
(iv) उपयोग (Application) – व्यक्ति अनुमानित संबंध का वास्तविक उपयोग करता है।
(v) अनुक्रिया (Response) – व्यक्ति समस्या का संभावित उत्तम समाधान ढूँढ़ता है।
● स्टर्नबर्ग ने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को तीन घटकों में बाँटा है-
(i) मेटाघटक – उच्च स्तरीय मानसिक प्रक्रियाएँ।
इसके माध्यम से समस्या समाधान की योजना बनती है तथा उसका नियमन होता है।
(ii) निष्पादन घटक – वास्तविक मानसिक प्रक्रियाएँ
इनके माध्यम से किसी कार्य को संपन्न किया जाता है।
(iii) ज्ञान–संग्रहण घटक – ज्ञान संग्रहण घटक से तात्पर्य उन प्रक्रियाओं से होता है, जिसे व्यक्ति नई सूचनाओं से सीख पाता है, स्मृति में सूचनाओं को सीखने में उपयोग करता है तथा स्मृति में सूचनाओं को संचित करता है।
Note :- यह बुद्धि का सूचना प्रक्रमण सिद्धांत है। (सूचना-संसाधन सिद्धांत)
(10) बहुबुद्धि सिद्धांत (Multiple Intelligence Theory)
प्रतिपादक :- हावर्ड गार्डनर (अमेरिका), (1983 में)
पुस्तक :– द थ्योरी ऑफ मल्टीपल इंटेलिजेंस
● गार्डनर ने अपना सिद्धांत देते हुए कहा कि व्यक्ति में बुद्धि कोई एक तत्त्व नहीं है बल्कि भिन्न-भिन्न प्रकार की बुद्धि का अस्तित्व होता है। अर्थात् बुद्धि का स्वरूप एकाकी न होकर बहुकारकीय होता है।
● गार्डनर ने अपने मूल सिद्धांत में बुद्धि के सात प्रकार बताए हैं परंतु कुछ समय बाद 1998 में 8वाँ प्रकार ‘प्रकृतिवादी’ तथा सन् 2000 में 9वाँ प्रकार ‘अस्तित्ववादी बुद्धि’ जोड़ा। अत: गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धांत में वर्तमान में बुद्धि के 9 प्रकार हैं।
(i) भाषाई (शाब्दिक) बुद्धि (Linguistic Intelligence)
● भाषा के उत्पादन और उपयोग करने की योग्यता।
● यह अपने विचारों को प्रकट करने तथा दूसरे व्यक्तियों के विचारों को समझने हेतु प्रवाह तथा नम्यता के साथ भाषा का उपयोग करने की क्षमता है। जिन व्यक्तियों में यह बुद्धि होती है वे ‘शब्द-कुशल’ होते हैं।
जैसे- लेखक, कवि, पत्रकार, शिक्षक, गीतकार।
(ii) तार्किक-गणितीय बुद्धि/संख्यात्मक बुद्धि (Logical-Mathematical Intelligence)
● तार्किक तथा आलोचनात्मक चिंतन एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता।
● इस बुद्धि वाले लोग अमूर्त तर्क, गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए प्रतीकों का प्रयोग कर लेते हैं।
जैसे- वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, नोबेल पुरस्कार विजेता, दार्शनिक, अर्थशास्त्री।
(iii) देशिक/स्थानिक बुद्धि (Spatial Intelligence) :- दृश्य बिंब तथा प्रतिरूपण निर्माण की योग्यता।
● यह मानसिक बिंबों को बनाने, उनका उपयोग करने तथा मानसिक धरातल पर परिमार्जन करने की योग्यता है।
जैसे- विमान चालक, नाविक, मूर्तिकार, सर्वेक्षण अधिकारी, चित्रकार, वास्तुकार, शल्य- चिकित्सक, आंतरिक साज-सज्जा के विशेषज्ञ।
(iv) संगीतात्मक बुद्धि (Musical Intelligence) :- सांगीतिक लय तथा अभिरचनाओं को उत्पन्न तथा प्रयोग करने की योग्यता। इस प्रकार की बुद्धि वाले लोग ध्वनियों और लय तथा नई अभिरचनाओं के सृजन के प्रति संवेदनशील रहते हैं।
जैसे- संगीतकार, गायक, तबलावादक।
(v) शारीरिक-गतिक बुद्धि (Body-Kinesthetic Intelligence) :- संपूर्ण शरीर अथवा उसके अंग की लोचनशीलता का उपयोग करने की योग्यता तथा उसमें सृजनात्मकता प्रदर्शित करना।
जैसे- धावक, नर्तक, खिलाड़ी, जिमनास्टों, अभिनेता/अभिनेत्री, सृजन, लड़ाकू विमान का पायलट आदि।
(vi) अंतर्वैयक्तिक/व्यक्तिगत–अन्य बुद्धि (Interpersonal Intelligence) :- दूसरों के व्यवहारों, भावों, सूक्ष्म व्यवहारों को जानने की योग्यता अर्थात् दूसरे व्यक्ति की अभिप्रेरणा, उद्देश्य, भावना तथा व्यवहारों का सही बोध करना।
जैसे- मनोवैज्ञानिक, परामर्शदाता, धार्मिक नेता, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता।
(vii) अंत:व्यक्तिगत/व्यक्तिगत–आत्मन बुद्धि (Intrapersonal Intelligence) :- स्वयं की निजी भावनाओं, अभिप्रेरणाओं तथा इच्छाओं को जानने की योग्यता।
● इस बुद्धि की अधिक मात्रा वाले व्यक्ति अपनी अनन्यता या पहचान, मानव अस्तित्व और जीवन के अर्थों को समझने में अति संवेदनशील होते हैं। इसे अंतरावैयक्तिक बुद्धि भी कहा जाता है।
जैसे- दार्शनिक, आध्यात्मिक, प्रबंधक।
(viii) प्रकृतिवादी/प्राकृतिक बुद्धि (Naturalistic Intelligence) :- पर्यावरण के प्राकृतिक पक्ष की विशेषताओं को पहचानने की योग्यता।
जैसे- शिकारी, किसान, पर्यटक, मानववादी, प्राणीविज्ञानी, वनस्पतिविज्ञानी, पक्षिविज्ञानी, भूगोलवेत्ता।
(11) Level-I तथा Level-II बुद्धि सिद्धांत
प्रतिपादक :- आर्थर जेन्सन
● जेन्सन ने बुद्धि का एक पदानुक्रमिक मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें मनुष्य की बौद्धिक योग्यताएँ दो स्तरों पर कार्य करती हैं:-
i. प्रथम स्तर (Level-I)
ii. द्वितीय स्तर (Level-II)
(i) Level-I (प्रथम स्तर) :- यह ‘साहचर्यात्मक’ क्षमता है। इसमें तर्क की जरूरत कम पड़ती है और व्यक्ति उद्दीपक तथा घटनाओं को आपस में संबंधित कर पाता है। यह व्यक्ति की जैविक परिपक्वता से संबंधित है।
(ii) Level-II (द्वितीय स्तर) :- यह ‘संज्ञानात्मक’ क्षमता है। इसमें तर्क व समस्या समाधान की आवश्यकता होती है। यह वातावरण, शिक्षा तथा संस्कृति से प्रभावित होती है।
● जीवन में समस्या-समाधान एवं व्यवसाय को चुनने में Level-II बुद्धि ही उपयोगी है।
(12) ‘क’ व ‘ख’/A व B बुद्धि सिद्धांत
प्रतिपादक :- हैब।
हैब के अनुसार मनुष्य में दो प्रकार की बुद्धि होती है:-
i. ‘क’ बुद्धि :- यह जन्मजात (वंशानुक्रम) बुद्धि है।
ii. ‘ख’ बुद्धि :- यह वंशानुक्रम व वातावरण के मध्य अंत:क्रिया का परिणाम है (अर्जित बुद्धि)।
(13) आश्चर्यजनक बुद्धि सिद्धांत
● प्रतिपादक :- B.S. ब्लूम
● इनके अनुसार बुद्धि नाम का कोई तत्त्व नहीं होता है। यह तो एक आश्चर्य की बात है कि व्यक्ति विभिन्न प्रकार के कार्य कर लेता है।
(14) बुद्धि का PASS मॉडल
● प्रतिपादक :- जे.पी. दास, नागलीरी, किर्बी ने, 1994 में।
बुद्धि का यह सिद्धांत लूरिया द्वारा मस्तिष्क संरचनाओं के विश्लेषण पर आधारित है।
● इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि में चार तत्त्व होते हैं जो आपस में मिलकर केंद्रीय संसाधन प्रक्रम कहलाते हैं। वे चार तत्त्व हैं:-
1. योजना (Planning) (P)
2. अवधान-उत्तेजन/भाव प्रबोधन (Attention-Arousal) (A)
3. समकालिक मॉडल (Simultanteouse) (S)
4. आनुक्रमिक मॉडल (Successive) (S)
(15) पदानुक्रमिक बुद्धि सिद्धांत
● प्रतिपादक :- बर्ट व वर्नन
● बर्ट व वर्नन ने बुद्धि को एक पिरामिड के रूप में दर्शाया, जिसे बुद्धि का पदानुक्रमिक सिद्धांत कहा गया।
● यह सिद्धांत स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धांत, थर्स्टन के समूहकारक सिद्धांत तथा थॉर्नडाइक के बहुकारक सिद्धांत पर आधारित है।
● पिरामिड के सबसे ऊपरी भाग में स्पीयरमैन के g-कारक को, द्वितीय स्तर पर थर्स्टन के समूह कारक के समान दो विस्तृत समूहकारक शाब्दिक-शैक्षिक कारक (V.ed) तथा व्यावहारिक-यांत्रिक कारक (k.m.) को रखा गया है। फिर इन दो प्रमुख समूह कारकों को तीसरे स्तर पर अन्य छोटे-छोटे समूहकारकों में बाँटा गया है जो गिलफोर्ड व थॉर्नडाइक के बहुकारक सिद्धांत के समान है। पिरामिड के सबसे निम्नतम स्तर पर स्पीयरमैन के S-कारक को रखा गया है।
मानसिक आयु व बुद्धि लब्धि :-
● सर्वप्रथम 1905 में अल्फ्रेड बिने तथा साइमन ने औपचारिक रूप से बुद्धि मापन का सफल प्रयास किया।
● 1908 में बिने ने मानसिक आयु (M.A.) का विचार किया।
● मानसिक आयु (Mental Age/MA) :- इसका अर्थ किसी व्यक्ति का बौद्धिक विकास अपनी आयु वर्ग के अन्य व्यक्तियों की तुलना में कितना हुआ है अर्थात् वास्तविक आयु के समय में बालक के बौद्धिक कार्य करने की क्षमता से होता है।
जैसे- यदि एक 5 वर्ष का बालक 8 वर्ष के बालक के समान कार्य करे तो उसकी मानसिक आयु (MA) 8 वर्ष होगी।
● कालानुक्रमिक आयु (Chronological Age/CA) :- जन्म लेने के बाद बीत चुकी अवधि के बराबर होता है अर्थात् मनुष्य की वास्तविक आयु। एक तीव्र बुद्धि बालक की मानसिक आयु उसकी कालानुक्रमिक आयु (वास्तविक आयु) से अधिक होती है।
● बुद्धि लब्धि (Intelligence Quotient/IQ) :- सर्वप्रथम 1912 में जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न ने बुद्धि-लब्धि (IQ) का सम्प्रत्यय विकसित किया।
किसी व्यक्ति की मानसिक आयु को उसकी कालानुक्रमिक आयु से भाग देने के बाद उसको 100 से गुणा करके उसकी बुद्धि लब्धि प्राप्त होती है।
● 1912 में स्टर्न ने बुद्धि-लब्धि का सूत्र दिया जो अधूरा था।
● सन् 1916 में टर्मन ने वर्तमान बुद्धि लब्धि का सूत्र दिया जो निम्न है- (विकसित सूत्र)
उदाहरणार्थ, यदि बालक की मानसिक आयु 10 वर्ष और वास्तविक आयु 8 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि 125 होगी।
इसी सूत्र का उपयोग करते हुए टर्मन ने बुद्धि-लब्धि सारणी प्रस्तुत की।
टर्मन की बुद्धि–लब्धि सारणी
बुद्धि-लब्धि (I.Q.) | वर्ग | प्रतिशत बालक/व्यक्ति |
140 या अधिक | प्रतिभाशाली (Genius) | 2% |
120 से 139 तक | प्रखर बुद्धि (Very Superior) | 7% |
110 से 119 तक | तीव्र बुद्धिश्रेष्ठ (Superior) | 16% |
90 से 109 तक | सामान्य/औसत (Average) | 50% |
80 से 89 तक | मंद बुद्धि (Dull)/मंगोलिज्म | 16% |
70 से 79 तक | निर्बल बुद्धि/औसत से कम | 7% |
50 से 69 तक | मूर्ख (Morons) | |
25 से 49 तक | मूढ़ (Imbeciles) | 2% |
25 से कम | जड़ बुद्धि (Idiots) | |
100% |
Note :- क्रो एण्ड क्रो के अनुसार वे बालक प्रतिभाशाली होते हैं जिनकी बुद्धि-लब्धि 130 या अधिक होती है तथा 70 से कम बुद्धि लब्धि (I.Q.) वाले बाल मंद-बुद्धि होते हैं।
Note :- बुद्धि-लब्धि (I.Q.) के प्रथम प्रतिपादक विलियम स्टर्न (1912) हैं।
● सर्वप्रथम बुद्धि शब्द का प्रयोग :- फ्रांसिस गाल्टन (1885)
● मानसिक परीक्षण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग :- कैटेल, 1890 में
● मानसिक आयु (M.A.) का विचार :- अल्फ्रेड बिने, 1908
● प्रथम क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण :- सेगुईन, 1866
● बुद्धि मापन/परीक्षण का जनक/जन्मदाता :- अल्फ्रेड बिने (फ्रांस)
● बेसल आयु का संबंध बुद्धि से है।
● मेरडिथ के अनुसार :- सामान्य रूप से उन परिवारों के बालक अधिक स्वस्थ व विकसित होते हैं जो सामाजिक स्तर से उच्च होते हैं।
● टरमैन व मैरिल :- जो बालक उच्च व्यवसाय वाले माता-पिता की संतान होते हैं, उनकी IQ 10 से 15 वर्ष के बीच 118 होती है।
बौद्धिक अशक्तता के विभिन्न वर्ग (NCERT के अनुसार)
1. निम्न (बुद्धि लब्धि 55 से 70 लगभग)
2. सामान्य (बुद्धि लब्धि 35-40 से 50-55 तक)
3. तीव्र (बुद्धि लब्धि 20-25 से 35-40 तक)
4. अति गंभीर (बुद्धि-लब्धि 20-25 से कम)
बुद्धि मापन की आवश्यकता क्यों? :-
1. बालक के सीखने की गति को जानने के लिए ताकि उस बालक के स्तर के अनुसार शिक्षण व्यवस्था की जा सके।
2. बालक की उन्नति को ध्यान में रखते हुए सही दिशा प्रदान करने हेतु।
3. अपराधी व समस्यात्मक बालक के सुधार हेतु।
4. बालकों के वर्गीकरण हेतु।
5. बालकों की क्षमता के अनुसार कार्य प्रदान करने हेतु।
6. बालकों को भावी सफलताओं का ज्ञान आदि।
बुद्धि मापन/परीक्षण
● आधुनिक मनोवैज्ञानिक तरीके से बुद्धि परीक्षणों की शुरुआत का श्रेय फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने को जाता है, जिन्होंने 1904-05 में बिने-साइमन परीक्षण का प्रतिपादन किया।
● सामान्यत: बुद्धि परीक्षण को दो वर्गों में बाँटा जाता है:-
1. व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
2. सामूहिक बुद्धि परीक्षण
1. व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण :- यह परीक्षण केवल एक व्यक्ति के लिए किया जाता है। इसके भी दो प्रकार हैं :-
i. शाब्दिक व्यक्तिगत परीक्षण
ii. अशाब्दिक /क्रियात्मक परीक्षण
2. सामूहिक बुद्धि परीक्षण :- जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों का सामूहिक रूप से मापन या परीक्षण करना होता है।
(A) व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
(1) भाषायी/शाब्दिक व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण :- जब शब्दों का उपयोग करते हुए शब्दों के माध्यम से एक व्यक्ति का बुद्धि परीक्षण किया जाता है।
(i) बिने साइमन बुद्धि परीक्षण
प्रतिपादक :- अल्फ्रेड बिने (फ्रांस) (बुद्धि परीक्षण के जनक)
सहयोगी :– थियोडोर साइमन
वर्ष :– 1905 में (फ्रेंच भाषा में )
प्रश्नों की संख्या :– 30 प्रश्न (दो बार संशोधन के बाद प्रश्नों की संख्या 59 एवं बाद में 90 कर दी गई।)
● सन् 1911 में इस परीक्षण का अंग्रेजी अनुवाद – गोडार्ड (अमेरिका) ने
संशोधन :- 1908, 1911 में
● बालकों के लिए उपयोगी (3-15 वर्ष)
(ii) स्टेनफोर्ड-बिने परीक्षण
प्रतिपादक :- टर्मन (स्टेनफोर्ड वि.वि., अमेरिका), 1916 में
संशोधन :– 1937 व 1960 में (सहयोगी – मैरिल)
प्रश्नों की संख्या :– 90 प्रश्न
उपयोगी :– 2 से 14 वर्ष के बालकों हेतु (संशोधन के बाद 2 से 22 वर्ष तक के व्यक्तियों के लिए उपयोगी)
(iii) हिन्दुस्तानी बिने – साइमन परीक्षण
प्रतिपादक :- डॉ. सी.एच. राईस (F.G. कॉलेज, लाहौर), 1922 में
● राईस द्वारा दिया गया यह परीक्षण मूलत: शाब्दिक व्यक्तिगत परीक्षण है और बालकों (5-16 वर्ष) के लिए उपयोगी है।
● उर्दू भाषा में
● प्रथम भारतीय बुद्धि परीक्षण
(2) क्रियात्मक/अशाब्दिक व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
इनमें भाषा का प्रयोग नहीं होता बल्कि उत्तर क्रिया के रूप में होते हैं।
(i) भूल-भुलैया बुद्धि परीक्षण :- इसमें भूल-भुलैया का उपयोग किया जाता है। ये भूल-भुलैया अलग-अलग कागजों पर छपी होती है। परीक्षार्थी को अंत में इनका रास्ता ढूँढ़ना होता है। इसके अंतर्गत निम्न परीक्षण शामिल हैं:-
पोरटियस भूल-भुलैया परीक्षण :- SD पोरटियस ने (3-14 वर्ष के लिए)
(ii) ब्लॉक-बिल्डिंग या घनों की रचना :- इसमें परीक्षार्थी को ब्लॉकों द्वारा बिल्डिंग डिजाइन बनाने को कहा जाता है। बालक ब्लॉकों को जोड़ते हुए बिल्डिंग जैसी आकृति बनाते हैं। इसमें निम्न परीक्षण शामिल हैं :-
1. कोह ब्लॉक डिजाइन परीक्षा – SC कोह, 1923 (16 ब्लॉक)
2. पास एलांग परीक्षण – अलैक्जेण्डर पास ने, 1932 (13 ब्लॉक)
3. मैरिल पामर ब्लॉक परीक्षण – मैरिल पामर ने
(iii) वस्तु संयोजन/छेदों में ब्लॉक लगाना :- परीक्षार्थी को कुछ ब्लॉक तथा छेदों से युक्त एक बोर्ड दिया जाता है और वह इन छेदों में ब्लॉक लगाता है। इनमें निम्न बुद्धि परीक्षण शामिल हैं:-
1. सैगुइन फार्म बोर्ड परीक्षण
2. गोडार्ड फार्म बोर्ड परीक्षण
(iv) चित्रपूर्णता परीक्षण :- परीक्षार्थी को प्रत्येक चित्र के कुछ कटे हुए भाग देकर उस चित्र को पूरा करने के लिए कहा जाता है। इसमें ‘हीली चित्र पूर्णता परीक्षण’ शामिल है।
(v) भाटिया परफोर्मेन्स टेस्ट बैटरी (भारतीय बुद्धि परीक्षण)
प्रतिपादक :- डॉ. चंद्रमोहन भाटिया, 1953 में
● यह निष्पादन परीक्षणमाला है। इसके अंतर्गत 5 उपपरीक्षण शामिल हैं।
1. कोह ब्लॉक डिजाइन परीक्षण
2. अलेक्जेण्डर पास-एलागं परीक्षण
3. पैटर्न ड्राईंग परीक्षण
4. अंकों से संबंधित तात्कालिक स्मृति परीक्षण
5. चित्र-निर्माण परीक्षण
(vi) अन्य स्केल या बैटरी परीक्षण
1. पिंटट-पेटरसन स्केल
2. आर्थर-पॉइंट स्केल
3. क्रियात्मक परीक्षणों की अलेक्जेण्डर बैटरी
(vii) ‘ड्रॉ ए मेन’ बुद्धि परीक्षण
प्रतिपादक :- श्रीमती गुड एन एफ ने
मूल रूप – 1926, संशोधित – 1963 (हैरिस ने)
● इस परीक्षण की मौलिक रूप से शुरुआत श्रीमती गुड एनएफ ने 1926 में की थी। इसमें व्यक्ति की बुद्धि का आकलन करने के लिए किसी व्यक्ति/मानव का चित्र बनवाते हैं।
● इस परीक्षण का संशोधन सन् 1963 में डॉ. हैरिस ने किया और उसका नाम गुड एनएफ –हैरिस ड्रॉईंग परीक्षण रखा।
● यह सभी तरह की संस्कृति के व्यक्तियों की बुद्धि मापने के काम में लिया जाता है।
Note :- प्रमिला पाठक ने गुड एनएफ परीक्षण का भारतीयकरण किया।
(B) सामूहिक बुद्धि परीक्षण
जब किसी समूह की बुद्धि का मापन करना हो तो इसका उपयोग किया जाता है। इनकी शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के समय अमेरिका से हुई।
(1) शाब्दिक सामूहिक परीक्षण
(i) आर्मी एल्फा परीक्षण :- यह प्रथम विश्व युद्ध के समय अमेरिका में सैनिक, सैन्य पदाधिकारियों आदि का चुनाव करने के लिए निर्मित किया गया। यह शिक्षित व्यक्तियों के लिए था। इसका निर्माण आर्थर S ओटिस ने किया।
(ii) सेना सामान्य वर्गीकरण टेस्ट :- इसका निर्माण अमेरिका में द्वितीय विश्व युद्ध के समय सेना के विभिन्न विभागों के लिए सैनिकों का वर्गीकरण करने के लिए किया गया। इन सैनिकों को शब्दावली, गणित और वस्तु गणना संबंधी समस्याओं का समाधान करना होता है।
(iii) जलौटा सामूहिक मानसिक योग्यता परीक्षण (भारतीय परीक्षण)
प्रतिपादक :- डॉ. एस जलौटा, 1972 में
● जलौटा द्वारा निर्मित यह परीक्षण शाब्दिक सामूहिक परीक्षण है जो केवल शिक्षित बालकों के लिए उपयोगी है।
● यह 11 से 16 वर्ष के किशोरों के लिए उपयोगी है। इसमें 7 अलग-अलग क्षेत्रों के कुल 100 प्रश्न हैं।
(iv) प्रयाग मेहता सामूहिक बुद्धि परीक्षण (भारतीय)
प्रतिपादक :- प्रयाग मेहता, 1962 में (प्रकाशन – ‘मानसायन’ देहली द्वारा)
(v) CIE सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (भारतीय)
प्रतिपादक :- प्रो. उदयशंकर
(vi) डॉ. एस.एस. मोहसिन कृत सामूहिक बुद्धि परीक्षण (1943)
(vii) जोशी बुद्धि परीक्षण
प्रतिपादक :- डॉ. एम.सी. जोशी, 1960 में
● 1960 में किया गया यह परीक्षण भी शाब्दिक परीक्षण है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के 100 प्रश्न होते हैं और 12 से 19 वर्ष के बालकों के लिए उपयोगी है जिसमें अधिकतम 20 मिनट का समय लगता है।
(2) अशाब्दिक/क्रियात्मक सामूहिक परीक्षण
इन परीक्षणों में भाषा का प्रयोग नहीं होता और यह समूह में बुद्धि मापन के लिए उपयोगी है।
(i) आर्मी बीटा परीक्षण
प्रथम विश्व युद्ध के समय दिया गया यह परीक्षण अशाब्दिक/क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण था जो अनपढ़ (अशिक्षित) सैनिकों के लिए उपयोग में लिया जाता था।
(ii) शिकागो क्रियात्मक परीक्षण
यह परीक्षण 8 वर्ष से लेकर वयस्कों तक के लिए उपयोगी है जबकि 12/13 वर्ष के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध हुआ।
(iii) रैविन प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज परीक्षण (RPM)
प्रतिपादक :- जे.सी. रैविन ने, 1938 में
● रैविन द्वारा प्रतिपादित यह परीक्षण सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण है अर्थात् इसमें भाषा का प्रयोग नहीं हुआ है।
● यह अत्यंत लोकप्रिय बुद्धि परीक्षण है। (सरल से कठिन की ओर)
● यह संस्कृति मुक्त/संस्कृति विहीन बुद्धि परीक्षण है।
● इसमें रेखागणित के चित्रों या डिजाइनों में परस्पर संबंध देखना, डिजाइन के ढाँचे को समझना आदि का उपयोग करते हुए बढ़ते क्रम में मैट्रिसेज बनाई जाती है।
● इस बुद्धि परीक्षण के तीन रूप हैं :-
(a) स्टैंण्डर्ड प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज (SPM) :- इस परीक्षण में विभिन्न प्रकार के चित्रों की रेखाओं या आकृतियों की सहायता से मैट्रिसेज (वर्ग पहेली) बनाई जाती है और उसमें बहुत सरल प्रकार के रेखाचित्रों का उपयोग किया जाता है। इसमें 5 वर्ग के मैट्रिसेज होते हैं तथा प्रत्येक वर्ग में 12 एकांश होते हैं। इस प्रकार से एक परीक्षण में कुल 60 एकांश/प्रश्न होते हैं। इसका उपयोग सामान्य/औसत बुद्धि के बालकों के लिए होता है।
(b) रंगीन प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज :– इसमें बनाई जाने वाली मैट्रिसेज में कुल 3 वर्ग होते हैं और प्रत्येक में 12 एकांश होते हैं जिसके अनुसार कुल एकांश 3 × 12 = 36 होते हैं तथा इसका उपयोग मंदबुद्धि बालकों/विकलांग के लिए किया जाता है।
(c) उच्चतर/उन्नत प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज :- यह जटिल प्रकार के रेखाचित्रों या आकृतियों से बनाई जाती है। इसमें भी 3 वर्ग होते हैं तथा प्रत्येक वर्ग में 12 एकांश होते हैं। इस प्रकार से कुल एकांश 3 × 12 = 36 होते हैं। इसका उपयोग प्रतिभाशाली बालकों के लिए किया जाता है।
(iv) कैटल संस्कृति मुक्त परीक्षण
प्रतिपादक :- R.B. कैटल ने (1920)
यह संस्कृति मुक्त/विहीन परीक्षण है।
● इसमें 3 स्तर हैं:-
1. 4 से 8 वर्ष के लिए
2. 8 से 12 वर्ष के लिए
3. हाई स्कूल के बच्चों के लिए
अन्य परीक्षण
(1) वैश्लर बैलेव्यू परीक्षण (मिश्रित)
प्रतिपादक :- डेविड वैश्लर/वेक्सलर ने (अमेरिका)
● वैश्लर द्वारा प्रतिपादित यह व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण है जो शाब्दिक व अशाब्दिक/क्रियात्मक दोनों रूप में विद्यमान है तथा इसे 16 से 64 वर्ष के लोगों के लिए उपयोगी माना जाता है। इसके दो रूप हैं :-
1. WISC – बच्चों के लिए उपयोगी
2. WAIS – प्रौढ़ों के लिए उपयोगी
● इसमें सात अशाब्दिक व सात शाब्दिक परीक्षण शामिल हैं :-
शाब्दिक परीक्षण | क्रियात्मक/अशाब्दिक परीक्षण |
1. शब्दावली परीक्षण | 1. चित्रपूर्ति परीक्षण |
2. समानता परीक्षण | 2. अंक चिह्न-कूट संकेतन परीक्षण |
3. अंकगणितीय परीक्षण | 3. ब्लॉक डिजाइन परीक्षण |
4. अंक-विस्तार परीक्षण | 4. मैट्रिक्स तर्कणा परीक्षण |
5. सूचना परीक्षण | 5. चित्र व्यवस्था परीक्षण |
6. बोध परीक्षण | 6. चिह्न अन्वेषण परीक्षण |
7. अक्षर-संख्या क्रमन | 7. वस्तु संग्रहण परीक्षण |
Note :- कृत्रिम बुद्धि का सम्प्रत्यय जॉन मैककार्थी (1959) ने दिया
व्यक्तिगत व सामूहिक बुद्धि परीक्षण में अंतर
व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण | सामूहिक बुद्धि परीक्षण |
1. एक समय में एक ही बच्चे का परीक्षण किया जाता है। | 1. एक समय में व्यक्तियों के समूह का परीक्षण किया जाता है। |
2. समय, श्रम व धन अधिक खर्च | 2. समय, श्रम व धन की बचत |
3. प्रशिक्षित परीक्षकों की आवश्यकता | 3. विशेष प्रशिक्षित परीक्षकों की आवश्यकता नहीं। |
4. बच्चों और प्रौढ़ों दोनों का परीक्षण | 4. वयस्कों के लिए |
5. प्रश्न का मौखिक व लिखित उत्तर | 5. सामान्यत: लिखित एवं क्रियात्मक उत्तर |
6. परीक्षक का परीक्षार्थी से व्यक्तिगत व भावात्मक संबंध | 6. इसमें वांछित संबंध स्थापित नहीं होते हैं। |
● बुद्धि-लब्धि ज्ञात करने का सूत्र –
अर्थात्
● शैक्षिक-लब्धि ज्ञात करने का सूत्र
संवेगात्मक-बुद्धि (EQ)
(Emotional Intelligence)
अर्थ :- व्यक्ति विशेष की वह समग्र क्षमता जो उसे विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए उसे अपने तथा दूसरे के संवेगों को जानने समझने व सर्वोत्तम प्रबंधन करने में सहायता करती है।
● किसी की संवेगात्मक लब्धि से तात्पर्य उसकी संवेगात्मक बुद्धि स्तर की उस सापेक्ष माप से होता है जिसका मापन परिस्थिति विशेष में संपन्न किसी समय विशेष पर किया गया हो
● यह सामान्य बुद्धि से स्वतंत्र है।
● इस बुद्धि का सम्प्रत्यय सामान्य बुद्धि की भारतीय परंपरा की अवधारणा से निर्मित हुआ है।
● सांवेगिक बुद्धि के सम्प्रत्यय/परिभाषा को सर्वप्रथम जॉन मेयर, पीटर सेलोवी (1990 अमेरिका) ने प्रस्तुत किया।
पुस्तक :- What is EI?
इसके अनुसार :- अपने व दूसरे व्यक्तियों के संवेगों का परीक्षण करने व उनमें विभेदन करने की योग्यता तथा प्राप्त सूचना के अनुसार अपने चिंतन व व्यवहारों को निर्देशित करने की योग्यता ही सांवेगिक बुद्धि है।
अन्य पुस्तक :- संवेगात्मक विकास व संवेगात्मक बुद्धि (1997) – जॉन मेयर व पीटर सेलोवी
● संवेगात्मक बुद्धि का विकास थॉर्नडाइक के 1920 में दिए गए सामाजिक बुद्धि के सिद्धांत से होता है।
● संवेगात्मक बुद्धि वह बुद्धि है जिसका विकास कभी समाप्त नहीं होता है। अपितु समय के अनुसार बढ़ता जाता है। यह विभेदन करने की योग्यता है।
संवेगात्मक बुद्धि का प्रतिपादक :- डैनियल गोलमैन (1995 अमेरिका येल विश्वविद्यालय), इन्हें ही संवेगात्मक बुद्धि को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है।
पुस्तक :– (i) संवेगात्मक बुद्धि, बुद्धिलब्धि से अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों?
(ii) संवेगात्मक बुद्धि के साथ कार्य
(iii) इमोशनल इंटेलिजेन्स
व्यक्ति की सफलता में योगदान :- EQ 80%, IQ 20%
परिभाषा :-
(1) डेनियल गोलमैन :- “संवेगों को जानने, देखभाल करने व संबंध स्थापित करने की शक्ति संवेगात्मक बुद्धि है।”
(2) फ्रीमैन :– “हम कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं को पहचानने में समझने का ढंग संवेगात्मक है।”
(3) रॉबर्ट कुपर :– EQ संवेगों की शक्ति प्रवीणता को जानने, समझने व लागू करने की योग्यता है।
(4) मोरिस इलियस :– संवेगात्मक बुद्धि मानवों को पूर्ण करने के विचार से केंद्रित करने में सहायता करती है।
(5) जॉन मेयर व सेलोवी :– संवेग विशेष का प्रत्यक्षीकरण, विचार प्रक्रिया में समन्वय, समझना व प्रबंधन करने की योग्यता EQ है।
अत: संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य व्यक्ति विशेष की उस समग्र क्षमता (सामान्य बुद्धि से संबंधित होते हुए भी अपने आप में स्वतंत्र) से है। जो उसे उसकी विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपने तथा दूसरों के संवेगों को जानने, समझने तथा उनकी ऐसी उचित अनुभूति एवं अभिव्यक्ति करने में इस प्रकार मदद करे कि वह ऐसी वांछित व्यवहार अनुक्रियाएँ कर सके जिनसे उसे दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए अपना समुचित हित करने हेतु अधिक से अधिक अच्छे अवसर प्राप्त हो सकें।
सांवेगिक बुद्धि की विशेषताएँ
(i) अपनी भावना व संवेगों को जानना, उसके प्रति संवेदनशील होना।
(ii) दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न संवेगों को उनकी शरीर, भाषा, आवाज व स्वर व आनन अभिव्यक्तियों पर ध्यान देते हुए जानना उसके प्रति संवेदनशील होना।
(iii) अपने संवेगों को अपने विचारों से संबद्ध करना ताकि समस्या समाधान तथा निर्णय करते समय उन्हें ध्यान में रखा जा सके।
(iv) अपने संवेगों की प्रकृति व तीव्रता के शक्तिशाली प्रभाव को समझना।
(v) अपने संवेगों व उनकी अभिव्यक्तियों को दूसरों से व्यवहार करते समय नियंत्रित करना ताकि शांति व सामंजस्य की प्राप्ति हो सके।
Note :- बुद्धि के अनुसार विभेदीकरण की योग्यता सांवेगिक बुद्धि की विशेषता नहीं है।
सांवेगिक बुद्धि की प्रकृति
(i) अर्जित होती है, अनुभव के साथ बढ़ती है।
(ii) सामाजिक बुद्धि का प्रकार है।
(iii) व्यक्तियों में विभेदन कर पाने की योग्यता।
(iv) स्वयं के चिंतन व क्रियाओं को निर्देशित करती है।
संवेगात्मक बुद्धि के तत्त्व :-
● गोलमैन के अनुसार (5 तत्त्व/भाग)
(i) आत्म जागरूकता/आत्मचेतना (Self Awareness)
(ii) आत्म नियंत्रण (Self Control) – रचनात्मक मार्ग
(iii) आत्म अभिप्रेरणा (Self Motivation) – स्वयं को अभिप्रेरित करना (मास्टर एप्टीट्यूट)
(iv) परानुभूति/तदानुभूति (Empathy with Others) – दूसरों की भावनाओं को समझना।
(v) सामाजिक दक्षताएँ (Social Skills)
● हे के अनुसार तत्त्व (4) व (16) उपतत्त्व
(i) स्वजागरूकता
(ii) स्वप्रबंधन
(iii) सामाजिक जागरूकता
(iv) संबंध प्रबंधन
● जॉन मेयर (2008) व सेलोवी के अनुसार तत्त्व (5)
(i) स्वयं को अभिप्रेरित करना।
(ii) अपने संवेगों का प्रत्यक्षीकरण व प्रबंध करना।
(iii) दूसरों के संवेगों का प्रबंध करना।
(iv) दूसरों के संवेगों को समझना।
(v) अपने व दूसरों के संवेगों को पहचानना व प्रबंधन करना।
संवेगात्मक बुद्धि का प्रतिमान (Models of EQ)
(1) योग्यता (एबिलिटी) आधारित प्रतिमान
प्रतिपादक :- जॉन मेयर व पिटर सेलोवी
उन्होंने संवेगात्मक बुद्धि की योग्यता के 4 भाग बताए-
(i) आत्मचेतना
(ii) संवेगों का प्रबंधन
(iii) आत्म अभिप्रेरणा
(iv) दूसरों से समानुभूति
(2) गुण आधारित प्रतिमान
प्रतिपादक :- कैवी पैट्राइडस
इनके अनुसार संवेगात्मक बुद्धि व्यक्तित्व का गुण है।
(3) मिश्रित प्रतिमान :- डेनियल गोलमैन
इसमें आत्मसजगता, आत्मनियमन, आत्मप्रेरणा, सहानुभूति व सामाजिक कौशल गुच्छ शामिल होते हैं।
संवेगात्मक बुद्धि का बार ऑन मॉडल (1997)
• संवेगात्मक बुद्धि को वातावरण की मांग एवं दबाव का सफलतापूर्वक सामना करने की संज्ञानात्मक योग्यता, दक्षता एवं कौशलों की व्यूह रचना माना है।
• इससे 5 कारक व 15 उपकारक संबंधित हैं।
(1) अंत:वैयक्तिक कारक
- सांवेगिक स्वसंज्ञान
- दृढ़ता
- स्वतंत्रता
- स्वसम्मान
- स्ववास्तविकीकरण
(2) अन्तर्वैयक्तिक कारक
- सामाजिक उत्तरदायित्व
- समानुभूति
- अंत:वैयक्तिक संबंध
(3) अनुकूलनशीलता कारक
- समस्या समाधान
- वास्तविकता परीक्षण
- नम्यता
(4) दबाव प्रबंधन कारक
- दबाव सहिष्णुता
- आवेग नियंत्रण
(5) सामान्य मनोदशा
- प्रसन्नता
- आशावादिता
संवेगात्मक बुद्धि की भारतीय अवधारणा
(i) भगवद्गीता :- इंद्रियाँ घोड़े के समान, पर विवेक रूपी सारथी द्वारा नियंत्रण
(ii) बौद्ध दर्शन :- अष्टांगिक मार्ग में सम्यक व्यायाम की अवधारणा।
(iii) जैन दर्शन :- पंचमहाव्रत व त्रिरत्न में यह अवधारणा दिखाई देती है।
(iv) भर्तृहरि के नीति शतक, पंचतंत्र की कहानियाँ :– इनमें भी संवेगात्मक बुद्धि की अवधारणा दिखती है।
संवेगात्मक बुद्धि संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य :-
(i)
(ii) श्रीमान् येन्टा लेन्टेनश्लेगर (हैमडेन कान्टेवटीकर USA में एक NIP फैलो) ने संवेगात्मक बुद्धि को चार क्षेत्रों में बाँटा।
- संवेगों से अवगत होना।
- संवेगों को स्वीकारना।
- संवेगों का सही दृष्टिकोण रखना।
- संवेगों की उचित अनुक्रिया करना।
(iii) संवेगात्मक बुद्धि का मापन
- मेयर इमोशनल इंटेलीजेन्स स्केल (MEIS) – जॉन मेयर (अमेरिका की न्यू हैम्पशायर यूनिवर्सिटी में कार्यरत डॉक्टर)
- बार ऑन इमोशनल कोशेन्ट इन्वेन्टरी – रेयुबेन बार
- मंगल संवेगात्मक बुद्धि मापनी (हिंदी, अंग्रेजी दोनों भाषा में) – डॉ. एल.के. मंगल शुभ मंगल।
- मेयर सेलोवी एण्ड कारूसों इमोशनल इंटेलीजेन्स टेस्ट – मेयर /सेलोवी/डेविड कारूसों (17 वर्ष से अधिक आयु के लिए)
(iv) सांवेगिक बुद्धि के घटक/आयाम
- विचारों का अनुबंधात्मक
- संवेगों का प्रत्यक्षीकरण, मूल्यांकन, अभिव्यक्ति
- संवेगों का अवबोध और उनका विश्लेषण
- सांवेगिक एकीकरण, सांवेगिक प्रबंधन
- चिंतन का संवेगात्मक सुगमीकरण
(v) व्यक्ति की उत्तेजित दशा को संवेग कहते हैं। (वुडवर्थ)
• विचार प्रक्रिया का कार्य न करना संवेग की विशेषता है।
• अरस्तू कथन :- कोई भी व्यक्ति क्रोध कर सकता है। यह बहुत आसान है। परन्तु सही व्यक्ति के साथ सही मात्रा में सही समय पर सही प्रयोजन हेतु सही ढंग से क्रोध करना आसान नहीं है।
(vi) संवेगात्मक बुद्धि के विकास हेतु संज्ञानात्मक कौशल, मानसिक विकास, भावात्मक क्षेत्र की योग्यताएँ आवश्यक हैं।
(vii) उच्च सांवेगिक बुद्धि वाले कुछ लोग, नए लोगों में आसानी से समायोजित हो जाते हैं।
(viii) संवेगों पर नियंत्रण पाने के लिए बालकों को आत्मानुभूति का अभ्यास कराना चाहिए।
(ix) संवेगात्मक बुद्धि, बुद्धि का हृदय है।
(x) कम संवेगात्मक बुद्धि वाले बालक में असंवेदनशीलता, दोषारोपण की प्रवृत्ति, जिम्मेदारी से भागना जैसी कई विशेषताएँ उपस्थित होती हैं।
(xi) बालकों में संवेगात्मक बुद्धि के उचित विकास हेतु हम बड़ों को स्वयं अपने को एक ऐसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए, जिसका अनुकरण कर बालक संवेगात्मक रूप से बुद्धिमान बन सके।
(xii) संवेगात्मक बुद्धि की अवधारणा को मात्र इसलिए नहीं सराहा जा सकता कि यह एक नवीनतम अवधारणा है। बल्कि इसलिए कि यही एक ऐसी अवधारणा है जो बालकों और हम सभी के सामने आदर्श रखती है कि किस प्रकार हम अपने आपको समर्थ बनाएँ तथा सुखी रहें।
(xiii) संवेगात्मक सजगता (Emotional Awareness) संबंधी योग्यता में वृद्धि करनी चाहिए ताकि वह अपने और दूसरों के संवेगों की अनुभूति ठीक तरह से कर सके।
(xiv) सभी बालकों में अपने जन्म के समय कुछ न कुछ संवेगात्मक बुद्धि भी पाई जाती है और इसे भी अनुभव, प्रशिक्षण व परिपक्वन के माध्यम से आगे विकास की दिशा प्राप्त होती रहती है।
(xv) जहाँ अनुकूल परिस्थितियाँ किसी के संवेगात्मक बुद्धि स्तर में बढ़ोतरी कर सकती है वही प्रतिकूल परिस्थितियों से इसमें भारी क्षय और गिरावट आ सकती है।
संवेगात्मक बुद्धि को प्रभावित करने वाले कारक :-
(i) सहयोग
(ii) वातावरण
(iii) अभिप्रेरणा
(iv) आत्मचेतना
(v) सहानुभूति
(vi) नेतृत्व
(vii) संवेगों की उचित अभिव्यक्ति।
संवेगात्मक बुद्धि विकास के उपाय
(i) सृजनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करना।
(ii) आत्मप्रतिरूपण :- स्वयं अपना आदर्श बनने की योग्यता का विकास।
(iii) आत्म जागरूकता व आत्म मूल्यांकन की योग्यता का विकास।
(iv) अन्तर्वैयक्तिक संबंधों के निर्माण की शिक्षा
(v) स्वस्थ व संवेगों के एकीकरण की शिक्षा
(vi) सहानुभूति का विकास करना।
(vii) आत्मचेतना का विकास करना।